संकलन: हफीज किदवई
भगत सिंह और महात्मा गांधी के बताए रास्तों को लेकर अलग-अलग बातें होती रही हैं। आज भी कोई गांधी तो कोई भगत सिंह के रास्ते की वकालत करता नजर आता है। लेकिन यह बात सभी मानते हैं कि दोनों लोगों का लक्ष्य एक ही था- भारत को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराना। भगत सिंह और महात्मा गांधी एक और जगह मजबूती से एक साथ खड़े नजर आते हैं। वह जगह है हिंदू-मुस्लिम एकता। भगत सिंह एकता और भाईचारे के बहुत मजबूत पैरोकार रहे हैं, और इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं।
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एक बार की बात है, कानपुर से निकलने वाले अखबार ‘प्रताप’ में गणेश शंकर विद्यार्थी बैठे थे। गणेश शंकर क्रांतिकारियों के साथ कांग्रेस की लीडरशिप के भी बराबर के सहयोगी थे। ‘प्रताप’ अखबार को उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम का मुखपत्र बना रखा था। उन्हीं के कारण भगत सिंह ‘प्रताप’ में बलबीर सिंह के नकली नाम से लेख लिखा करते थे। दरअसल भगत सिंह ने कानपुर में लंबा वक्त बिताया था। एक दिन इसी ‘प्रताप’ के कार्यालय में गणेश शंकर विद्यार्थी से भगत सिंह ने पूछा कि आप आजादी मिलने में सबसे बड़ा रोड़ा किसे मानते हैं? प्रश्न सुनकर गणेश जी ने भगत सिंह की तरफ ऐसे देखा, जैसे उनके मन को पढ़ रहे हों, सवाल में छुपे जवाब को तलाश रहे हों।
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फिर कुछ देर बाद उन्होंने भगत सिंह को जवाब दिया, ‘हमारे लोगों के बीच धार्मिक नफरत, अलगाव और एकता की कमी का होना ही हमारे लक्ष्य को और दूर करता चला जाएगा।’ गणेश जी का यह जवाब सुनकर भगत सिंह मुस्कुराए और बोले, ‘बिल्कुल सही, यही वह बात है, जिसके बिना हम कभी मजबूती से नहीं खड़े हो सकते। नफरत और बिखराव से हम टूटते चले जाएंगे।’ भगत सिंह और गणेश जी के प्रयासों से ‘प्रताप’ अखबार सांप्रदायिकता के विरुद्ध हमेशा क्रांति की लौ जलाने में लगा रहा।