इस पहाड़ी क्षेत्र की झील में है खजाना
मंडी जिले के कमराह नामक स्थान पर घने जंगल से घिरी पहाड़ी का नाम है कमरूनाग। पुरातत्व विज्ञानियों के अनुसार इस झील में नजर आने वाला खजाना महाभारत काल का है। इस झील के किनारे कमरूनाग देवता का भी मंदिर है। जहां जुलाई के महीने में सराहनाहुली मेले का आयोजन करके नाग देवता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
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तैरते हैं झील पर नोट और दिखता है खजाना
मान्यता है कि कमरूनाग झील में सोना-चांदी और रुपये-पैसे चढ़ाने की यह परंपरा सदियों पुरानी है। श्रद्धालु यहां अपनी मुरादें पूरी होने के बाद अपनी आस्था के अनुसार सोने-चांदी का चढ़ावा चढ़ाते हैं। बता दें कि समुद्रतल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में अरबों का खजाना है। जो कि पानी से बिल्कुल साफ झलकता है। लेकिन सुरक्षा की बात की जाए तो इसके लिए किसी भी तरह की कोई भी सुरक्षा व्यवस्था नहीं की गई है। मान्यता है कि इसकी रखवाली खुद कमरूनाग देवता करते हैं।
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खजाने को चुराने का प्रयास करने वालों का हश्र
झील में पड़े खजाने की सुरक्षा स्वयं कमरूनाग देवता करते हैं। कहा जाता है कि एक बार एक आदमी ने झील से खजाने को चुराने का प्रयास किया। इसके लिए उसने झील के मुहाने पर छेद करके सारा पानी निकालने का प्रयास किया। कहा जाता है कि इस प्रयास में उसकी जान ही चली गई। इसके अलावा एक बार एक चोर ने झील से खजाने की चोरी का प्रयास किया। बाद में वह पकड़ा गया। कहा जाता है कि इस घटना के बाद उसकी आंखें पूर्ण रूप से खराब हो गईं। पौराणिक मान्यता यह भी है कि झील में पड़ा खजाना पांडवों की संपत्ति है। जिसे उन्होंने कमरूनाग देवता को समर्पित कर दिया था।
अंग्रेज अधिकारी को लौटना पड़ा खाली हाथ
कहा जाता है कि एक बार मंडी में अंग्रेज अधिकारी ने सोचा कि झील में फेंके जाने वाले खजाने का प्रयोग क्यों न राज्य की जरूरतों पर किया जाए। इसके लिए वह झील से खजाने को निकलवाने के निकला। कई लोगों ने उसे समझाने का प्रयास किया। लेकिन उसने स्थानीय राजा से भी राज्य की तरक्की की बात करके झील से खजाने को निकालने के लिए मना लिया। कहा जाता है कि जैसे ही वह कमरूनाग के लिए निकला तो जोर की बारिश शुरू हो गई। जिसके चलते उस अंग्रेज अधिकारी को रास्ते में ही रुकना पड़ा। बताया जाता है कि अपने निवास के दौरान उसने स्थानीय फल खाया जिसे खाने से उनकी तबियत नासाज हो गई। इसके बाद उनकी तबियत में लगातार गिरावट होती रही। हार कर अंग्रेज अधिकारी वापस इंग्लैंड लौट गया।
तो ऐसा पड़ा नाग देवता का नाम कमरूनाग
पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव रत्नयक्ष (जिन्हें महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अपनी रथ की पताका से टांग दिया था) को एक पिटारी में लेकर हिमालय की ओर लेकर जा रहे थे। जब वह नलसर पहुंचे तब उन्हें एक आवाज सुनाई दी। जिसने उनसे उस पिटारी को एकांत स्थान पर ले जाने का निवेदन किया। इसके बाद वह उसे कमरूघाटी लेकर गए। वहां एक भेड़पालक को देखकर रत्नयक्ष इतना प्रभावित हुआ कि उसने वहीं रुकने का निवेदन किया।
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रत्नयक्ष के कमरूनाग में रुकने की यह थी वजह
रत्नयक्ष के कमरूनाग में रुकने के पीछे यह कथा मिलती है कि वह उसी क्षेत्र में जन्मा था। उसने पांडवों और उस भेड़चालक को बताया कि त्रेतायुग में उसका जन्म इसी स्थान पर हुआ था। उसे जन्म देने वाली नारी नागों की पूजा करती थी। उसने उसके गर्भ से 9 पुत्रों के साथ जन्म लिया था। रत्नयक्ष ने बताया कि उनकी मां उन्हें एक पिटारे में रखती थीं। लेकिन एक दिन उनके घर आई एक अतिथि महिला के हाथ से यह पिटारा गिर गया और सभी सांप के बच्चे आग में गिर गए। लेकिन रत्नयक्ष अपनी जान बचाने के प्रयास में झील के किनारे छिप गए। बाद में उनकी माता ने उन्हें ढू़ढ़ निकाला और उनका नाम कमरूनाग रख दिया। उन्होंने बताया कि वही इस जन्म में रत्नयक्ष राजा के रूप में जन्में।
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