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गुरु का दिन है गुरु पूर्णिमा

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। इस दिन गुरु का देवताओं की तरह पूजन करना चाहिए।

नवभारतटाइम्स.कॉम 19 Jul 2016, 9:33 am
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है। इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होकर गुरु की सेवा में उपस्थित होकर उनका पूजन-अर्चन करना चाहिए। ऐसा कहा गया है कि इस दिन गुरु का देवताओं की तरह पूजन करना चाहिए और अपने गलत व्यवहार के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। इस दिन अपनी शक्ति के अनुसार दान भी अवश्य देना चाहिए।
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गुरु का दिन है गुरु पूर्णिमा


क्या करें गुरु पूर्णिमा के दिन :
1. स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाना चाहिए।
2. फिर 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये' मंत्र से पूजा का संकल्प लें और दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए।
3. फिर व्यासजी, ब्रह्माजी, शुक्रदेवजी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यजी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए।
4. इसके बाद अपने गुरु की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए। गुरु वहां मौजूद ना हों तो उनके चित्र की भी पूजा की जा सकती है।
5. इस दिन वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण कर गुरु को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।
6. गुरु का आशीर्वाद सभी-छोटे-बड़े और हर विद्यार्थी के लिए कल्याणकारी और ज्ञानवर्द्धक होता है।
7. इस दिन केवल गुरु (शिक्षक) ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन की भी पूजा का विधान है।

शास्त्रों में कहा गया है-

गुरुब्र्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुदेवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:॥

ऐसी मान्यता है कि अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला गुरु ही है। गुरु को साक्षात परम ब्रह्म कहा गया है इसलिए गुरु का स्थान सर्वोपरि है। यही कारण है कि प्रचीन समय से ही गुरु पूर्णिमा को बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता रहा है।

आज के परिवेश में गुरु के मायने बदल गए हैं। फिर भी गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु को याद कर लिया जाता है। वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास ही हैं, अत: उन्हें ही आदिगुरु माना जाता है। कहीं कहीं आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। उनकी स्मृति हमारे मन में हमेशा बनी रहे इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु को व्यास का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए और अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरु का आशीर्वाद जरूर ग्रहण करना चाहिए।

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