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इंदौर की रंगपंचमी में आज फिर चढ़ेगा रंगों का खुमार

इंदौर में हर साल होली के पांचवें दिन यानी रंगपंचमी के मौके पर पूरा इंदौर और आसपास के जिलों से लोग शामिल होते हैं। लगभग पूरे मालवा प्रदेश में रंगपंचमी पर जुलूस निकालने की परंपरा है जिसे ‘गेर’ या फाग यात्रा कहते हैं।

नवभारत टाइम्स 28 Mar 2016, 12:00 am
अगर अभी भी आपके सिर से होली की खुमारी नहीं उतरी है तो एक मौका और है, रंगों के इस त्योहार में शरीक होने का। इंदौर की रंगपंचमी को अगर रंगों का महाकुंभ कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जी हां, इंदौर में हर साल होली के पांचवें दिन यानी रंगपंचमी के मौके पर पूरा इंदौर और आसपास के जिलों से लोग शामिल होते हैं। लगभग पूरे मालवा प्रदेश में रंगपंचमी पर जलूस निकालने की परंपरा है जिसे ‘गेर’ या फाग यात्रा कहते हैं।
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इंदौर की रंगपंचमी में आज फिर चढ़ेगा रंगों का खुमार


इस बार रंगीन फुहारों का यह मजमा आज 28 मार्च सोमवार को लगेगा। खास बात यह है कि गेर के लिए किसी को औपचारिक बुलावा नहीं दिया जाता। फिर भी लाखों की संख्या में लोग इस रिवायती फुहार में भींगने के लिए उमड़ पड़ते हैं। पहले जब होली का पर्व कई दिनों तक मनाया जाता था तब रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता था और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था।

मथुरा और बरसाने की होली से ज्यादा होली का माहौल इंदौर में रंगपंचमी के दिन रहता है। रंग ही उनके लिए पूजा-आराधना है और रंग ही जीवन जीने की कला। इस मौके पर इंदौर में लोग गले मिलते हैं, एक दूसरे को बधाइयां देते हैं, बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं और इस रंगोत्सव को सलिब्रेट करते हैं। रंगों को खुशबूदार बनाने के लिए टेसू के फूलों का इस्तेमाल भी होता है। मुफ्त में भांग और ठंडाई का वितरण भी प्रचलन में है।

क्या है महत्ता
इतिहास के जानकार बताते हैं कि शहर में गेर की परंपरा रियासत काल में शुरू हुई, जब होलकर राजवंश के लोग रंगपंचमी पर आम जनता के साथ होली खेलने के लिये सड़कों पर निकलते थे। जानकारों के मुताबिक इस परंपरा का एक मकसद समाज के हर तबके के लोगों को रंगों के त्योहार की सामूहिक मस्ती में डूबने का मौका मुहैया कराना भी था। राजे-रजवाड़ों का शासन खत्म होने के बावजूद इंदौर के लोगों ने इस रंगीन रिवायत को अब तक अपने सीने से लगा रखा है। वक्त के तमाम बदलावों के बाद भी रंगपंचमी पर शहर में रंगारंग परेड रूपी ‘गेर’ का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

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