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मेहनत का रंग गाढ़ा ही होता है

बचपन से ही उन्हें पढ़ने का शौक था, इसलिए उन्होंने घर पर ही डिकेंस और थेकरे के सभी उपन्यासों के साथ...

नवभारत टाइम्स 10 Jun 2016, 12:23 pm
अपटॉन सिंक्लेयर का जन्म बेहद गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत न हारते हुए अपनी लेखन की रुचि को जीवित रखा। वह इतने गरीब थे कि कई बार उनके पास घर का किराया चुकाने तक के पैसे नहीं होते थे। अक्सर परिवार को भूखा ही सो जाना पड़ता था। दस साल की उम्र तक गरीबी के कारण अपटॉन स्कूल नहीं जा पाए। लेकिन बचपन से ही उन्हें पढ़ने का शौक था, इसलिए उन्होंने घर पर ही डिकेंस और थेकरे के सभी उपन्यासों के साथ-साथ एनसाइक्लोपीडिया भी पढ़ डाला।
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मेहनत का रंग गाढ़ा ही होता है


वे जहां कहीं पुस्तकें देखते, उठाकर पढ़ने लगते। अपने संघर्ष और मेहनत से वे कॉलेज पहुंच गए। वहां पहुंचने के बाद उन्होंने आय के लिए सस्ती पत्रिकाओं के लिए उपन्यास लिखे। उन्हें लिखना बेहद पसंद था। वे हर रात आठ हजार शब्द लिखते थे, यानी हर महीने दो उपन्यास। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपॅटान ने विचार प्रधान उपन्यास लिखने का निर्णय लिया।

अब तक वे गरीबी और अन्याय को बहुत करीब से देख चुके थे। उनके मन में गरीबी और अन्याय के प्रति आक्रोश भर चुका था। वे इनसे लड़ना चाहते थे और इन्हें दुनिया से समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने दुनिया को बदलने के इरादे से लिखना शुरू किया। पांच साल में उन्होंने ऐसे ही पांच उपन्यास लिखे।

छठे उपन्यास ‘द जंगल’ से उन्हें राष्ट्रीय लोकप्रियता प्राप्त हुई। अब अपटॉन लेखन के साथ ही समाज कार्यों में भी रुचि लेने लगे थे क्योंकि उन्हें यह पता चल गया था कि गरीबी और अन्याय से लड़ने के लिए केवल लेखन पर्याप्त नहीं है, इसके लिए दबे-कुचले लोगों की मदद करना भी बहुत जरूरी है। आखिरकार धीरे-धीरे अपटॉन की मेहनत रंग लेकर आई। उनकी लेखन क्षमता को भी पहचान मिली और एक दिन उन्हें पुलित्ज़र पुरस्कार से नवाज़ा गया।

संकलन: रेनू सैनी

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