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या तो सर्वश्रेष्ठ या कुछ नहीं

डैमलर कंपनी के लिए महत्वपूर्ण मोड़ उस दिन आया जब ऑस्ट्रिया के अमीर बैंकर और कार रेसर एमील जेलिनेक...

नवभारत टाइम्स 14 Apr 2016, 9:18 am
डैमलर बचपन से ही ऐसा वाहन बनाना चाहते थे जो खुद चल सके। एक दिन उन्होंने कार बनाने का निश्चय किया। वह दिन-रात कार के लिए इंजन बनाते रहते। सन 1886 में उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होंने चार पहियों की एक कार बनाई। शुरू में डैमलर को बहुत संघर्ष करना पड़ा। यह काम इतना नया था कि उसके लिए आवश्यक संसाधन मौजूद नहीं थे। पेट्रोल पंप या गैस स्टेशन भी नहीं थे। ग्राहक को गैसोलिन फार्मेसी से खरीदना पड़ता था। कार सुधारने वाले मकैनिक भी नहीं मिलते थे। तब कारों की रफ्तार बहुत धीमी थी, इसलिए इनकी अधिक मांग भी नहीं थी।
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या तो सर्वश्रेष्ठ या कुछ नहीं


डैमलर कंपनी के लिए महत्वपूर्ण मोड़ उस दिन आया जब ऑस्ट्रिया के अमीर बैंकर और कार रेसर एमील जेलिनेक ने उनसे ज्यादा तेज व बेहतर कार बनाने को कहा। उन्हें ऐसी कार चाहिए थी जिसमें इंजन न केवल आगे लगा हो बल्कि अधिक शक्तिशाली भी हो। कार में चेसिस नीचे हो, वह स्टाइलिश दिखे और तेज गति वाली हो।

यह सुनकर डैमलर बोले,‘सर, इस तरह तो मेरी कंपनी को बड़ा घाटा हो जाएगा। ऐसे में कार की लागत काफी बढ़ जाएगी। इतनी महंगी कार कोई भी नहीं खरीदेगा।’

इस पर एमील जेलिनेक बोले,‘इस मॉडल की पहली 36 कारें मैं खुद खरीद लूंगा। पर हां, इसका नाम मेरी 11 साल की बेटी मर्सिडीज के नाम पर होना चाहिए। ऊंची कीमत रखकर ही मर्सिडीज प्रतिष्ठित ब्रैंड बन सकती है।’

यह सुनकर डैमलर ने ऐसी ही स्टाइलिश कार बनाई जिसे मर्सिडीज नाम दिया गया। कुछ ही समय में यह मॉडल इतना लोकप्रिय हुआ कि जल्द ही डैमलर कंपनी की सभी कारें मर्सिडीज नाम से बिकने लगीं। आज इस घटना को लगभग 116 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन मर्सिडीज ब्रैंड आज भी खूब चल रहा है। मर्सिडीज की टैग लाइन है- 'या तो सर्वश्रेष्ठ या कुछ नहीं'।

संकलन: रेनू सैनी

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