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अगर इरादा ऐसा होगा तो हर मुश्किल आसान हो जाएगी

बाईस साल की अथक मेहनत के बाद एक दिन पहाड़ के सीने को चीरता हुआ एक रास्ता दूसरे गांव तक निकल आया। इससे पास के कस्बे की दूरी जो पहले अस्सी किलोमीटर से भी अधिक थी, अब मात्र तेरह किलोमीटर हो गई थी...

नवभारत टाइम्स 10 Aug 2017, 2:38 pm
गांव की दूसरी औरतों की तरह ही उस व्यक्ति की पत्नी भी रोज पहाड़ पार कर दूसरे गांव से पानी लाती थी। प्रायः महिलाएं वहां फिसलकर गिर पड़तीं जिससे उनका पानी बिखर जाता और चोट भी लगती। उस व्यक्ति की पत्नी के साथ कई बार ऐसा हुआ। यह देखकर उसे बहुत दुख होता था। उसके मन में बार-बार यही ख्याल आता कि काश ये पहाड़ यहां न होता और गांव के लोगों का जीवन कुछ आराम से गुजरता।
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अगर इरादा ऐसा होगा तो हर मुश्किल आसान हो जाएगी


यह सब सोचकर उसने अपने मन में एक फौलादी संकल्प ले लिया। उसने अपनी बकरी बेच डाली और छेनी हथौड़ा खरीद लाया। अगले दिन सुबह-सुबह उसने पहाड़ काटकर रास्ता बनाना शुरू कर दिया। लोग इस व्यक्ति को अविश्वास से देखकर हंस रहे थे, उसका मजाक उड़ा रहे थे, लेकिन वह उनकी प्रतिक्रिया से बेखबर अपने काम में लगा था। समय गुजरता रहा, लेकिन इन सबसे बेखबर अपनी धुन का पक्का वह व्यक्ति अपने काम में लगा रहा। पहाड़ के सीने की कठोर चट्टानें उसकी छेनी के प्रहारों से कट-कटकर गिरती रहीं और रास्ता बनता रहा। इसी दौरान उसकी पत्नी बीमार पड़ी और अस्पताल ले जाते हुए रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई।

पत्नी की मृत्यु से उपजे दुख से उसका संकल्प और अधिक दृढ़ हो गया। बाईस साल की अथक मेहनत के बाद एक दिन पहाड़ के सीने को चीरता हुआ एक रास्ता दूसरे गांव तक निकल आया। इससे पास के कस्बे की दूरी जो पहले अस्सी किलोमीटर से भी अधिक थी, अब मात्र तेरह किलोमीटर हो गई थी। अकेले अपने दम पर यह करिश्मा कर दिखाया था बिहार के गया जिले के गहलौर नामक गांव में एक गरीब भूमिहीन मजदूर परिवार में जन्मे दशरथ मांझी ने। कहते हैं अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन मन में फौलादी संकल्प हो तो अकेला व्यक्ति क्या नहीं कर सकता।

संकलन: सीताराम गुप्ता

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