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ईसा ने दी सीख

एक बार महात्मा ईसा किसी गांव में गए तो वहां एक दुराचारी व्यक्ति ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया...

नवभारत टाइम्स 29 Dec 2016, 9:18 am
एक बार महात्मा ईसा किसी गांव में गए तो वहां एक दुराचारी व्यक्ति ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। महात्मा ईसा ने प्रेमपूर्वक निमंत्रण स्वीकार कर लिया। गांव के सारे लोग उस दुराचारी व्यक्ति से घृणा करते थे। महात्मा ईसा का वह आमंत्रण स्वीकार करना उन्हें अच्छा नहीं लगा। पूरे गांव में काना-फूसी होने लगी। आखिर एक बूढ़े व्यक्ति ने सलाह दी कि सब महात्मा ईसा के ही पास चलें और उनसे अपने मन की बात साफ-साफ कह दें।
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ईसा ने दी सीख


सबको सलाह पसंद आई और सारे गांव वाले इकट्ठा होकर महात्मा ईसा से मिलने चल दिए। गांव वालों का दल जब महात्मा ईसा के पास पहुंचा तो वे भोजन के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे। गांव के बुजुर्ग व्यक्ति की बात उन्होंने ध्यान से सुनी।

आखिर में मुस्कुरा कर पूछा, ‘बाबा! आप मुझे एक बात बताएं, चिकित्सक स्वस्थ मनुष्य के घर पर जाता है या रोगी के? मैं भी चिकित्सक बन कर एक रोगी के घर पर जा रहा हूं। उसे घृणा का विष नहीं, प्रेम की अचूक औषधि चाहिए। बुरे व्यक्ति को अच्छा बनाना है तो उसके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार होना चाहिए। उसके संपर्क में आओ, तभी वह आपका सम्मान करेगा। उसके अंदर जो दुर्गुण हैं उनसे अवश्य बचना चाहिए, किंतु उससे घृणा करके उसका ह्रदय नहीं बदला जा सकता। हमें पापी से नहीं, पाप से घृणा करनी चाहिए। उसे पाप से मुक्त करने की चेष्टा करनी चाहिए। संसार में कोई भी व्यक्ति निर्विकार नहीं है। एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से जीवन, समाज एवं संसार की गति अवरुद्ध हो जाएगी। इसलिए किसी को तिरस्कृत व बहिष्कृत करने के बजाय उसे अपनत्व से समझना व सुधारना श्रेयस्कर है।’

महात्मा ईसा की इन बातों ने जादू सा असर किया। गांव वालों को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। वे ईसा को नमस्कार कर सिर झुकाए वहां से लौट गए।

संकलन: राधा नाचीज

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