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मारिया की जिद

मारिया को बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था। एक दिन बीमार होने पर वह डॉक्टर के पास गई। वहां उसने देखा कि अधिकतर डॉक्टर पुरुष ही हैं। यह देखकर नन्ही ...

नवभारत टाइम्स 7 Feb 2017, 10:00 am

मारिया को बचपन से ही पढ़ने का बहुत शौक था। एक दिन बीमार होने पर वह डॉक्टर के पास गई। वहां उसने देखा कि अधिकतर डॉक्टर पुरुष ही हैं। यह देखकर नन्ही मारिया ने मन में दृढ़ निश्चय किया कि वह बड़ी होकर डॉक्टर ही बनेंगी। रोम के मेडिकल कॉलेज के प्रमुख ने मारिया को दाखिला देने से इनकार करते हुए कहा, 'ऐसा आज तक नहीं हुआ है और इसके बारे में तो सोचा भी नहीं जा सकता।'

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मारिया की जिद


मारिया ने मेडिकल कॉलेज के प्रमुख के इनकार से हार नहीं मानी। वह पोप के पास गईं। पोप के कहने पर उनका दाखिला हुआ। लेकिन मुश्किलें अभी बहुत थीं। उस समय सिर्फ पुरुष ही डॉक्टर बनते थे। इसलिए उनके साथी उन पर व्यंग्य कसते और तंग करते। आधी रात को मारिया को शरीर विज्ञान की कक्षा में अकेले पढ़ने और मुर्दों की चीरफाड़ करने के लिए विवश किया जाता।

मारिया ने इन चुनौतियों को भी स्वीकार कर लिया। आखिर सन 1896 में मारिया को सफलता मिली और वह इटली की पहली डॉक्टर बनीं। लेकिन यहां भी पुरुषप्रधान समाज के चलते उनके साथ भेदभाव हुआ। सामान्य व्यक्तियों की जगह उन पर मूर्ख व मंदबुद्धि बच्चों के इलाज की जिम्मेदारी डाल दी गई। मारिया ने इस चुनौती को भी सहर्ष स्वीकार किया। कुछ ही महीनों में उन्होंने मंदबुद्धि व मूर्ख बालकों को पढ़ने-लिखने के काबिल बना दिया।

अब मारिया समझ गईं कि उनके इलाज के तरीके से मूर्ख व्यक्तियों में सुधार आ जाता है। उन्होंने अपने इस कार्य की सफलता को बार-बार दोहराया। आखिर सन 1899 में उन्होंने आर्थोपेडिक स्कूल ऑफ रोम की स्थापना की। इसके प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। इस प्रकार पुरुषों के प्रबल विरोध के बावजूद मारिया की मॉन्टेसरी प्रणाली सफल हुई। आज शिक्षा जगत में मॉन्टेसरी प्रणाली को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

संकलन: रेनू सैनी

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