राधा नाचीज
एक बार इलाहाबाद से एक सज्जन जवाहरलाल नेहरू से मिलने आए। बातचीत में उन्होंने कहा- ‘पंडित जी, आपकी उम्र साठ वर्ष से ऊपर हो गई और आप गुलाब के फूल की तरह ताजे दिखाई देते हैं। मैं उम्र में आपसे बहुत छोटा हूं, लेकिन बूढ़ा सा हो गया हूं। आपकी इस ताजगी का रहस्य क्या है?’ पंडित जी हंस पड़े। बोले, ‘इसके तीन कारण है।’
आगंतुक ने जिज्ञासा से पूछा- ‘वे क्या हैं पंडित जी?’ पंडित जी ने कहा, ‘पहला कारण यह है कि मैं बच्चों के साथ घुल-मिल जाता हूं। उन्हें प्यार करता हूं। उनके भोलेपन और मासूमियत का मेरी जिंदगी पर बड़ा असर पड़ता है। यह मुझे हर बार महसूस कराता है कि मैं उनके जैसा ही हूं।’ ‘दूसरा कारण ’ उस आदमी ने पूछा। ‘मैं प्रकृति और उसके सुंदर दृश्यों से गहरा संबंध रखता हूं। पहाड़, नदी, पेड़, पक्षी, चांद, सितारे आदि के साथ मेरा घनिष्ठ नाता रहता है।
हरे-भरे जंगल और ताजा हवाएं मेरी जिंदगी को तरोताजा रखती हैं।’ ‘और तीसरा’ पंडित जी मुस्कराते हुए बोले, ‘देखो, ज्यादातर लोग छोटी-छोटी बातों में फंसे रहते हैं। जरा-जरा सी बातों से अपने दिमाग को खराब करते रहते हैं। मैं ऐसा नहीं करता। छोटी-छोटी बातों का मेरे दिमाग पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
जिंदगी को लेकर मेरा सच, मेरा नजरिया बिल्कुल अलग है। रचनात्मक है।’ इतना कहकर पंडित जी खिलखिलाकर हंस पड़े और बोले, ‘मैं चिर यौवन संपन्न हूं, क्योंकि मैं बच्चों के साथ बच्चा बना रहना चाहता हूं।’ वह आदमी भी जीवन की इस सत्यता को जानकर बहुत प्रभावित हुआ और पंडित जी की इस मूल बात को उसने गांठ बांध लिया कि यदि तनावों ने जीवन को घेर लिया है तो बचपन का अनुसरण करें। कोई हमेशा बच्चा ही बने रहकर जीवन गुजारता है तो वह सदैव के लिए जवान बना रह सकता है।
एक बार इलाहाबाद से एक सज्जन जवाहरलाल नेहरू से मिलने आए। बातचीत में उन्होंने कहा- ‘पंडित जी, आपकी उम्र साठ वर्ष से ऊपर हो गई और आप गुलाब के फूल की तरह ताजे दिखाई देते हैं। मैं उम्र में आपसे बहुत छोटा हूं, लेकिन बूढ़ा सा हो गया हूं। आपकी इस ताजगी का रहस्य क्या है?’ पंडित जी हंस पड़े। बोले, ‘इसके तीन कारण है।’
आगंतुक ने जिज्ञासा से पूछा- ‘वे क्या हैं पंडित जी?’ पंडित जी ने कहा, ‘पहला कारण यह है कि मैं बच्चों के साथ घुल-मिल जाता हूं। उन्हें प्यार करता हूं। उनके भोलेपन और मासूमियत का मेरी जिंदगी पर बड़ा असर पड़ता है। यह मुझे हर बार महसूस कराता है कि मैं उनके जैसा ही हूं।’ ‘दूसरा कारण ’ उस आदमी ने पूछा। ‘मैं प्रकृति और उसके सुंदर दृश्यों से गहरा संबंध रखता हूं। पहाड़, नदी, पेड़, पक्षी, चांद, सितारे आदि के साथ मेरा घनिष्ठ नाता रहता है।
हरे-भरे जंगल और ताजा हवाएं मेरी जिंदगी को तरोताजा रखती हैं।’ ‘और तीसरा’ पंडित जी मुस्कराते हुए बोले, ‘देखो, ज्यादातर लोग छोटी-छोटी बातों में फंसे रहते हैं। जरा-जरा सी बातों से अपने दिमाग को खराब करते रहते हैं। मैं ऐसा नहीं करता। छोटी-छोटी बातों का मेरे दिमाग पर कोई खास असर नहीं पड़ता।
जिंदगी को लेकर मेरा सच, मेरा नजरिया बिल्कुल अलग है। रचनात्मक है।’ इतना कहकर पंडित जी खिलखिलाकर हंस पड़े और बोले, ‘मैं चिर यौवन संपन्न हूं, क्योंकि मैं बच्चों के साथ बच्चा बना रहना चाहता हूं।’ वह आदमी भी जीवन की इस सत्यता को जानकर बहुत प्रभावित हुआ और पंडित जी की इस मूल बात को उसने गांठ बांध लिया कि यदि तनावों ने जीवन को घेर लिया है तो बचपन का अनुसरण करें। कोई हमेशा बच्चा ही बने रहकर जीवन गुजारता है तो वह सदैव के लिए जवान बना रह सकता है।