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विजेता कौन

जब उसका अपने ही क्रोध पर काबू नहीं है तो वह खुद को विजेता कैसे कह सकता है।

नवभारतटाइम्स.कॉम 10 Nov 2016, 12:50 pm

भारत को जीत लेने और कुछ दिन यहां गुजार लेने के पश्चात विश्व विजेता सिकंदर भारत से लौटने की तैयारी कर रहा था। किसी ने उसे सलाह दी कि उसे हिंदुस्तान से अपने साथ एक योगी ले जाना चाहिए। सिकंदर को यह बात काफी पसंद आई। उसने अपने साथ ले जाने योग्य एक योगी की तलाश शुरू कर दी। काफी तलाश के बाद उसे जंगल में पेड़ के नीचे एक ध्यानमग्न योगी दिखाई दिया। वह उनके ध्यान टूटने का इंतजार करता रहा।

नवभारतटाइम्स.कॉम who is the winner
विजेता कौन


जब योगी ने अपनी आंखें खोलीं तो वह बोला, ‘आप मेरे साथ यूनान चलो, मैं आपको धन-धान्य से भर दूंगा।’ योगी ने मना कर दिया। तब वह अपने असली रूप में आ गया। तलवार निकालकर बोला, ‘मैं तेरे टुकड़े टुकड़े कर दूंगा।’ योगी ने हंसकर कहा, ‘तुम मेरे टुकड़े नहीं कर सकते क्योंकि मैं अमर हूं। दूसरे तुम साहसी नहीं हो। एक साहसी ही अपने विरोधी को क्षमा कर सकता है। इसके अलावा तुम विजेता भी नहीं हो, तुम मेरे दास के दास हो। मैंने बड़ी साधना के बाद क्रोध को जीता है। अब वह मेरा दास है, तुम उसके काबू में हो। विजेता तब होते जब मेरे गुस्सा दिलाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाते।’

योगी की बातों ने सिकंदर की आंखें खोल दीं। उसे समझ आ गया कि जब उसका अपने ही क्रोध पर काबू नहीं है तो वह खुद को विजेता कैसे कह सकता है। उसे ध्यान आया यह अकारण नहीं कहा गया है कि गुस्से को जिलाए रखना जलते हुए कोयले को हाथ में पकड़े रखने के समान होता है। हम तो उसे किसी दूसरे के ऊपर फेंकना चाहते हैं, पर होता यह है कि खुद हमारा ही हाथ जल जाता है। युगों से हर धर्म और धार्मिक रचनाएं गुस्से को गलत बताती आई हैं। खासकर अहम से प्रेरित गुस्सा पाप माना गया है जो भगवान के उद्देश्य को बिगाड़ता है।

संकलन: उमा पाठक

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