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जब सुख शांति के लिए गुरु अर्जुन देव ने बताए ये दो मंत्र

15 अप्रैल 1563 को पंजाब के गोइंदवाल में अर्जुन देव जी का जन्म हुआ था। ये सिखों के पांचवे गुरु माने जाते हैं। सिख संप्रदाय में धर्म के नाम पर शहीद होने वाले गुरुओं में ये पहले गुरु माने जाते हैं।

नवभारतटाइम्स.कॉम 29 May 2017, 1:04 pm
15 अप्रैल 1563 को पंजाब के गोइंदवाल में अर्जुन देव जी का जन्म हुआ था। ये सिखों के पांचवे गुरु माने जाते हैं। सिख संप्रदाय में धर्म के नाम पर शहीद होने वाले गुरुओं में ये पहले गुरु माने जाते हैं। गुरु अर्जुन देव जी अपने समय में इतने लोकप्रिय हो गए थे कि मुगल बादशाह जहांगीर को इनका डर होने लगा था।
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दूर-दूर से लोग इनके पास अपनी उलझन और परेशानी लेकर आते थे और गुरु जी बातों ही बातों में उनकी समस्या दूर कर देते थे। एक बार की बात है इनका एक शिष्य अपनी समस्या लेकर आया कि गुरु जी मैं बहुत परेशान रहता हूं, मुझे मानसिक शांति नहीं मिलती है, क्या करूं?

उस व्यक्ति को गुरु अर्जुन देव ने अपने पास बुलाकर समझाया, 'तुम्हें या किसी भी अन्य व्यक्ति को मानसिक शांति तब तक नहीं मिल सकती जब तक वह अपने दो शत्रुओं राजसी और तामसी गुणों का त्याग नहीं कर देता। शिष्य को समझाते हुए उन्होंने कहा-हिंसा (जीव हत्या) और क्रोध तमोगुण के लक्षण हैं। जबकि लोभ और अभिमान ये रजोगुण के लक्षण कहलाते हैं।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने तमोगुण और रजोगुण के लक्षणों के बारे में बताते हुए कहा है कि रात का बासी-खट्टा, चटपटा भोजन, बहुत अधिक सोना, झूठ बोलना, मलिन रहना, परनिंदा, बुरी संगत करना ये तामसी गुण के लक्षण हैं। भड़कीले वस्त्र पहनना, मांस-मदिरा का सेवन करना, आदि राजो गुण के लक्षण हैं। गुरु अर्जुन देव ने बताया है कि सुख शांति की चाहत रखने वालों को सात्विक आचरण अपनाना चाहिए।

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