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गुरु शरीर का नहीं, तत्व और परम्परा का नाम है

रावण का वह प्रभाव राम के स्वभाव से हार गया और राम का जो स्वभाव है, उसके पीछे गुरु सत्ता ही है। राम के इस लोक कल्याणकारी स्वभाव में कई गुरुओं का योगदान है।

नवभारतटाइम्स.कॉम 4 Jul 2017, 10:04 am
नई दिल्ली के सिरीफोर्ट आडिटोरियम में आयोजित गुरुपूर्णिमा महोत्सव में हिन्दूधर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने गुरु शब्द की महनीयता का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि गुरु अर्थात् विचार सत्ता, ज्ञान सत्ता और प्रकाश सत्ता। जिसके पास विचारों का प्रकाश है, उसी का जीवन सार्थक है। ज्ञान हमारे अनन्तता का बोध कराने वाला तत्व है।
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हमारे भीतर शुभता, तेज और अतुल्य सामर्थ्य विद्यमान है। जीवन में गुरु और ग्रंथ आए, संत और सत्संग के आने का फलादेश यह है कि हम विनम्र बनते हैं। इसलिए गुरु यानी मर्यादा। यदि आपके पास मर्यादा है, आप किसी के शील, संयम, मर्यादा का हनन नहीं कर रहे हैं तो ही आप आध्यात्मिक हैं।

रावण का वह प्रभाव राम के स्वभाव से हार गया और राम का जो स्वभाव है, उसके पीछे गुरु सत्ता ही है। राम के इस लोक कल्याणकारी स्वभाव में वशिष्ठ, विश्वामित्र, अगस्त, जमदाग्नि जैसे अनेक ऋषियों का योगदान है। इसलिए जहां ज्ञान और विचार है वहीं शान्ति और समाधान है। भारत सदियों से विश्वगुरु रहा है। दुनिया ने योग को अपनाकर और योगदिवस मनाकर इसकी स्वीकृति भी दे दी है।

गुरु शरीर का नहीं, तत्व और परम्परा का नाम है। हम इस वर्ष को गीता ज्ञान के रूप में मना रहे हैं । मैं चाहता हूं कि, आप सभी गीता का अध्ययन करें, गीता में अनेक प्रकार के समाधान और उपाय हैं जो यह संदेश देती है कि आदमी जब शिथिल हो जाए, गिर पड़े तो गुरु ही उसे ऊपर उठा सकता है।

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