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ऐसे रहेगा मन हमेशा शांत

हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाड़ियां रोज-रोज गंदा करती हैं और हमारी शांति भंग करती हैं...

नवभारत टाइम्स 29 May 2016, 11:55 am
एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। उनके प्रिय शिष्य आनंद ने भगवान बुद्ध से रास्ते में सवाल किया- भगवान ‘जीवन में पूर्ण रूप से शांति कभी भी नहीं मिल पाती। कुछ उपाय बताएं जिससे जीवन में हमेशा हर रास्ते पर शांति का अहसास हो।’
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ऐसे रहेगा मन हमेशा शांत


बुद्ध आनंद का सवाल सुनकर मुस्कराते हुए बोले- ‘तुम्हें हम इसका जवाब जरूर देंगे लेकिन इस वक्त हमें बहुत प्यास लगी है, पहले थोड़ा जल पी लें। क्या तुम हमारे लिए पानी लेकर आओगे?’

आनंद भगवान बुद्ध का आदेश पाकर पानी की खोज में चल दिए। काफी देर तक तलाशने के बाद उन्हें एक झरना नजर आया। झरने के करीब पहुंचते ही आनंद ने देखा कि बहुत सारी बैलगाड़ियां वहां से गुजर रहीं हैं। बैलगाड़ियां गुजरने के बाद आनंद ने झील को देखा तो पाया कि झील का पानी काफी गंदा हो गया है। वह गंदे पानी को देखकर परेशान हो गए। उसने दूसरी जगह पर भी पानी तलाशा लेकिन उस जगह को छोड़कर कहीं पर भी पानी नहीं मिला। वह निराश होकर वापस लौट आए।

आनंद बोले ‘भगवान मैं पानी लेने तो गया था, लेकिन वहां से काफी सारी बैलगाड़ियां गुजरीं जिस वजह से झील का पानी गंदा हो गया। इसलिए मैं बिना पानी लिए ही लौट आया। मैंने कुछ दूसरी जगहों पर भी पानी तलाशने की कोशिश की लेकिन मुझे असफलता ही हाथ लगी। मैं दोबारा दूसरी झील की तलाश करता हूं। जहां पर साफ पानी हो।’

यह कहकर आनंद जाने के लिए मुड़ने लगे तभी भगवान बुद्ध की आवाज सुनकर रुक गए। बुद्ध बोले ‘दूसरी झील तलाश करने की जरूरत नहीं। उसी झील पर जाओ।’

आनंद दोबारा उसी झील पर गए, लेकिन अभी भी झील का पानी साफ नहीं हुआ था और कुछ पत्ते आदि उस पर तैर रहे थे। आनंद दोबारा वापस आकर बोले- ‘झील का पानी अभी भी गंदा है।’

बुद्ध ने उसे कुछ देर बाद फिर उसी झील पर जाने को कहा। कुछ देर ठहरकर जब आनंद झील पर आए तो देखा कि झील का पानी बिल्कुल साफ था। सब सड़े गले पत्ते नीचे बैठ चुके थे।

काई सिमटकर दूर जा चुकी थी और पानी आईने की तरह चमक रहा था। आनंद इस बार प्रसन्न मन से झील का साफ पानी लेकर लौटे। भगवान बुद्ध पानी पीकर बोले, ‘आनंद जो काम अभी तुमने किया तुम्हारे सवाल का जवाब उसी में छिपा है।’

यह सुनकर आनंद हैरानी से बोले- ‘भगवान मैं कुछ समझा नहीं।’

बुद्ध बोले ‘आनंद हमारे जीवन के जल को भी विचारों की बैलगाड़ियां रोज-रोज गंदा करती हैं और हमारी शांति भंग करती हैं। कई बार हम इनसे डरकर जीवन से भाग खड़े होते हैं। लेकिन यदि हम भागें नहीं और मन के झील के शांत होने का इंतजार करें तो सब कुछ साफ हो जाता है।

उसी झरने की तरह, जहां से तुम पानी लाए हो। यदि हम ऐसा करने में सफल होते हैं तो जीवन में हर रास्ते पर शांति का अहसास करेंगे।’ यह जवाब सुनकर आनंद के साथ ही दूसरे शिष्य भी बुद्ध के जवाब से सहमत हो गए।

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