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भगवान शिव और कृष्ण ने इसे बताया है असली योग

महर्षि पतंजलि के अनुसार मनुष्य के अंदर जितनी वृत्तियां हैं, उसका निरोध ही योग है। स्वाभाविक तौर पर मनुष्य के अंदर पचास वृत्तियां हैं और अस्वाभाविक तौर पर एक हजार।

नवभारतटाइम्स.कॉम 21 Jun 2017, 8:48 am
श्री आनन्दमूर्ति
नवभारतटाइम्स.कॉम yoga


आमतौर पर योग के बारे में लोग समझते हैं कि दो-चार आसन और प्राणायाम किया और संपूर्ण अभ्यास हो गया। किंतु ऐसा नहीं है। महर्षि पतंजलि के अनुसार मनुष्य के अंदर जितनी वृत्तियां हैं, उसका निरोध ही योग है। स्वाभाविक तौर पर मनुष्य के अंदर पचास वृत्तियां हैं और अस्वाभाविक तौर पर एक हजार। वैसे योग शब्द का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना, एकीकरण या मिलन। जब दो को दो से जोड़ा जाता है तब चार होता है।

जिस तरह बालू और नमक को मिलाने से दोनों का अस्तित्व अलग-अलग रहता है, उसी तरह दो को दो से घटाने पर दो ही होता है। अर्थात दोनों दो का समान अस्तित्व रहता है। लेकिन पतंजलि योग का अर्थ जोड़ने और एकीकरण से नहीं बल्कि सभी वृत्तियों के निरोध से है।

योग के बारे में भगवान शिव और कृष्ण ने व्याख्या की है- जीवात्मा का परमात्मा के साथ एकाकार होने का नाम ही योग है। जिस तरह पानी और चीनी आपस में मिलने से एक हो जाते हैं और मिलने के बाद दोनों का अलग अस्तित्व नहीं रहता है, उसी तरह साधना के माध्यम से साधक परमात्मा के साथ मिलकर एक हो जाता है और उस समय ‘मैं’ और परमात्मा के बोध का कोई अस्तित्व नहीं रहता।

यही सर्वश्रेष्ठ योग प्रक्रिया है। इसके अलावा महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग सर्वश्रेष्ठ और व्यावहारिक माना गया है। आसन करने से शरीर और मन स्वस्थ रहता है। यह ग्रंथि दोष को दूर करता है। आसन सूक्ष्म और उच्च कोटि की साधना में काफी मददगार साबित होता है। नियमित आसन करने से शरीर लचीला होता है और मन का संतुलन कायम रहता है। आसन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं- स्वास्थ्यासन और ध्यानासन। स्वास्थ्यासन मुख्यतः स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक प्रगति के लिए किया जाता है, जबकि ध्यानासन मन को केंद्रित करने और साधना में मदद करता है।

प्राणायाम एक प्रक्रिया है जो श्वास नियंत्रण के साथ ईश्वरीय भाव जगाता है। अष्टांग योग साधना में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का सैद्धांतिक ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान ज्यादा महत्व रखता है। मन को बाहरी जगत से हटाना और परमात्मा की ओर ले जाना ही प्रत्याहार साधना है। मन को विशेष चक्र पर केंद्रित कर ब्रह्म भाव में लीन रखना धारणा है। शोधन का अर्थ होता है शुद्धिकरण।

आनंद मार्ग साधना में पहली बार शोधन के बारे मे बताया गया है। इसके पूर्व शोधन के बारे में कहीं जिक्र नहीं है। जब आध्यात्मिक साधना में मन को चक्र पर केंद्रित किया जाता है तो उसे आनंद मार्ग साधना में शोधन कहते हैं। जब अणु मन भूमा मन में मिल जाता है तो उसे समाधि कहते हैं। समाधि कोई साधना की प्रक्रिया नहीं है बल्कि साधनाओं का परिणाम है।

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