इक्विटी के अलावा अन्य ऐसेट क्लासेज में निवेश करने में दिलचस्पी रखने वाले ट्रेडर्स के लिए कमोडिटी में ट्रेड से जुड़ी हुई अहम जानकारियां...
1. क्रूड, गोल्ड, शुगर और एडिबल ऑयल्स जैसी कमोडिटीज में किस तरह से ट्रेड किया जा सकता है?
इस तरह की ब्रोकिंग सेवा देने वाले किसी ब्रोकर के यहां एक डीमैट अकाउंट खोलकर (अगर आप डिलिवरी चाहते हैं) आप ऐसा कर सकते हैं।
2. क्या ये वही ब्रोकर होते हैं, जो इक्विटी ब्रोकिंग सर्विस ऑफर करते हैं?
नहीं, लेकिन इनमें से कई इक्विटी ब्रोकिंग सर्विस ऑफर करते हैं और उन्होंने कमोडिटी एफएंडओ ब्रोकिंग के लिए अलग सब्सिडियरी खोल ली है। इनमें एंजल कमोडिटीज, कार्वी कमोडिटीज जैसी इकाइयां शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि अगर आप कमोडिटी में ट्रेड करना चाहते हैं तो अलग अकाउंट खोलना पड़ेगा।
3. क्या डिलिवरी अनिवार्य है?
ज्यादातर ऐग्रिकल्चर फ्यूचर्स जैसे एडिबल ऑयल्स, स्पाइसेज वगैरह में डिलिवरी अनिवार्य है, लेकिन आप अपनी पोजिशन को डिलिवरी से पहले काट सकते हैं। नॉन-ऐग्री सेगमेंट में ज्यादातर कमोडिटीज नॉन-डिलिवरी बेस्ड होती हैं।
4. क्या ट्रेडिंग इक्विटी एफएंडओ की तरह है?
हां। इसमें मार्क-टु-मार्केट डेली बेसिस पर सेटल होते हैं, लेकिन मार्जिन स्टॉक्स जितने ऊंचे नहीं होते।
5. ट्रेड का मार्जिन क्या होता है?
आमतौर पर 5-10 फीसदी, लेकिन ऐग्रो-कमोडिटीज में जब उतार-चढ़ाव बढ़ता है तो एक्सचेंज अतिरिक्त मार्जिन लगाता है। कई बार यह 30 से 50 फीसदी तक हो सकता है।
6. कमोडिटी एफएंडओ मार्केट को कौन रेग्युलेट करता है?
मेटल्स और एनर्जी एक्सचेंज एमसीएक्स और एग्री एक्सचेंज एनसीडीईएक्स को सेबी रेग्युलेट करता है।
7. क्या कमोडिटी मार्केट में पर्याप्त लिक्विडिटी होती है?
लिक्विडिटी गोल्ड, सिल्वर, क्रूड, कॉपर जैसे नॉन-ऐग्री काउंटर्स पर ज्यादा होती है। हालांकि, सोयाबीन, मस्टर्ड, जीरा, ग्वारसीड में भी काफी भागीदारी देखने को मिलती है। ज्यादातर रिटेलर्स डिलिवरी लेने या देने की बजाय मेटल्स और एनर्जी में कीमतों पर दांव लगाने पर जोर देते हैं।
1. क्रूड, गोल्ड, शुगर और एडिबल ऑयल्स जैसी कमोडिटीज में किस तरह से ट्रेड किया जा सकता है?
इस तरह की ब्रोकिंग सेवा देने वाले किसी ब्रोकर के यहां एक डीमैट अकाउंट खोलकर (अगर आप डिलिवरी चाहते हैं) आप ऐसा कर सकते हैं।
2. क्या ये वही ब्रोकर होते हैं, जो इक्विटी ब्रोकिंग सर्विस ऑफर करते हैं?
नहीं, लेकिन इनमें से कई इक्विटी ब्रोकिंग सर्विस ऑफर करते हैं और उन्होंने कमोडिटी एफएंडओ ब्रोकिंग के लिए अलग सब्सिडियरी खोल ली है। इनमें एंजल कमोडिटीज, कार्वी कमोडिटीज जैसी इकाइयां शामिल हैं। इसका मतलब यह है कि अगर आप कमोडिटी में ट्रेड करना चाहते हैं तो अलग अकाउंट खोलना पड़ेगा।
3. क्या डिलिवरी अनिवार्य है?
ज्यादातर ऐग्रिकल्चर फ्यूचर्स जैसे एडिबल ऑयल्स, स्पाइसेज वगैरह में डिलिवरी अनिवार्य है, लेकिन आप अपनी पोजिशन को डिलिवरी से पहले काट सकते हैं। नॉन-ऐग्री सेगमेंट में ज्यादातर कमोडिटीज नॉन-डिलिवरी बेस्ड होती हैं।
4. क्या ट्रेडिंग इक्विटी एफएंडओ की तरह है?
हां। इसमें मार्क-टु-मार्केट डेली बेसिस पर सेटल होते हैं, लेकिन मार्जिन स्टॉक्स जितने ऊंचे नहीं होते।
5. ट्रेड का मार्जिन क्या होता है?
आमतौर पर 5-10 फीसदी, लेकिन ऐग्रो-कमोडिटीज में जब उतार-चढ़ाव बढ़ता है तो एक्सचेंज अतिरिक्त मार्जिन लगाता है। कई बार यह 30 से 50 फीसदी तक हो सकता है।
6. कमोडिटी एफएंडओ मार्केट को कौन रेग्युलेट करता है?
मेटल्स और एनर्जी एक्सचेंज एमसीएक्स और एग्री एक्सचेंज एनसीडीईएक्स को सेबी रेग्युलेट करता है।
7. क्या कमोडिटी मार्केट में पर्याप्त लिक्विडिटी होती है?
लिक्विडिटी गोल्ड, सिल्वर, क्रूड, कॉपर जैसे नॉन-ऐग्री काउंटर्स पर ज्यादा होती है। हालांकि, सोयाबीन, मस्टर्ड, जीरा, ग्वारसीड में भी काफी भागीदारी देखने को मिलती है। ज्यादातर रिटेलर्स डिलिवरी लेने या देने की बजाय मेटल्स और एनर्जी में कीमतों पर दांव लगाने पर जोर देते हैं।