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ब्रैंडेड फूडग्रेन्स खाएंगे तो चुकाने होंगे ज्यादा दाम

अगर आप किसी ब्रैंड का आटा, चावल, दाल, चीनी, मसाले या अन्य किसी खाद्य वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं तो 1 जुलाई से आपके किचन का बजट बिगड़ सकता है।

नवभारत टाइम्स 25 Jun 2017, 11:39 am
नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम Foog grains

अगर आप किसी ब्रैंड का आटा, चावल, दाल, चीनी, मसाले या अन्य किसी खाद्य वस्तुओं का इस्तेमाल करते हैं तो 1 जुलाई से आपके किचन का बजट बिगड़ सकता है। जीएसटी लागू होने के बाद आपको इन पर 5 फीसदी टैक्स देना पड़ेगा। सरकार ने साफ कर दिया है कि ब्रैंडेड खाद्य वस्तुओं पर 5 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। जीएसटी के रोलबैक का कोई सवाल ही नहीं है।

सरकार का मानना है कि ऐसे ब्रैंडेड प्रोडक्ट जिनके पास ट्रेडमार्क है और जिनके वैल्यू एडिशन और विज्ञापन पर मोटी रकम खर्च की जा रही है, उस पर जीएसटी लगाना जरूरी है। हालांकि, सरकार ने एग्रो कमोडिटी और अनाज पर टैक्स नहीं लगाया है और यह भी कहा है कि खुला आटा, चीनी, चावल खरीदने पर कोई टैक्स नहीं देना होगा। इधर, कंपनियों का कहना है कि उनका प्रॉफिट मार्जिन लगातार कम हो रहा है, ऐसे में जीएसटी का भार वे सहन नहीं करेंगे। ग्राहकों पर इसका भार डालना ही होगा।

सरकार का तर्क
रेवेन्यु सेक्रेटरी हंसमुख अढिया का कहना है कि सामान्य गेहूं जो बाजार में बिकता है उसकी तुलना में ब्रैंडेड गेहूं पहले ही 25 से 30 फीसदी प्रीमियम पर बिक रहा है। यानी इसकी कीमत ज्यादा है। ऐसे प्रोडक्ट पर जीएसटी लगाया है। सरकार ने नॉर्मल गेहूं पर टैक्स नहीं लगाया है। अब ये कारोबारियों पर निर्भर करता है कि वह ये टैक्स कन्ज़्यूमर को पास करेंगे या अपना प्रॉफिट मार्जिन घटाएंगे। अढिया के अनुसार ब्रैंडेड का मतलब है, जिसके पास ट्रेडमार्क है। जिन कारोबारियों ने रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क लिया है, वो अपने ट्रेडमार्क को बचाने के अलावा वैल्यू एडिशन कर रहे हैं। ऐसे में उन पर जीएसटी लगाने का फैसला किया गया है।

सरकार का नया दांव

कारोबारी हेमंत गुप्ता का कहना है कि सरकार ने घुमा कर कारोबारियों का कान पकड़ा है। एक तरफ सरकार का कहना है कि वह खाद्य वस्तुओं पर जीएसटी नहीं लगा रही है, क्योंकि यह आम आदमी की मूलभूत जरूरत हैं। वहीं ब्रैंडेड टर्म को जोड़कर फूडग्रेन, दालों और अनाज को 5 फीसदी के टैक्स ब्रैकेट में रख दिया है। इससे कंस्यूमर के लिए पैक्ड फूडग्रेन महंगे हो जाएंगे।

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