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इस सदी के अंत तक चीन में हो सकता है खाद्यान्न का संकट?

चीन की ओर से विकासशील देशों में खेती की जमीन लीज पर लेकर फार्म या खेत विकसित करने से समस्या का हल नहीं होगा। एशिया, अफ्रीका और साउथ अमेरिकी में तेजी से बढ़ती आबादी के चलते अगली एक पीढ़ी में ही दो अरब से अधिक लोग बढ़ जाएंगे और उन्हें भी भोजन की जरूरत होगी।

नवभारतटाइम्स.कॉम 22 May 2017, 3:15 pm
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चीन की करीब 1.4 अरब आबादी की भोजन की इच्छाएं और आदतें तेजी से बदल रही हैं। इसके चलते दुनिया भर में खाद्य सामग्री के उत्पादन और उसकी बिक्री के मायने भी बदले हैं। एक चीनी औसत खुराक लगभग अमेरिकी नागरिक के समान ही होती है। इसके चलते उसकी कंपनियों को सुअर के मांस लेकर केले की खेती तक करने के लिए दुनिया भर के देशों में जमीनों के अधिग्रहण से लेकर तमाम प्रयास करने पड़ रहे हैं। लेकिन, इस समस्या से निपटने के लिए चीन की ओर से विकासशील देशों में खेती की जमीन लीज पर लेकर फार्म या खेत विकसित करने से समस्या का हल नहीं होगा। एशिया, अफ्रीका और साउथ अमेरिकी में तेजी से बढ़ती आबादी के चलते अगली एक पीढ़ी में ही दो अरब से अधिक लोग बढ़ जाएंगे और उन्हें भी भोजन की जरूरत होगी।

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ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक इसके चलते चीन के सामने और कठिन चुनौती पैदा हो गई है। यदि वह इस सदी के उत्तरार्ध में अपनी आबादी के लिए अफोर्डेबल फूड पैदा करने में सक्षम रहता है तो फिर उसे यह भी निश्चित करना होगा कि बाकी दुनिया के 9 अरब लोगों के लिए भी खाद्यान्न उत्पादन की जगह बनी रहे। इसका एक ही जवाब है- तकनीक। चीन की ऐग्रिकल्चर इंडस्ट्री में उस वक्त बड़ी क्रांति आई थी, जब धान के खेतों को बड़ी कंपनियों को सौंप दिया गया। चार दशक पहले यह बदलाव शुरू हुआ था, जब चीन ने अपने उत्पादन की व्यवस्था और निजी सेक्टर में बदलाव किए। ये बदलाव जल्दी ही आर्थिक वरदान साबित हुए।

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फैक्ट्रियों, निवेश और निर्यात के जरिए चीन की आर्थिक गति तेज हो गई। भूमि सुधार के धान और गेहूं जैसी फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ गया। करोड़ों लोग मिडल क्लास में शामिल हुए। उनके खान-पान की आदतों में सुधार हुआ। चीनी नागरिकों में सब्जियों और मांस की खपत में इजाफा हो गया। यहां तक कि बीफ और मिल्क जैसे लग्जरी आइटम्स तक लोगों की पहुंच हुई। डु चुन्मेइ जब छोटी बच्ची थीं, उस वक्त सुअर का मांस नए साल के मौके पर गांव के कुछ बुजुर्ग लोगों को ही मिल पाता था। पालतू सुअर का वध किया जाता था और रिश्तेदारों एवं पड़ोसियों को दावत दी जाती थी।

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक अब सरकारी तेल कंपनी पेट्रोचाइना में काम करने वाली 47 वर्षीय चुन्मेइ कहती हैं कि उस वक्त मीट की उपलब्धता बहुत कम थी। हालांकि चीन के इस विकास के साथ ही अलग तरह की समस्याएं भी पैदा हुई हैं। देश के तेज औद्योगिक विकास के चलते बड़े पैमाने पर खेती की जमीन पर फैक्ट्रियां खड़ी हो गई हैं। खेतों में कूड़ा जमा है या फिर केमिकल के अत्यधिक इस्तेमाल के चलते खेत खराब हो गए हैं। यहां तक कि इनमें उपजने वाली फसलों में भी तमाम तरह के कीटाणु पाए जा रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि चीन किस तरह से अपनी बढ़ती आबादी के मुताबिक स्वस्थ और सुरक्षित भोजन का इंतजाम कर पाएगा। इसका जवाब है, यह संभव नहीं।

लगातार कम हो रही खेती की जमीन
यदि एक अमेरिकी व्यक्ति के पास खेती के लिए औसतन 1 एकड़ जमीन है तो चीन में यह आंकड़ा महज 0.2 एकड़ का है। इनमें वह खेत भी शामिल हैं, जो प्रदूषण के चलते प्रभावित हुए हैं। यही वजह है कि चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने स्थिति को संभालने की कोशिश करते हुए चार सूत्रीय अजेंडा तैयार किया है। खेती में उत्पादन बढ़ाना, मार्केट पर नियंत्रण, भूमि की कमी को रोकना और आयात। इन पर निर्भरता के जरिए चीन अपने खाद्यान्न संकट से निपटने की कोशिश में है।

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