कीर्तिका सुनेजा, नई दिल्ली
सरकार घरेलू इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए सरकारी खरीद से जुड़े नियमों को कड़ा करने की योजना बना रही है ताकि मेक इन इंडिया के तहत बने प्रॉडक्ट्स की खरीद को प्राथमिकता दी जा सके। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) पब्लिक प्रोक्योरमेंट ऑर्डर यानी सरकारी खरीद आदेश को संशोधित करना चाहता है ताकि बिडिंग के लिए जारी दस्तावेजों में घरेलू सप्लायर्स से भेदभाव वाली शर्तों या प्रतिबंधों को शामिल करने वाले किसी सरकारी विभाग की खरीद एजेंसी के दोषी अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सके।
डीआईपीपी बिडिंग के दस्तावेजों में घरेलू सप्लायर्स के खिलाफ ऐसी किसी भी शर्त को शामिल करने की 'जवाबदेही तय' करना चाहता है। इसके अलावा डीआईपीपी यह भी चाहता है कि उस विभाग के संबंधित मंत्री लिखित में यह मंजूरी दें कि आखिर क्यों घरेलू सप्लायर्स के लिए 20 पर्सेंट की तय सीमा से कम खरीद वाली शर्तों को शामिल किया गया। नए नियमों के मुताबिक, मंत्री को उस सूरत में लिखित तौर पर अप्रूवल देना होगा, अगर उनके तहत आने वाली खरीद एजेंसी ऑर्डर से किसी खास आइटम को बाहर करे।
सरकारी खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) आदेश के मुताबिक केंद्र सरकार के सभी विभागों, उनसे जुड़े कार्यालयों और केंद्र सरकार की निगरानी वाली स्वायत्त संस्थाओं को सरकारी खरीद के दौरान घरेलू सप्लायर्स को प्राथमिकता देनी चाहिए। आदेश में खरीद प्राथमिकता को 20 पर्सेंट मार्जिन दिया गया है, जबकि मिनिमम लोकल कंटेंट 50 पर्सेंट रखना होगा।
मामले से वाकिफ एक अधिकारी ने बताया, 'अभी तक हम एजेंसियों से आग्रह कर रह थे कि वे घरेलू सप्लायर्स से सामान खरीदें, लेकिन अब उन्हें यह बताना होगा कि आखिर वे ऐसा क्यों नहीं कर रही हैं?' फिलहाल, संबंधित विभाग और सरकारी कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पास घरेलू सप्लायर्स से सामान खरीदने की तय सीमा को घटाने या इससे छूट देने का अधिकार है। डीआईपीपी के नए संशोधन के लागू होने के बाद खरीद एजेंसियों को इस तरह के किसी भी कदम के लिए इंडस्ट्री सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाली एक स्थायी कमेटी को सूचित करना होगा। अधिकारी ने बताया, 'इसके लागू होने के बाद सभी एजेंसियों को किसी भी चीज के लिए स्थायी कमेटी से परामर्श लेना होगा।'
हाल ही में कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर सुरेश प्रभु ने राज्यों से सरकारी खरीद में देश में ही बने प्रॉडक्ट को प्राथमिकता देने के लिए दिशानिर्देश बनाने को कहा था ताकि लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सके। डीआईपीपी ने पिछले साल सभी विभागों को निर्देश दिया था कि वे घरेलू मैन्युफैक्चरर्स के खिलाफ प्रतिबंधों और भेदभाव वाली शर्तों की समीक्षा के लिए एक सिस्टम बनाएं, खासतौर से राज्य सरकारों की ओर से जारी होने वाली निविदाओं के लिए। नए नियम में यह भी कहा गया कि बिडर्स की योग्यता से जुड़ी ऐसी कोई शर्त नहीं होगी, जो देश में ही बने प्रॉडक्ट्स पर विदेशी प्रॉडक्ट्स को प्राथमिकता दे।
सरकार घरेलू इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए सरकारी खरीद से जुड़े नियमों को कड़ा करने की योजना बना रही है ताकि मेक इन इंडिया के तहत बने प्रॉडक्ट्स की खरीद को प्राथमिकता दी जा सके। डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) पब्लिक प्रोक्योरमेंट ऑर्डर यानी सरकारी खरीद आदेश को संशोधित करना चाहता है ताकि बिडिंग के लिए जारी दस्तावेजों में घरेलू सप्लायर्स से भेदभाव वाली शर्तों या प्रतिबंधों को शामिल करने वाले किसी सरकारी विभाग की खरीद एजेंसी के दोषी अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सके।
डीआईपीपी बिडिंग के दस्तावेजों में घरेलू सप्लायर्स के खिलाफ ऐसी किसी भी शर्त को शामिल करने की 'जवाबदेही तय' करना चाहता है। इसके अलावा डीआईपीपी यह भी चाहता है कि उस विभाग के संबंधित मंत्री लिखित में यह मंजूरी दें कि आखिर क्यों घरेलू सप्लायर्स के लिए 20 पर्सेंट की तय सीमा से कम खरीद वाली शर्तों को शामिल किया गया। नए नियमों के मुताबिक, मंत्री को उस सूरत में लिखित तौर पर अप्रूवल देना होगा, अगर उनके तहत आने वाली खरीद एजेंसी ऑर्डर से किसी खास आइटम को बाहर करे।
सरकारी खरीद (मेक इन इंडिया को प्राथमिकता) आदेश के मुताबिक केंद्र सरकार के सभी विभागों, उनसे जुड़े कार्यालयों और केंद्र सरकार की निगरानी वाली स्वायत्त संस्थाओं को सरकारी खरीद के दौरान घरेलू सप्लायर्स को प्राथमिकता देनी चाहिए। आदेश में खरीद प्राथमिकता को 20 पर्सेंट मार्जिन दिया गया है, जबकि मिनिमम लोकल कंटेंट 50 पर्सेंट रखना होगा।
मामले से वाकिफ एक अधिकारी ने बताया, 'अभी तक हम एजेंसियों से आग्रह कर रह थे कि वे घरेलू सप्लायर्स से सामान खरीदें, लेकिन अब उन्हें यह बताना होगा कि आखिर वे ऐसा क्यों नहीं कर रही हैं?' फिलहाल, संबंधित विभाग और सरकारी कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पास घरेलू सप्लायर्स से सामान खरीदने की तय सीमा को घटाने या इससे छूट देने का अधिकार है। डीआईपीपी के नए संशोधन के लागू होने के बाद खरीद एजेंसियों को इस तरह के किसी भी कदम के लिए इंडस्ट्री सेक्रेटरी की अध्यक्षता वाली एक स्थायी कमेटी को सूचित करना होगा। अधिकारी ने बताया, 'इसके लागू होने के बाद सभी एजेंसियों को किसी भी चीज के लिए स्थायी कमेटी से परामर्श लेना होगा।'
हाल ही में कॉमर्स एंड इंडस्ट्री मिनिस्टर सुरेश प्रभु ने राज्यों से सरकारी खरीद में देश में ही बने प्रॉडक्ट को प्राथमिकता देने के लिए दिशानिर्देश बनाने को कहा था ताकि लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया जा सके। डीआईपीपी ने पिछले साल सभी विभागों को निर्देश दिया था कि वे घरेलू मैन्युफैक्चरर्स के खिलाफ प्रतिबंधों और भेदभाव वाली शर्तों की समीक्षा के लिए एक सिस्टम बनाएं, खासतौर से राज्य सरकारों की ओर से जारी होने वाली निविदाओं के लिए। नए नियम में यह भी कहा गया कि बिडर्स की योग्यता से जुड़ी ऐसी कोई शर्त नहीं होगी, जो देश में ही बने प्रॉडक्ट्स पर विदेशी प्रॉडक्ट्स को प्राथमिकता दे।