नई दिल्ली
देश की जीडीपी वृद्धि में मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरावट अपेक्षित थी, लेकिन आंकड़ों में आई गिरावट दिखाती है कि यह समस्या क्षणिक नहीं बल्कि संरचनात्मक है। एसबीआई की स्टडी रिपोर्ट इकोरेप में यह निष्कर्ष निकाला गया है।
भारत की आर्थिक वृद्धि दर अप्रैल-जून की तिमाही में 3 साल के निचले स्तर 5.7 प्रतिशत पर आ गई। यह विनिर्माण गतिविधियों में नरमी के बीच जीएसटी के कार्यान्वयन को लेकर अनिश्चितता से हुई दिक्कतों को रेखांकित करती है। रिपोर्ट में विशेष रूप से वृद्धि पर जीएसटी के नकारात्मक असर के बारे में भी बताया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि जीएसटी से पहले मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में डीस्टॉकिंग और इसके जीडीपी पर असर को लेकर खूब चर्चा हो रही थी, लेकिन उपभोक्ता और निवेश केंद्रित क्षेत्रों में तो डीस्टॉकिंग 2016-17 में पहले ही जोर पकड़ रही थी। रिपोर्ट में 1695 सूचीबद्ध फर्मों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
इसमें कहा गया है कि 2016 17 में पहले ही नरमी थी, जिसमें कंपनियों ने अपने मौजूदा भंडार को निकालने पर जोर दिया। इसमें कहा गया है कि 2016-17 में सामान्य नरमी और अनिश्चित महौल से निवेश केंद्रित क्षेत्रों पर अधिक असर पड़ा। वहीं उपभोक्ता केंद्रित क्षेत्र नोटबंदी के कारण प्रभावित हुए। इसके अनुसार विभिन्न तथ्यों को मिलाकर देखा जाए तो जीडीपी वृद्धि के आने वाली तिमाहियों में पटरी पर लौटने की उम्मीद नहीं है, बल्कि अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ही वृद्धि पटरी पर आ सकती है।
इस खबर को गुजराती में पढ़ें।
देश की जीडीपी वृद्धि में मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरावट अपेक्षित थी, लेकिन आंकड़ों में आई गिरावट दिखाती है कि यह समस्या क्षणिक नहीं बल्कि संरचनात्मक है। एसबीआई की स्टडी रिपोर्ट इकोरेप में यह निष्कर्ष निकाला गया है।
भारत की आर्थिक वृद्धि दर अप्रैल-जून की तिमाही में 3 साल के निचले स्तर 5.7 प्रतिशत पर आ गई। यह विनिर्माण गतिविधियों में नरमी के बीच जीएसटी के कार्यान्वयन को लेकर अनिश्चितता से हुई दिक्कतों को रेखांकित करती है। रिपोर्ट में विशेष रूप से वृद्धि पर जीएसटी के नकारात्मक असर के बारे में भी बताया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि जीएसटी से पहले मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में डीस्टॉकिंग और इसके जीडीपी पर असर को लेकर खूब चर्चा हो रही थी, लेकिन उपभोक्ता और निवेश केंद्रित क्षेत्रों में तो डीस्टॉकिंग 2016-17 में पहले ही जोर पकड़ रही थी। रिपोर्ट में 1695 सूचीबद्ध फर्मों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
इसमें कहा गया है कि 2016 17 में पहले ही नरमी थी, जिसमें कंपनियों ने अपने मौजूदा भंडार को निकालने पर जोर दिया। इसमें कहा गया है कि 2016-17 में सामान्य नरमी और अनिश्चित महौल से निवेश केंद्रित क्षेत्रों पर अधिक असर पड़ा। वहीं उपभोक्ता केंद्रित क्षेत्र नोटबंदी के कारण प्रभावित हुए। इसके अनुसार विभिन्न तथ्यों को मिलाकर देखा जाए तो जीडीपी वृद्धि के आने वाली तिमाहियों में पटरी पर लौटने की उम्मीद नहीं है, बल्कि अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में ही वृद्धि पटरी पर आ सकती है।
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