जोसेफ बर्नाड, नई दिल्ली
नोटबंदी का असर अब सरकारी खजाने और सरकारी बैंकों पर साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। बैंकिंग सिस्टम्स को दुरुस्त करने के लिए सरकार को 1.80 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। हालत यह है कि सरकार के पास इतना पैसा नहीं है कि बैंकिंग सिस्टम में डाल पाए। यही कारण है कि सरकार ने बैंकों से साफ कह दिया है कि उनको पैसा नहीं दिया जा सकता। ऐसे में वे अपना कारोबार और लाभ बढ़ाने के लिए खुद ही इंतजाम करें।
बैंकों से कहा गया है कि जो भी उनकी शाखाएं, चाहे वह विदेश में हो या देश में, अगर घाटे में चल रही हैं तो उनको बंद कर दिया जाए या फिर अन्य शाखाओं के साथ उसका मर्जर कर दिया जाए। बैंकों को अपने नॉन-कोर ऐसेट्स बेचने को भी कहा गया है। कुछ सरकारी बैंकों ने यह प्रक्रिया शुरू कर दी है। ऐसे में जल्द ही सरकारी बैंकों की सर्विसेज का महंगा होना तय है और साथ में छंटनी होने की भी आशंका है। अगर बैंकों ने नुकसान में चलने वाली विदेशी और देसी शाखाओं को बंद किया या फिर उसका विलय किया तो कर्मचारियों की छंटनी होगी। इंडियन ओवरसीज बैंक ने मलयेशिया में घाटे में चलने वाली शाखा को बंद करने का ऐलान किया है।
चार्ज बढ़ने के मायने
एचडीएफसी और अन्य प्राइवेट बैंकों के साथ सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई ने बैंकों और एटीएम से कैश विदड्राल की सीमा तय की। एसबीआई ने तो मिनिमम बैलेंस को लेकर भी कड़े नियम बनाए हैं। अब मेट्रों में रहने वाले एसबीआई ग्राहकों को अपने बैंक अकाउंट्स में कम से कम 5000 रुपये जमा रखने होंगे, वरना उसे पेनल्टी देनी होगी। एसबीआई के बाद अन्य सरकारी बैंक भी अपनी सर्विसेज को महंगा करने जा रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर के सूत्रों का कहना है कि नोटबंदी के दौरान सरकार ने एटीएम से कैश निकालने पर सभी चार्ज खत्म कर दिये थे। इससे बैंकों को काफी नुकसान हुआ है। कई बैंकों की हालत तो यह है कि उनको अपने ब्रांच के साथ एटीएम को चलाने में दिक्कतें आ रही हैं। लागत खर्च निकल नहीं रहा है।
क्या हैं कारण
नोटबंदी के कारण सरकारी और प्राइवेट बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ में जोरदार गिरावट आई है। बैंकों के पास, जहां लोन लेने वालों की लाइनें लगती थीं, अब लोन लेने वालों की संख्या घटकर आधी रह गई है। एक प्राइवेट बैंक के उच्चाधिकारी के अनुसार क्रेडिट ग्रोथ अगर दहाई अंक पर चली जाए, तो गनीमत होगी। सरकार ने सरकारी बैंकों को नॉन कोर ऐसेट बेचने को कहा है। नॉन कोर ऐसेट का मतलब है, बैंकों का किसी फर्म में हिस्सेदारी या फिर कोई जॉइंट वेंचर। अब बैंकों को इसको बेचना होगा। पीएनबी की एमडी और चीफ एक्जीक्युटिव उषा अनंत सुब्रह्मण्यम का कहना है कि हमारी इक्विटी, यूटीआई और पीएनबी हाउसिंग फाइनैंस में है। हम इसको बेचने की संभावनाओं पर विचार कर रहे है।
नोटबंदी का असर अब सरकारी खजाने और सरकारी बैंकों पर साफ तौर पर दिखाई दे रहा है। बैंकिंग सिस्टम्स को दुरुस्त करने के लिए सरकार को 1.80 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। हालत यह है कि सरकार के पास इतना पैसा नहीं है कि बैंकिंग सिस्टम में डाल पाए। यही कारण है कि सरकार ने बैंकों से साफ कह दिया है कि उनको पैसा नहीं दिया जा सकता। ऐसे में वे अपना कारोबार और लाभ बढ़ाने के लिए खुद ही इंतजाम करें।
बैंकों से कहा गया है कि जो भी उनकी शाखाएं, चाहे वह विदेश में हो या देश में, अगर घाटे में चल रही हैं तो उनको बंद कर दिया जाए या फिर अन्य शाखाओं के साथ उसका मर्जर कर दिया जाए। बैंकों को अपने नॉन-कोर ऐसेट्स बेचने को भी कहा गया है। कुछ सरकारी बैंकों ने यह प्रक्रिया शुरू कर दी है। ऐसे में जल्द ही सरकारी बैंकों की सर्विसेज का महंगा होना तय है और साथ में छंटनी होने की भी आशंका है। अगर बैंकों ने नुकसान में चलने वाली विदेशी और देसी शाखाओं को बंद किया या फिर उसका विलय किया तो कर्मचारियों की छंटनी होगी। इंडियन ओवरसीज बैंक ने मलयेशिया में घाटे में चलने वाली शाखा को बंद करने का ऐलान किया है।
चार्ज बढ़ने के मायने
एचडीएफसी और अन्य प्राइवेट बैंकों के साथ सबसे बड़े सरकारी बैंक एसबीआई ने बैंकों और एटीएम से कैश विदड्राल की सीमा तय की। एसबीआई ने तो मिनिमम बैलेंस को लेकर भी कड़े नियम बनाए हैं। अब मेट्रों में रहने वाले एसबीआई ग्राहकों को अपने बैंक अकाउंट्स में कम से कम 5000 रुपये जमा रखने होंगे, वरना उसे पेनल्टी देनी होगी। एसबीआई के बाद अन्य सरकारी बैंक भी अपनी सर्विसेज को महंगा करने जा रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर के सूत्रों का कहना है कि नोटबंदी के दौरान सरकार ने एटीएम से कैश निकालने पर सभी चार्ज खत्म कर दिये थे। इससे बैंकों को काफी नुकसान हुआ है। कई बैंकों की हालत तो यह है कि उनको अपने ब्रांच के साथ एटीएम को चलाने में दिक्कतें आ रही हैं। लागत खर्च निकल नहीं रहा है।
क्या हैं कारण
नोटबंदी के कारण सरकारी और प्राइवेट बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ में जोरदार गिरावट आई है। बैंकों के पास, जहां लोन लेने वालों की लाइनें लगती थीं, अब लोन लेने वालों की संख्या घटकर आधी रह गई है। एक प्राइवेट बैंक के उच्चाधिकारी के अनुसार क्रेडिट ग्रोथ अगर दहाई अंक पर चली जाए, तो गनीमत होगी। सरकार ने सरकारी बैंकों को नॉन कोर ऐसेट बेचने को कहा है। नॉन कोर ऐसेट का मतलब है, बैंकों का किसी फर्म में हिस्सेदारी या फिर कोई जॉइंट वेंचर। अब बैंकों को इसको बेचना होगा। पीएनबी की एमडी और चीफ एक्जीक्युटिव उषा अनंत सुब्रह्मण्यम का कहना है कि हमारी इक्विटी, यूटीआई और पीएनबी हाउसिंग फाइनैंस में है। हम इसको बेचने की संभावनाओं पर विचार कर रहे है।