[ निष्ठा सलूजा | नई दिल्ली ]
सरकार ने पब्लिक सेक्टर की कंपनियों और ऑफिशियल एजेंसियों के सोलर टेंडर के लिए एक टाइमटेबल बनाया है, ताकि बड़े प्रोजेक्ट्स के बीच अच्छा-खासा गैप रहे और उसके चलते बाजार का हुलिया बिगड़ न जाए। सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट सोलर पावर कैपेसिटी एडिशन के टारगेट के साथ मौजूदा और अगले फिस्कल ईयर में हर साल 30,000 मेगावॉट के लिए बिड मंगाने का प्लान बनाया है। इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि इससे दोनों साल प्रोजेक्ट्स पाइपलाइन में नियमितता रहेगी, किसी एक साल बहुत ज्यादा और दूसरे साल बहुत कम बिड नहीं आएगी जिससे समूचे वैल्यू चेन पर दबाव नहीं बनेगा।
पावर और न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी मिनिस्टर आर के सिंह ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए सोलर कैपेसिटी के लिए पूरे साल बिडिंग सुनिश्चित करने के लिए उनकी समय सारिणी बनाने का निर्देश दिया। इस पर मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी ने सोलर बिड जारी करने वाले संगठनों को पत्र लिखा और कहा कि कई संगठनों की बिडिंग एक साथ आने से बाजार का संतुलन बिगड़ता है। ऐसी हालत बनने से रोकने के लिए एक समय सारिणी अपनाए जाने की जरूरत है। ईटी ने इस लेटर की कॉपी देखी है।
सोलर एडवाइजरी फर्म जेनसोल के डायरेक्टर अनमोल जग्गी कहते हैं कि मिनिस्ट्री का यह कदम लॉजिकल है क्योंकि इसमें सभी शेयरहोल्डर्स को अपने हिसाब से इनवेस्टमेंट प्लान करने में मदद मिलती है। एक सरकारी अधिकारी ने पहचान जाहिर करने की शर्त पर कहा कि किसी एक महीने में बड़ी कैपेसिटी के लिए बिडिंग मंगाने से टैरिफ पर भी दबाव बनता है। ऐसे में डिवेलपर्स के कार्टेल बनाने और बिड में ऊंचा टैरिफ मांगे जाने की संभावना रहती है जिनसे टेंडर एक्टिविटी बाधित होती है।
जग्गी कहते हैं, 'अगर किसी एक महीने या किसी खास तिमाही में बहुत से टेंडर आ जाते हैं तो इससे टैरिफ और समूचे सिस्टम पर दबाव बनता है। अगर टेंडर पूरे साल नियमित अंतराल पर जारी किए जाते हैं तो प्रोजेक्ट एग्जिक्यूशन की टाइमलाइन भी आसानी से पूरी की जा सकती है।' सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) अब दिसंबर, मार्च, जून और सितंबर में बिड्स मंगाएगी जबकि सरकारी एजेंसियों के लिए फरवरी, मई, अगस्त और नवंबर का महीना तय किया गया है। दूसरे पीएसयू को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में बिड मंगानी होगी।
ब्रिज टू इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विनय रुस्तगी कहते हैं, 'ऐतिहासिक रूप से टेंडर के टाइमटेबल में थोड़ी बहुत विजिबिलिटी रही है। एजेंसियों के बीच तालमेल नहीं होने से डिवेलपर्स को बहुत उलझन होती रही है, क्योंकि उससे उन्हें सही तरह से प्लानिंग करने का मौका नहीं मिल पाता है। इसके चलते बिडिंग के उनके तरीके एकसमान नहीं रहते।'
सरकार ने पब्लिक सेक्टर की कंपनियों और ऑफिशियल एजेंसियों के सोलर टेंडर के लिए एक टाइमटेबल बनाया है, ताकि बड़े प्रोजेक्ट्स के बीच अच्छा-खासा गैप रहे और उसके चलते बाजार का हुलिया बिगड़ न जाए। सरकार ने 2022 तक 100 गीगावॉट सोलर पावर कैपेसिटी एडिशन के टारगेट के साथ मौजूदा और अगले फिस्कल ईयर में हर साल 30,000 मेगावॉट के लिए बिड मंगाने का प्लान बनाया है। इंडस्ट्री के सूत्रों का कहना है कि इससे दोनों साल प्रोजेक्ट्स पाइपलाइन में नियमितता रहेगी, किसी एक साल बहुत ज्यादा और दूसरे साल बहुत कम बिड नहीं आएगी जिससे समूचे वैल्यू चेन पर दबाव नहीं बनेगा।
पावर और न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी मिनिस्टर आर के सिंह ने इन बातों को ध्यान में रखते हुए सोलर कैपेसिटी के लिए पूरे साल बिडिंग सुनिश्चित करने के लिए उनकी समय सारिणी बनाने का निर्देश दिया। इस पर मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी ने सोलर बिड जारी करने वाले संगठनों को पत्र लिखा और कहा कि कई संगठनों की बिडिंग एक साथ आने से बाजार का संतुलन बिगड़ता है। ऐसी हालत बनने से रोकने के लिए एक समय सारिणी अपनाए जाने की जरूरत है। ईटी ने इस लेटर की कॉपी देखी है।
सोलर एडवाइजरी फर्म जेनसोल के डायरेक्टर अनमोल जग्गी कहते हैं कि मिनिस्ट्री का यह कदम लॉजिकल है क्योंकि इसमें सभी शेयरहोल्डर्स को अपने हिसाब से इनवेस्टमेंट प्लान करने में मदद मिलती है। एक सरकारी अधिकारी ने पहचान जाहिर करने की शर्त पर कहा कि किसी एक महीने में बड़ी कैपेसिटी के लिए बिडिंग मंगाने से टैरिफ पर भी दबाव बनता है। ऐसे में डिवेलपर्स के कार्टेल बनाने और बिड में ऊंचा टैरिफ मांगे जाने की संभावना रहती है जिनसे टेंडर एक्टिविटी बाधित होती है।
जग्गी कहते हैं, 'अगर किसी एक महीने या किसी खास तिमाही में बहुत से टेंडर आ जाते हैं तो इससे टैरिफ और समूचे सिस्टम पर दबाव बनता है। अगर टेंडर पूरे साल नियमित अंतराल पर जारी किए जाते हैं तो प्रोजेक्ट एग्जिक्यूशन की टाइमलाइन भी आसानी से पूरी की जा सकती है।' सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) अब दिसंबर, मार्च, जून और सितंबर में बिड्स मंगाएगी जबकि सरकारी एजेंसियों के लिए फरवरी, मई, अगस्त और नवंबर का महीना तय किया गया है। दूसरे पीएसयू को जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में बिड मंगानी होगी।
ब्रिज टू इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विनय रुस्तगी कहते हैं, 'ऐतिहासिक रूप से टेंडर के टाइमटेबल में थोड़ी बहुत विजिबिलिटी रही है। एजेंसियों के बीच तालमेल नहीं होने से डिवेलपर्स को बहुत उलझन होती रही है, क्योंकि उससे उन्हें सही तरह से प्लानिंग करने का मौका नहीं मिल पाता है। इसके चलते बिडिंग के उनके तरीके एकसमान नहीं रहते।'