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मिलते-जुलते नाम वाली दवाओं पर डेटाबैंक बनाएगी सरकार!

केंद्र ससकार सभी मेडिसिन ब्रांड्स का डेटाबैंक बनाने पर विचार कर रही है, ताकि दवा कंपनियों को एक ही नाम या मिलते-जुलते नाम से दवाएं मार्केट में लॉन्च करने से रोका जा सके।

इकनॉमिक टाइम्स 30 Nov 2018, 9:59 am
प्रभा राघवन, नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम medicines1

दवा कंपनियों को एक ही नाम या मिलते-जुलते नाम से दवाएं मार्केट में लॉन्च करने से रोकने के लिए सरकार सभी मेडिसिन ब्रांड्स का डेटाबैंक बनाने पर विचार कर रही है। इस मामले से जुड़े एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि इसमें खासतौर से उन दवाओं पर ध्यान दिया जाएगा, जिनका इस्तेमाल एक जैसा नाम होने के बावजूद अलग-अलग बीमारियों के इलाज में होता है। उन्होंने बताया कि देश की सबसे बड़ी ड्रग एडवाइजरी बॉडी, द ड्रग्स टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड (डीटीएबी) अपनी बैठक में इससे जुड़ा सिस्टम बनाने पर चर्चा करेगी क्योंकि यह समस्या काफी व्यापक है और पूरे देश में फैली हुई है।

2013 में इंडियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल प्रैक्टिस में छपी एक स्टडी रिपोर्ट में पाया गया था कि देश में 10,000 से ज्यादा मेडिसिन ब्रांड्स के नाम एक जैसे दिखते हैं या नाम लेने पर एक जैसे सुनाई पड़ते हैं। इंडस्ट्री के एक जानकार के मुताबिक, सबसे खतरनाक बात यह है कि कुछ मामलों में एक जैसी दवाओं के नाम हैं, लेकिन उनमें से कुछ का इस्तेमाल दूसरी बीमारी के इलाज में होता है। उदाहरण के लिए, ब्रांड 'मेडजोल' का इस्तेमाल कम से कम चार अलग बीमारियों के इलाज में होता है। इसमें से एक दवा एंटी-फंगल है, एक एंटी-बायोटिक है और एक पेट में गैस से जुड़ी समस्या के इलाज के लिए है।

एक सूत्र ने बताया, 'यह खतरनाक है। एक ही जैसे या मिलते-जुलते नाम से मरीज को गलती से ऐसी दवा दी जा सकती है, जो उसे नहीं लेना चाहिए। ऐसे में कई तरह के साइड इफेक्ट्स और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।' एक और सीनियर अधिकारी ने बताया कि इसकी काफी संभावना है कि बिना सरकार की जानकारी के एक ही नाम की कई दवाएं बेची जा रही हों, जो अलग-अलग बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होती हैं। अधिकारी ने बताया, 'सरकार इसे गंभीरता से ले रही है क्योंकि यह मरीजों और डॉक्टरों के बीच भ्रम पैदा करने वाला है।'

डीटीएबी के एक अधिकारी ने बताया कि बोर्ड सभी ड्रग ब्रांड के लिए एक सेंट्रलाइज्ड डेटाबेस बनाने पर विचार कर रहा है, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि एक प्रॉडक्ट के लिए रजिस्टर्ड हुआ ब्रांड का इस्तेमाल दूसरे प्रॉडक्ट के लिए न हो। इससे सरकार कंपनियों को उन ब्रांडनेम वाली दवाओं के मार्केटिंग से रोक सकती है, जिसे पहले ही किसी दूसरी कंपनी ने रजिस्टर्ड करा लिया है। मामले से वाकिफ एक और शख्स ने बताया कि फिलहाल न ही देश की सबसे बड़ी ड्रग रेगुलेटरी बॉडी सीडीएससीओ और न ही ट्रेडमार्क ऑफिस का दवाओं के ब्रांड और ट्रेड नामों पर कोई कंट्रोल है।

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