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कीमत कम बताकर अब माल का आयात करना होगा मुश्किल

अब शिपिंग लाइन्स और कंसाइनर्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि बिल ऑफ लैंडिंग में माल की वास्तविक वैल्यू सहित कई जानकारियां दर्ज हों।

इकनॉमिक टाइम्स 16 Jul 2019, 8:17 am
नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम imort

कस्टम ड्यूटी बचाने के मकसद से इम्पोर्टेड माल पर की जाने वाली अंडर-इनवॉइसिंग पर अगले महीने से और शिकंजा कसने जा रहा है। 1 अगस्त से लागू होने जा रहे सी कार्गो मैनिफेस्ट ऐंड ट्रांस-शिपमेंट रेगुलेशंस (SCMT) की नई गाइडलाइंस के तहत अब शिपिंग लाइन्स और कंसाइनर्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि बिल ऑफ लैंडिंग में माल की वास्तविक वैल्यू सहित कई जानकारियां दर्ज हों। कई विदेशी सप्लायर्स खासकर चाइनीज कंपनियों ने इंडियन बायर्स को सचेत करना शुरू कर दिया है।

चाइनीज सामान के भारतीय बाजारों में सस्ता होने के पीछे एक वजह यह भी रही है कि इम्पोर्टर सप्लायर्स के साथ मिलकर अंडर-इनवॉइसिंग करते हैं, जिससे कस्टम ड्यूटी बहुत कम चुकानी पड़ती है। कई बार इम्पोर्टर्स की मांग पर विदेशी मैन्युफैक्चरर्स सामान पर एमआरपी दर्ज ही नहीं करते या कम दर्ज करते हैं। जीएसटी लागू होने के बाद से अंडर-इनवॉइसिंग पर कई तरह के तकनीकी पहरे खड़े हो गए हैं, लेकिन नए SCMT रेगुलेशंस से कैरियर्स या शिपिंग लाइंस जैसी थर्ड पर्टीज की जवाबदेही भी बढ़ जाएगी।

इसके तहत सभी शिपिंग लाइन्स को यह पक्का करना होगा कि भारत में आने वाले या भारतीय पोर्ट पर उतारकर किसी और देश भेजे जाने वाले माल का बिल ऑफ लैंडिंग पिछले स्टॉप से रवाना होने के 72 घंटे पहले तैयार हो। इसमें माल की इनवॉइस वैल्यू, वजन, मात्रा के अलावा शिपर का नाम, पता, शहर, कार्गो आइटम कोड, एचएस कोड, यूएनओ कोड और कंसाइनी की सभी डिटेल्स दर्ज होनी चाहिए। पैकेजिंग और पैकेजिंग कंपनियों की डिटेल्स भी मांगी गई है।

हालांकि जानकारों का कहना है कि शिपर्स की ओर से वैल्यू दर्ज कराने का मकसद कस्टम ड्यूटी की गणना आसान और सटीक बनाना है। चांदनी चौक में इलेक्ट्रिकल उत्पादों के इम्पोर्टर और होलसेलर राजन आहूजा ने बताया कि यह उनके लिए चिंता हो सकती है, जो अंडरवैल्यूएशन करते हैं। चूंकि बिल ऑफ लैंडिंग शिपर्स के हाथ चलने वाला दस्तावेज है और यह बायर-सेलर के बीच कॉन्ट्रैक्ट पर हो रहे ट्रांसपोर्टेशन का सर्टिफिकेट भी है। ऐसे में कस्टम वैल्यू में किसी तरह की मिसमैच को इससे भी पकड़ सकता है।

स्ट्रेट बिल ऑफ लैंडिंग और नेगोशिएबल बिल ऑफ लैंडिंग में आम तौर पर क्वांटिटी ही दर्ज होती रही है, लेकिन उसी के साथ अटैच अन्य डॉक्युमेंट्स में वैल्यू दर्ज भी रहती है। जीएसटी लागू होने के बाद अंडरवैल्यूड इम्पोर्टेड गुड्स को लोकल मार्केट में बेचना भी मुश्किल हो गया है। अगर इम्पोर्ट में बोगस बिलिंग की है तो सेल्स में भी करनी होगी, जो संभव नहीं है। उन्होंने बताया कि पिछले दो साल से नए कस्टम रेगुलेशंस के चलते इम्पोर्टर्स का बहुत सारा माल पोर्ट पर ही पड़ा रहता है, जिसे बाद में सरकार नीलाम या नष्ट कर देती है।

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