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Satellite Broadband : बिना तार के घर में सीधे आसमान से उतरेगा इंटरनेट, जानें क्या है सैटलाइट ब्रॉडबैंड

what is Broadband from Space : कोरोना वायरस से पैदा हुई कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को बंधक बना दिया। सभी लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए और दफ्तरों के कामकाज भी घरों से ही निपटाए जाने लगे।

नवभारतटाइम्स.कॉम 22 Nov 2021, 2:43 pm
Satellite Broadband in India News : कोरोना वायरस से पैदा हुई कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को बंधक बना दिया। सभी लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए और दफ्तरों के कामकाज भी घरों से ही निपटाए जाने लगे। महीनों संपूर्ण लॉकडाउन के कारण महानगरों और बड़े शहरों से लोग छोटे शहरों, कस्बों और गावों में अपने-अपने घरों से ही ऑफिस के काम करने को मजबूर हुए। अब भी कई कंपनियां अपने कुछ कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम (WFH) की सुविधा दे रखी हैं। लेकिन, कस्बाई इलाकों और गांवों में इंटरनेट की उपलब्धता का संकट है। बहुत से इलाकों में ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी है ही नहीं या है भी तो उसकी स्पीड की गंभीर समस्या है।
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Satellite Broadband : बिना तार के घर में सीधे आसमान से उतरेगा इंटरनेट, जानें क्या है सैटलाइट ब्रॉडबैंड


अंतरिक्ष से घर में उतरेगा इंटरनेट

उधर, भविष्य में भी वर्क फ्रॉम होम कल्चर के जोर पकड़ने की पूरी संभावना दिख रही है जिस कारण दूर-दराज के इलाकों में हाई स्पीड इंटरनेट नेटवर्क की भारी जरूरत महसूस हो रही है। अपने इनोवेटिव आइडियाज के लिए दुनियाभर में मशहूर अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क ने इस मौके को पहचाना और उन्होंने भारत में स्पेस इंटरनेट लाने के लिए कंपनी गठित कर दी। मस्क की भारतीय कंपनी 'स्टारलिंक इंटरनेट' पूरे देश में हाई स्पीड इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने का वादा कर रही है। आइए जानते हैं, कंपनी सीधे अंतरिक्ष से ब्रॉडबैंड (BFS) की सुविधा कैसे प्रदान करेगी...

​क्या है बीएफएस सर्विस?

ब्रॉडबैंड फ्रॉम स्पेस (BFS) ऐसा बेतार संचार तंत्र है जो अंतरिक्ष में स्थापित सैटलाइट नेटवर्क के जरिए ग्राहकों के घरों या दफ्तरों में तेज गति से इंटरेनट सेवा (High speed internet service) प्रदान करता है। इसे सैटलाइट ब्रॉडबैंड भी कहा जाता है। यह 300 एमबी प्रति सेकंड (300mbps) तक की इंटरनेट स्पीड मुहैया करवा सकता है। हालांकि, इसकी शुरुआती स्पीड 100mbps होगी।

​कैसे काम करता है सैटलाइट इंटरनेट

सैटलाइट इंटरनेट या बीएफएस जियो स्टेशनरी (GEO) या लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटलाइटों का उपयोग करता है। जियो मतलब अंतरिक्ष में स्थापित उपग्रह जबकि लियो का मतलब पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित उपग्रह से है। बहरहाल, सैटलाइट नेटवर्क ऑपरेशन के केंद्र में खास इलाके में स्थापित अर्थ स्टेशन गेटवे होता है। यही गेटवे सैटलाइन नेटवर्क को नेट से जोड़ता है। यहां से डेटा लेने के लिए ग्राहक को यूजर एक्सेस टर्मिनल (UT) डिवाइस और सैटलाइट नेटवर्क से जुड़ने के लिए एक एंटिना की जरूरत पड़ती है।

​बीएफएस की चुनौतियां

सैटलाइट ब्रॉडबैंड और सर्विस की लागत करीब अभी 20 डॉलर या करीब 1,500 रुपये प्रति जीबी आ रही है। इसके कुछ प्रमुख कारणों में एक यह है कि सैटकॉम कंपनियां विदेशी सैटलाइट कपैसिटी को सीधे लीज पर नहीं ले सकती हैं। उन्हें इसके लिए DoS का सहारा लेना होता है जिससे लागत वैश्विक औसत दर से 10 गुना तक पहुंच जाती है। अगर, सरकारी नीतियों से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाएं और यूटी डिवाइस की कीमत कम हो जाए तो ब्रॉडबैंड रेट 100 रुपये प्रति जीबी तक आ सकता है। अभी यूटी की कीमत करीब 1,000 डॉलर यानी करीब 75,000 रुपये है। सैटलाइट नेटवर्क से सस्ता इंटरनेट सुनिश्चित करने के लिए लियो सैटलाइट की नई उन्नत तकनीक लानी होगी। साथ ही, ग्राहकों की तादाद में बड़ी वृद्धि की जरूरत होगी।

​देश में अभी क्या चल रहा है?

उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार मार्च 2022 तक स्पेसकॉम पॉलिसी लेकर आ जाएगी। लियो सैटलाइट ऑपरेटर्स को लाइसेंस देने के लिए नियम बनाने होंगे। साथ ही, 28 गीगा हर्ट्ज सैटलाइट स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा 5G नेटवर्क के लिए सुरक्षित रखना होगा। इसके अलावा, सैटलाइट यूटी और सैटलाइट गेटवे के लिए स्पेक्ट्रम बैंड के स्पष्ट नियम बनाने होंगे।

​कौन-कौन सी कंपनियां कर रहीं कोशिश?

भारती एयरटेल समर्थित वनवेब (OneWeb), एलन मस्क की स्पेसएक्स (SpaceX), कनाडा की कंपनी टेलिसेट (Telesat) और ऐमजॉन की प्रॉजेक्ट कुइपर (Projecti Kuiper) जैसी कंपनियां भारत में सैटलाइट नेटवर्क देने की योजना बना रही है। ये कंपनियां मौजूदा टेलिकॉम कंपनियों और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के साथ डील करेंगी। अमेरिकी कंपनी ह्यूज (Hughes) भारत के जियो सैटलाइट मार्केट में 50 करोड़ डॉलर का निवेश करने का मन बना रही है।

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