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एक साल में 1.09 लाख टन बिस्किट खाते हैं महाराष्ट्र के लोग

देशभर में लोग प्रत्येक वर्ष 36 लाख टन बिस्किट टन खाते हैं। इनमे सबसे अधिक बिस्किट के शौकीन...

भाषा 26 Feb 2017, 5:21 pm
जयपुर
नवभारतटाइम्स.कॉम maharashtra largest consumer of low price biscuits
एक साल में 1.09 लाख टन बिस्किट खाते हैं महाराष्ट्र के लोग


देशभर में लोग प्रत्येक वर्ष 36 लाख टन बिस्किट टन खाते हैं। इनमे सबसे अधिक बिस्किट के शौकीन लोग महाराष्ट्र में हैं। महाराष्ट्रवासी एक साल में एक लाख नब्बे टन बिस्किट खाते हैं जबकि सबसे कम बिस्किट खाने वालों में पंजाब और हरियाणा के लोग हैं।

बिस्किट मैन्युफ़ैक्चरर्स वेलफेयर असोसिएशन के अनुसार देश में गत वर्ष 36 लाख टन बिस्किट की खपत हुई, इसमें हर साल आठ से दस प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। एक अनुमान के अनुसार देश में 37,500 करोड़ रुपये के बिस्किट की बिक्री सालाना हो रही है। असोसिएशन के अध्यक्ष हरेश दोषी ने कहा कि लोग अब केवल स्वाद के लिए नहीं बल्कि नाश्ते, स्वास्थ्य कारणों और दाल-रोटी के स्थान पर भी बिस्किट खा रहे हैं, जिससे इनकी मांग लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले केवल ग्लूकोज बिस्किट थे लेकिन अब बाजार में कई किस्म के बिस्किट उपलब्ध हैं। हरेश का कहना है कि सरकार ने यदि 100 रुपये तक की कीमत वाले बिस्किट को जीएसटी के दायरे में शामिल किया तो सरकार को मिलने वाले कर राजस्व में बढ़ोतरी तो नहीं होगी, लेकिन यह निम्न वर्ग की पहुंच से दूर हो जाएगा।

बिस्किट खाने में दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं, जहां सालाना करीबन एक लाख 85 हजार टन बिस्किट की खपत है। तमिलनाडु एक लाख ग्यारह हजार, पश्चिम बंगाल एक लाख दो हजार, कर्नाटक 93 हजार, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ अस्सी हजार, बिहार और झारखंड में बासठ हजार पांच सौ, राजस्थान बासठ हजार पांच सौ, गुजरात 72 हजार, आंध्र प्रदेश के लोग बावन हजार पांच सौ टन बिस्किट खाते हैं।

असोसिएशन अध्यक्ष के अनुसार दक्षिणी राज्यों में सौ रुपये तक की कीमत के बिस्किट जिनमें सामान्यत ग्लूकोज बिस्किट आते हैं, सबसे अधिक खपत है। इसका मुख्य कारण वहां के लोग बिस्किट को खाने के रूप में भी सेवन करते है। कई लोग तो दिनभर काम के दौरान बिस्किट के सहारे ही अपना पेट भर लेते है। उन्होंने कहा कि बिस्किट की मांग बढ़ने का दूसरा कारण लोगों की पसंद में बदलाव है।

उन्होंने कहा कि जो पहले केवल ग्लुकोज बिस्किट लेते थे, वे अब क्रीम वाले बिस्किट खाने लगे है। गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला वर्ग ऊपरी श्रेणी में आ रहा है। कमाबेश यह स्थिति हर श्रेणी की है। बाजार में बिस्किटों की कई किस्म मौजूद होने के कारण मांग लगातार बढ़ रही है, आगे भी यही स्थिति रहेगी। असोसिएशन के अनुसार देश में खपत होने वाले 36 लाख टन बिस्किट में से 25 लाख 50 हजार टन बिस्किट संगठित क्षेत्र में और बाकी 10 लाख 50 हजार टन असंगठित क्षेत्र में जाता है।

असोसिएशन के महामंत्री राजेश जैन ने एक 100 रुपये कीमत तक के बिस्किट को जीएसटी से बाहर रखने की मांग करते हुए कहा कि देश में 715 बिस्किट उत्पादक यूनिट्स हैं। इनमें से 240 यूनिट्स केवल 100 रुपये की कीमत तक के बिस्किट बनाती हैं। ये यूनिट्स मात्र तीन से चार प्रतिशत के मुनाफे पर काम कर रही हैं। इन्हें जीएसटी के दायरे में रखने से इन इकाइयों का उत्पादन प्रभावित होगा। असोसिएशन के मनोज शारदा के अनुसार सरकार को बिस्किट की बिक्री से केंद्र एवं राज्य सरकार को सालाना 3,400 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। उन्होंने कहा, 'बिस्किट के कर ढांचे में बदलाव किया गया तो भी सरकार को मिलने वाले राजस्व में कोई अंतर नहीं आयेगा। लेकिन 100 रुपये तक कीमत बिस्किट को जीएसटी दायरे में लाया गया तो महंगा होने की वजह से यह गरीब लोगों की पहुंच से दूर हो जायेगा।'

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