नई दिल्ली
2019 के आम चुनावों से पहले 50 करोड़ भारतीयों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने की मोदी सरकार की कोशिश के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो रहीं हैं। 'ओबामा केयर' की तर्ज पर 'मोदी केयर' (आयुष्मान भारत) नाम से फेमस इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की घोषणा हुए करीब 5 महीने बीत गए हैं और सरकार अभी भी अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनियों के साथ जूझ रही है। सरकार ने अगस्त में इसकी लॉन्चिंग का लक्ष्य रखा है। जितनी बड़ी आबादी को इंश्योर्ड करने का लक्ष्य बनाया गया है वह पूरे साउथ अमेरिकी देशों की जनसंख्या से भी अधिक है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी केयर का लक्ष्य देश के 40 फीसदी गरीबों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाना है। 2017 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्वास्थ्य पर बढ़े खर्च ने 52 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है। उधर, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल मोदी सरकार पर गरीबों की तुलना में उद्योगपतियों पर ज्यादा ध्यान देने का आरोप लगाकार लगातार निशाना साध रहे हैं।
ऐसे में मोदी सरकार इस योजना को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले धरातल पर उतार जनसमर्थ हासिल करने के दबाव में है। हालांकि इस योजना के लाभार्थियों की पहचान हो चुकी है और आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार हो गया है। लेकिन इस प्रॉजेक्ट के चीफ एग्जिक्युटिव इंदू भूषण का कहना है कि सरकारी और निजी अस्पतालों व इंश्योरेंस कंपनियों को इसमें शामिल करने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाना अभी भी बाकी है।
भूषण का कहना है कि अगर हमें इतनी बड़ी संख्या में लोगों को इस सर्विस का लाभ देना है तो प्राइवेट सेक्टर की मदद के बिना ऐसा संभव नहीं है। उनका कहना है कि सरकारी सेक्टर में हमारे पास उस तरह की हेल्थकेयर कैपिसिटी नहीं है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि 15 अगस्त तक सरकार इसे लॉन्च कर लेगी। आपको बता दें कि यह इस साल की मोदी सरकार की दूसरी सबसे बड़ी लोककल्याणकारी योजना है। मार्च में सरकार ने 50 करोड़ गरीब कामगारों के लिए सोशल सिक्यॉरिटी प्रोग्राम का ड्राफ्ट बिल पेश किया। इसमें असंगठित क्षेत्र के कामगार भी शामिल हैं।
काफी बड़ा निवेश
हालांकि अबतक मोदी केयर पर आने वाले कुछ खर्च का आकलन नहीं किया गया है लेकिन गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये का वार्षिक कवर देने का वादा किया गया है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक इससे पहले की संघीय स्वास्थ्य बीमा स्कीम 10 सालों तक चलने के बावजूद लाभार्थियो में से केवल 61 फीसदी लोगों को ही कवर दे पाई थी। इरासमस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के असोसिएट प्रफेसर ओवन का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े निवेश और मैनपावर के बिना हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इस स्कीम को लागू नहीं कर सकते।
जीडीपी के मुकाबले स्वास्थ्य पर भारत का खर्च नेपाल और मालदीव जैसे छोटे पड़ोसी देशों की तुलना में भी कम है। पिछले साल दिसंबर से ही मोदी राजनीतिक झटकों का सामना कर रहे हैं। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को उनके गृहराज्य गुजरात में मुश्किल से जीत मिली। यूपी के उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा। फिर कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद बीजेपी सरकार नहीं बना पाई। मोदी सरकार को छात्रों, किसानों और वंचित समुदायों का विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सतीश मिश्रा का कहना है कि मोदी सरकार ने 2019 के चुनावों को निशाना बनाते हुए आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना को लान्च करने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की रणनीति 2009 में मेगा रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) लाकर कांग्रेस की तरह ही सत्ता में वापसी करने जैसी ही है।
राज्य भी पेश कर सकते हैं चुनौती
भारत की संघीय संरचना इस योजना को तेजी से लागू कराने के रास्ते में एक और बाधा बन सकती है। आपको बता दें कि स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सरकारों के नियंत्रण में होती हैं। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं, जो बीजेपी का विरोध भी कर रही हैं। ऐसे में वे पहले से मौजूद इंश्योरेंस सिस्टम का हवाल देकर मोदी सरकार के इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को लागू करने में अनिच्छुक दिख रहीं हैं।
2019 के आम चुनावों से पहले 50 करोड़ भारतीयों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने की मोदी सरकार की कोशिश के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो रहीं हैं। 'ओबामा केयर' की तर्ज पर 'मोदी केयर' (आयुष्मान भारत) नाम से फेमस इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की घोषणा हुए करीब 5 महीने बीत गए हैं और सरकार अभी भी अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनियों के साथ जूझ रही है। सरकार ने अगस्त में इसकी लॉन्चिंग का लक्ष्य रखा है। जितनी बड़ी आबादी को इंश्योर्ड करने का लक्ष्य बनाया गया है वह पूरे साउथ अमेरिकी देशों की जनसंख्या से भी अधिक है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी केयर का लक्ष्य देश के 40 फीसदी गरीबों को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाना है। 2017 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्वास्थ्य पर बढ़े खर्च ने 52 करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी रेखा के नीचे धकेल दिया है। उधर, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल मोदी सरकार पर गरीबों की तुलना में उद्योगपतियों पर ज्यादा ध्यान देने का आरोप लगाकार लगातार निशाना साध रहे हैं।
ऐसे में मोदी सरकार इस योजना को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले धरातल पर उतार जनसमर्थ हासिल करने के दबाव में है। हालांकि इस योजना के लाभार्थियों की पहचान हो चुकी है और आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर भी तैयार हो गया है। लेकिन इस प्रॉजेक्ट के चीफ एग्जिक्युटिव इंदू भूषण का कहना है कि सरकारी और निजी अस्पतालों व इंश्योरेंस कंपनियों को इसमें शामिल करने की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाना अभी भी बाकी है।
भूषण का कहना है कि अगर हमें इतनी बड़ी संख्या में लोगों को इस सर्विस का लाभ देना है तो प्राइवेट सेक्टर की मदद के बिना ऐसा संभव नहीं है। उनका कहना है कि सरकारी सेक्टर में हमारे पास उस तरह की हेल्थकेयर कैपिसिटी नहीं है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि 15 अगस्त तक सरकार इसे लॉन्च कर लेगी। आपको बता दें कि यह इस साल की मोदी सरकार की दूसरी सबसे बड़ी लोककल्याणकारी योजना है। मार्च में सरकार ने 50 करोड़ गरीब कामगारों के लिए सोशल सिक्यॉरिटी प्रोग्राम का ड्राफ्ट बिल पेश किया। इसमें असंगठित क्षेत्र के कामगार भी शामिल हैं।
काफी बड़ा निवेश
हालांकि अबतक मोदी केयर पर आने वाले कुछ खर्च का आकलन नहीं किया गया है लेकिन गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये का वार्षिक कवर देने का वादा किया गया है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक इससे पहले की संघीय स्वास्थ्य बीमा स्कीम 10 सालों तक चलने के बावजूद लाभार्थियो में से केवल 61 फीसदी लोगों को ही कवर दे पाई थी। इरासमस स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के असोसिएट प्रफेसर ओवन का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं में बड़े निवेश और मैनपावर के बिना हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इस स्कीम को लागू नहीं कर सकते।
जीडीपी के मुकाबले स्वास्थ्य पर भारत का खर्च नेपाल और मालदीव जैसे छोटे पड़ोसी देशों की तुलना में भी कम है। पिछले साल दिसंबर से ही मोदी राजनीतिक झटकों का सामना कर रहे हैं। मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को उनके गृहराज्य गुजरात में मुश्किल से जीत मिली। यूपी के उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा। फिर कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद बीजेपी सरकार नहीं बना पाई। मोदी सरकार को छात्रों, किसानों और वंचित समुदायों का विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है।
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो सतीश मिश्रा का कहना है कि मोदी सरकार ने 2019 के चुनावों को निशाना बनाते हुए आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा योजना को लान्च करने की योजना बनाई है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की रणनीति 2009 में मेगा रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) लाकर कांग्रेस की तरह ही सत्ता में वापसी करने जैसी ही है।
राज्य भी पेश कर सकते हैं चुनौती
भारत की संघीय संरचना इस योजना को तेजी से लागू कराने के रास्ते में एक और बाधा बन सकती है। आपको बता दें कि स्वास्थ्य सेवाएं राज्य सरकारों के नियंत्रण में होती हैं। आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं, जो बीजेपी का विरोध भी कर रही हैं। ऐसे में वे पहले से मौजूद इंश्योरेंस सिस्टम का हवाल देकर मोदी सरकार के इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को लागू करने में अनिच्छुक दिख रहीं हैं।