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मुनाफा बनाए रखने को भारत छोड़ रहे हैं मल्टीनैशनल बैंक

विदेशी बैंकों का मार्केट शेयर कम होता जा रहा है। 2005 में विदेशी बैंकों का भारत में अडवांस शेयर 6.55 पर्सेंट था, जो 2010 में 4.65 पर्सेंट हो गया और 2015 में तो यह 4.41 पर्सेंट पर पहुंच गया। इसी साल जनवरी में यूके स्थित बैंक बार्कलेज ने भारत में इक्विटी कैपिटल मार्केट और ब्रोकिंग बिजनस बंद किया था।

ET Bureau 23 Mar 2016, 9:05 am
जोएल रिबेलो
नवभारतटाइम्स.कॉम multinational foreign banks like rbs hsbc exiting india to protect profitability
मुनाफा बनाए रखने को भारत छोड़ रहे हैं मल्टीनैशनल बैंक


आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी ने कभी कहा था कि दुनिया के कई बड़े बैंक ऐसे हैं, जिनके पास तमाम 'सेंट्रल बैंकों से ज्यादा ताकत है।' लेकिन आज के दौर में इस बात में सच्चाई नहीं दिखती, भारत की वित्तीय व्यवस्था में बड़ी फोर्स बनने की चाह लेकर आए वैश्विक बैंक अब परेशानी में हैं। बीते 15 सालों में भारत में ग्लोबल बैंक का हिस्सा लगातार बढ़ता रहा है, करीब हर पांच साल में उनका अडवांस दोगुना होता रहा है। मार्च 2005 में विदेशी बैंकों का भारत में कुल अडवांस 75,318 करोड़ रुपये था, जबकि 2010 में यह आंकड़ा 1.63 लाख करोड़ रुपये हो गया। मार्च 2015 में यह 3.27 लाख करोड़ था।

लेकिन यह कहानी का आधा हिस्सा ही है। असली कहानी यह है कि धीरे-धीरे ही सही, लेकिन विदेशी बैंकों का मार्केट शेयर कम होता जा रहा है। 2005 में विदेशी बैंकों का भारत में अडवांस शेयर 6.55 पर्सेंट था, जो 2010 में 4.65 पर्सेंट हो गया और 2015 में तो यह 4.41 पर्सेंट पर पहुंच गया। इसी साल जनवरी में यूके स्थित बैंक बार्कलेज ने भारत में इक्विटी कैपिटल मार्केट और ब्रोकिंग बिजनस को बंद कर दिया था। विदेशी बैंक द्वारा 2009 से ही भारत के बाजार को छोड़ने का सिलसिला जारी है।

पिछले पांच साल में डोएचे बैंक ने अपना क्रेडिट कार्ड बिजनस बेच दिया है, जबकि बार्कलेज ने भारत में अपनी रिटेल बैंकिंग को बंद किया है। स्विस बैंक यूबीएस ने तो अपना बैंकिंग लाइसेंस ही वापस कर दिया है। इसके अलावा अमेरिका स्थित मॉर्गन स्टैनली और गोल्डमैन सैक्स ने अपना वेल्थ मैनेजमेंट बिजनस बेच दिया। डच बैंकिंग ग्रुप आईएनजी ने अपना भारतीय कारोबार स्वदेशी बैंक कोटक महिंद्रा को सौंप दिया।

आरबीएस बैंक के भारत में कारोबार बंद करने के साथ ही विदेशी बैंकों के भारत छोड़ने का यह सिलसिला 2015 में भी जारी रहा है। आरबीएस ने 2013 में ही भारत में अपनी 31 ब्रांचों में से 23 को बंद कर दिया था। यही नहीं पिथले साल ही स्टैंडर्ड चार्टर्ड ने भी कॉर्पोरेट और इनवेस्टमेंट बैंकिंग में अपने स्टाफ में एक चौथाई तक की कटौती कर दी थी। यही नहीं बैंक का यह भी कहना था कि वह प्राइवेट बैंकिंग बिजनस को भी बंद करेगा।

धराशायी हो रही ग्लोबल बैंकिंग व्यवस्था

इस ट्रेंड से साफ है कि तेजी से बढ़ते भारतीय बाजार में मल्टीनैशनल बैंकों को अपने पैर जमाने में मुश्किल आ रही है। यह बैंक हाई कैपिटल और रेग्युलटरी रिक्वायरमेंट्स की वजह से यह बैंक अब स्वदेश वापसी कर रहे हैं। इसकी एक वजह उनकी ओर से लागत में कटौती करने और मुनाफा बढ़ाने का प्रयास भी है। बैंकर्स का कहना है कि भारत के बाजार से ग्लोबल बैंकों की वापसी इस बात का संकेत देती है कि ग्लोबल बैंकिंग व्यवस्था धराशायी होने की कगार पर है।

भारत के निजी बैंकों का बढ़ा आकार

वैश्विक बाजार में हालिया उथल-पुथल ने कई बड़े बदलाव किए हैं। भारत के प्राइवेट बैंकों का आकार वैश्विक बैंकों के मुकाबले बढ़ा है। फरवरी में जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक मार्केट कैपिटलाइजेशन में भारत के दूसरे सबसे बड़े प्राइवेट बैंक एचडीएफसी का आकार डोएचे बैंक, क्रेडिट स्विस आदि से बड़ा है।

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