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सभी डिफाल्टरों के नाम का खुलासा करने से कारोबार को नुकसान: राजन

रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन सभी बड़े कर्ज न चुकाने वाले यानी डिफाल्टरों के नाम का खुलासा...

पीटीआई 5 Apr 2016, 10:55 pm
मुंबई
नवभारतटाइम्स.कॉम naming of all defaulters will kill businesses raghuram rajan
सभी डिफाल्टरों के नाम का खुलासा करने से कारोबार को नुकसान: राजन


रिज़र्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन सभी बड़े कर्ज न चुकाने वाले यानी डिफाल्टरों के नाम का खुलासा करने के पक्ष में नहीं हैं। उनका मानना है कि इससे बेवजह का भय का माहौल बनेगा और कारोबारी गतिविधियों को नुकसान पहुंचेगा।

राजन ने मौद्रिक समीक्षा बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हमारा मानना है कि डिफॉल्ट की वजह समझे बिना यदि इसे सार्वजनिक किया जाता है, तो न केवल इससे कारोबार का नुकसान बल्कि बेवजह की बेचैनी व डर भी पैदा होगा। मुझे नहीं लगता कि हमें इस तरह के कदम की जरुरत है। मेरा उच्चतम न्यायालय से यही आग्रह है कि इन नामों को गोपनीय रखा जाए। ये ऐसे तत्व हैं जिन्हें खोला जा सकता है, लेकिन फिलहाल इनका खुलासा करने की जरुरत नहीं है।’

हालांकि, राजन ने इसके साथ ही स्पष्ट किया कि जानबूझकर कर न चुकाने वालों (विलफुल डिफाल्टरों) का नाम प्रकाशित करने में केंद्रीय बैंक को कोई आपत्ति नहीं है। ऐसे मामले जहां बैंक वैध प्रक्रिया के जरिए किसी को जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाला घोषित करते हैं तो उनके नामों को सार्वजनिक किया जा सकता है।

गौरतलब है कि 30 मार्च को आरबीआई ने 50 ऐसे टॉप लोन डिफॉल्टर्स की लिस्ट बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है जिन पर बैंकों का 500 करोड़ से ज्यादा का कर्ज बकाया है। केंद्रीय बैंक ने कहा है कि इन नामों का खुलासा फिलहाल नहीं किया जाना चाहिए, वरना कारोबार पर इसका बुरा असर पड़ेगा और कई कारोबारी समूह बंद तक हो सकते हैं।

आरबीआई ने बैंको को बैलेंस शीट क्लियर करने के लिए मार्च 2017 तक की समयसीमा भी दी है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर तिमाही में बैंको का बैड लोन कुल सिस्टम का 13 फीसदी तक पहुंच चुका था।

राजन ने कहा कि कारोबार में डिफॉल्ट की स्थिति आ सकती है और कई बार किसी की अपनी गलती के चलते ऐसा नहीं होता। उन्होंने बताया कि उन्हें विभिन्न कंपनियों से लगभग हर दिन ऐसे खत मिलते हैं जिसमें यह कहा जाता है कि डिफॉल्ट की स्थिति के लिए उनकी गलती नहीं है। वह कमजोर डिमांड, कम कीमतों और विदेशी कंपनियों की डंपिंग, सरकार की तरफ से देरी से मंजूरी और अदालती कार्यवाहियों को जिम्मेदार बताते हैं।

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