नई दिल्ली
फ्री मार्केट्स ने नई-नई इंडस्ट्रीज को जन्म दिया है। कई ऐसे इलाज इजाद हुए हैं जिनके चलते करोड़ों जिंदगियां बचाई जा रही हैं और अरबों लोगों को गरी्बी से उबारा है। लेकिन बी्ते कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से पूंजीवाद ने काम किया, आर्थिक असमानता ने बड़ा रूप ले लिया है। हर जगह मुनाफा बढ़ाने की होड़ है। आलम यह हो गया है कि दुनियाभर के 26 सबसे अमीर शख्स इतने अमीर हैं कि उनकी कुल दौलत 3.8 अरब गरीबों के बराबर है। आप ही सोचिए, कहां 26 और कहां 3.8 अरब लोग? दुनिया के सबसे अमीर शख्सियतों की लिस्ट में ऐमजॉन के सीईओ जेफ बेजॉस, माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स, आरनॉल्ट, बर्कशायर हैथवे के बॉस वॉरेन बफे, अमानशिओ ऑर्टेगो, मार्क जकरबर्ग, लारी एलिसन जैसे मान शामिल हैं। टॉप 10 रईसों की दौलत को मिला दिया जाए तो 85 देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है। एशिया में सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी हैं, जो दुनिया के 13वें सबसे अमीर हैं।
अमेरिका में 0.1% अमीरों के पास 20% दौलत
बात अमेरिका की करते हैं, जहां पिछले 50 सालों के दौरान आय की असमानता सबसे ज्यादा हो गई है। अमेरिका के 0.1% अमीरों के पास पूरे अमेरिका की दौलत का 20% हिस्सा है। वहीं कई अमेरिकी ऐसे हैं जो 400 डॉलर इमर्जेंसी के लिए पे नहीं कर सकते। इसमें हैरान करवने वाली कोी बात नहीं कि पूंजीवाद का समर्थन करने वालों में सबसे ज्यादा युवा हैं।
न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे आर्टिकल के मुताबिक, सेल्सफोर्स के चेयरमैन व को-सीईओ मार्क बेनिऑफ कहते हैं, 'मैं पूंजीवादी हूं लेकिन मानता हूं कि अब पूंजीवाद मर चुका है।' वह कहते हैं, मेरी सफलता ने मुझे लोकल स्कूलों में सुधार पर खर्च करने, बच्चों की हेल्थ, समुद्र सुरक्षा और बेघरों की मदद पर खर्च की इजाजत दी।
मार्क अपने जैसे बिजनस लीडर्स से कहते हैं, मुनाफा जरूरी है लेकिन समाज भी उतना ही जरूरी है। और अगर मुनाफे का लालच समाज को पहले से बदतर हालत में पहुंचाता है तो इसका अर्थ यह है कि हम अपने बच्चों को लालची बना रहे हैं। वह कहते हैं नए किस्म के पूंजीवाद का समय आ गया है, जो पहले से ज्यादा अच्छा होगा और समानता की पैरवी करेगा। ऐसा पूंजीवाद जो सभी के लिए अच्छा होगा, जहां कारोबारी सिर्फ मुनाफे के बारे में नहीं सोचेंगे बल्कि समाज पर खर्च भी करेंगे।
कैसा हो सकता है नया पूंजीवाद?
पहला, बिजनस लीडर्स की जिम्मेदारियां ज्यादा होंगी। वे एक बतौर शेयरहोल्डर अपना मुनाफा गिनने से आगे भी सोचेंगे। वे सिर्फ अपने शेयरहोल्डर्स के बारे में नहीं सोचेंगे बल्कि असल स्टेकहोल्डर्स पर भी उनका ध्यान होगा। यानी उनके एम्प्लॉयी, ग्राहक, समाज और धरती। करीब 200 कारोबारियों ने बिजनस राउंडटेबल बैठक में शिरकत की और इस नई धारणा को सपॉर्ट करते हुए कहा कि कारोबार की मूल प्रतिबद्धताओं में स्टेकहोल्डर्स अहम होने चाहिए।
दूसरा, आय की समानता।समान आय पर कानून लटका हुआ है। आज भी औसतन पुरुष 1 डॉलर कमाता है तो महिलाएं सिर्फ 80 सेंट। हालांकि, कुछ कंपनियां इस फर्क को दूर कर रही हैं। सेल्सफोर्स में समान काम- समान आय को बल देने के लिए 10.3 अरब डॉलर खर्च किया गया। हर साल यहां ऑडिट कर सुनमिश्चित किया जाता है कि आय की समानता कायम है। मार्क मानते हैं कि हर कंपनी इस पे-गैप को खत्म कर सकती है।
तीसरा, समाज पर ध्यान। कई कंपनियां ऐसी हैं जिनके लिए समाज के लिए कुछ करना सबसे आखिरी प्राथमिकता होती है। यह उनके मुनाफे पर डिपेंड करता है। लेकिन मार्क कहते हैं उनकी कंपनी ने शुरू से ही अपनी इक्विटी, टाइम और टेक्नॉलजी का खर्च परोपकारी कार्यों के लिए रखा। सेल्फोर्स इनके लिए 30 करोड़ डॉलर का खर्च कर चुकी है। इसमें लोकल स्कूल, बेघरों को सहारा देने जैसे काम शामिल हैं।
चौथा, क्लाइमेट की सोच। इसी तरह कंपनी ने क्लाइमेट चेंज पर भी ध्यान दिया है। मार्क का कहना है कि हर कंपनी इस दिशा में योगदान दे सकती है। इस जिम्मेदारी को समझना चाहिए कि ग्लोबल टेंपरेटर को 1.5 डिग्री से ज्यादा न बढ़ने दिया जाए। रिसर्च के मुताबिक, जो कंपनियां अपने कॉर्पोरेट कल्चर में इन चीजों को जगह देती हैं, वे अच्छा प्रदर्शन करती हैं और तेजी से विकास भी करती हैं।
फ्री मार्केट्स ने नई-नई इंडस्ट्रीज को जन्म दिया है। कई ऐसे इलाज इजाद हुए हैं जिनके चलते करोड़ों जिंदगियां बचाई जा रही हैं और अरबों लोगों को गरी्बी से उबारा है। लेकिन बी्ते कुछ वर्षों के दौरान जिस तरह से पूंजीवाद ने काम किया, आर्थिक असमानता ने बड़ा रूप ले लिया है। हर जगह मुनाफा बढ़ाने की होड़ है। आलम यह हो गया है कि दुनियाभर के 26 सबसे अमीर शख्स इतने अमीर हैं कि उनकी कुल दौलत 3.8 अरब गरीबों के बराबर है। आप ही सोचिए, कहां 26 और कहां 3.8 अरब लोग?
अमेरिका में 0.1% अमीरों के पास 20% दौलत
बात अमेरिका की करते हैं, जहां पिछले 50 सालों के दौरान आय की असमानता सबसे ज्यादा हो गई है। अमेरिका के 0.1% अमीरों के पास पूरे अमेरिका की दौलत का 20% हिस्सा है। वहीं कई अमेरिकी ऐसे हैं जो 400 डॉलर इमर्जेंसी के लिए पे नहीं कर सकते। इसमें हैरान करवने वाली कोी बात नहीं कि पूंजीवाद का समर्थन करने वालों में सबसे ज्यादा युवा हैं।
न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे आर्टिकल के मुताबिक, सेल्सफोर्स के चेयरमैन व को-सीईओ मार्क बेनिऑफ कहते हैं, 'मैं पूंजीवादी हूं लेकिन मानता हूं कि अब पूंजीवाद मर चुका है।' वह कहते हैं, मेरी सफलता ने मुझे लोकल स्कूलों में सुधार पर खर्च करने, बच्चों की हेल्थ, समुद्र सुरक्षा और बेघरों की मदद पर खर्च की इजाजत दी।
मार्क अपने जैसे बिजनस लीडर्स से कहते हैं, मुनाफा जरूरी है लेकिन समाज भी उतना ही जरूरी है। और अगर मुनाफे का लालच समाज को पहले से बदतर हालत में पहुंचाता है तो इसका अर्थ यह है कि हम अपने बच्चों को लालची बना रहे हैं। वह कहते हैं नए किस्म के पूंजीवाद का समय आ गया है, जो पहले से ज्यादा अच्छा होगा और समानता की पैरवी करेगा। ऐसा पूंजीवाद जो सभी के लिए अच्छा होगा, जहां कारोबारी सिर्फ मुनाफे के बारे में नहीं सोचेंगे बल्कि समाज पर खर्च भी करेंगे।
कैसा हो सकता है नया पूंजीवाद?
पहला, बिजनस लीडर्स की जिम्मेदारियां ज्यादा होंगी। वे एक बतौर शेयरहोल्डर अपना मुनाफा गिनने से आगे भी सोचेंगे। वे सिर्फ अपने शेयरहोल्डर्स के बारे में नहीं सोचेंगे बल्कि असल स्टेकहोल्डर्स पर भी उनका ध्यान होगा। यानी उनके एम्प्लॉयी, ग्राहक, समाज और धरती। करीब 200 कारोबारियों ने बिजनस राउंडटेबल बैठक में शिरकत की और इस नई धारणा को सपॉर्ट करते हुए कहा कि कारोबार की मूल प्रतिबद्धताओं में स्टेकहोल्डर्स अहम होने चाहिए।
दूसरा, आय की समानता।समान आय पर कानून लटका हुआ है। आज भी औसतन पुरुष 1 डॉलर कमाता है तो महिलाएं सिर्फ 80 सेंट। हालांकि, कुछ कंपनियां इस फर्क को दूर कर रही हैं। सेल्सफोर्स में समान काम- समान आय को बल देने के लिए 10.3 अरब डॉलर खर्च किया गया। हर साल यहां ऑडिट कर सुनमिश्चित किया जाता है कि आय की समानता कायम है। मार्क मानते हैं कि हर कंपनी इस पे-गैप को खत्म कर सकती है।
तीसरा, समाज पर ध्यान। कई कंपनियां ऐसी हैं जिनके लिए समाज के लिए कुछ करना सबसे आखिरी प्राथमिकता होती है। यह उनके मुनाफे पर डिपेंड करता है। लेकिन मार्क कहते हैं उनकी कंपनी ने शुरू से ही अपनी इक्विटी, टाइम और टेक्नॉलजी का खर्च परोपकारी कार्यों के लिए रखा। सेल्फोर्स इनके लिए 30 करोड़ डॉलर का खर्च कर चुकी है। इसमें लोकल स्कूल, बेघरों को सहारा देने जैसे काम शामिल हैं।
चौथा, क्लाइमेट की सोच। इसी तरह कंपनी ने क्लाइमेट चेंज पर भी ध्यान दिया है। मार्क का कहना है कि हर कंपनी इस दिशा में योगदान दे सकती है। इस जिम्मेदारी को समझना चाहिए कि ग्लोबल टेंपरेटर को 1.5 डिग्री से ज्यादा न बढ़ने दिया जाए। रिसर्च के मुताबिक, जो कंपनियां अपने कॉर्पोरेट कल्चर में इन चीजों को जगह देती हैं, वे अच्छा प्रदर्शन करती हैं और तेजी से विकास भी करती हैं।