नई दिल्ली
पिछले कुछ हफ्तों में कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट आई है। फरवरी और मार्च में कीमत में करीब 35 फीसदी की औसत गिरावट दर्ज की गई है। 3 फरवरी को कच्चे तेल की कीमत 56 डॉलर प्रति बैरल थी जो घटकर 38 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुकी है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस प्राइस वॉर को और तेज कर दिया है। वह इस वॉर के जरिए विश्व में सबसे ज्यादा तेल उत्पादन करने वाले देश का तमगा दोबारा हासिल करना चाहते हैं जो उनसे 2018 में छिन गया था। वर्तमान में अमेरिका तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। सऊदी अरब दूसरे नंबर पर और रूस तीसरे नंबर पर है। तेल का खेल क्या है? इसके जरिए रूस कैसे अमेरिकी तेल कंपनियों को बर्बाद करने पर तुला है, जिससे वहां बड़े पैमाने पर बेरोजगारी की समस्या पैदा हो सकती है, इसे समझने की कोशिश करते हैं। ओवर सप्लाई के कारण तेल की गिरती कीमत को रोकने के लिए सऊदी अरब ने पहले प्रॉडक्शन कट की बात की तो रूस ने प्रॉडक्शन बढ़ा दिया। बाद में सऊदी अरामको ने भी कहा कि वह अप्रैल तक अपने प्रॉडक्शन में 20 फीसदी का इजाफा करेगा। इससे कीमत में और गिरावट आएगी और अमेरिकी शेल कंपनियों के लिए यह स्थिति ठीक नहीं है।
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अमेरिकी शेल कंपनियों पर कर्ज का भारी बोझ है। अगले कुछ हफ्तों तक अगर कीमत में गिरावट का सिलसिला जारी रहा तो कई कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। इससे अमेरिकी इकॉनमी पर बुरा असर होगा। इसका सबसे ज्यादा असर टैक्सस की इकॉनमी पर होगा जहां तेल का बिजनस बड़े पैमाने पर है। इसके अलावा हजारों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है।
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कच्चे तेल की कीमत इतनी घट गई है कि अमेरिकी शेल कंपनियों को भी प्रॉडक्शन कट करना जरूरी हो गया है। ज्यादातर कंपनियों पर कर्ज का भारी बोझ है। ऐसे में दिवालियापन का खतरा काफी बढ़ गया है। रूस की कोशिश भी यही है। एनर्जी सेक्टर में छाई इस सुस्ती से 2014-16 की स्थिति दोहरा सकती है, जिसमें दर्जनों ऑयल और गैस कंपनियां बंद हो गई थीं और लाखों लोगों की नौकरी चली गई थी।
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सऊदी अरब और रूस के बीच तेल को लेकर वॉर छिड़ा हुआ है। सऊदी अरामको ने कहा कि वह अप्रैल में अपना प्रॉडक्शन करीब 27 फीसदी तक बढ़ाकर 1.23 करोड़ बैरल तेल रोजाना उत्पादन करेगा। कीमत में भी वह 6-8 डॉलर प्रति बैरल तक कटौती करेगा। रूस इस लड़ाई के जरिए अमेरिका को सबक सिखाना चाहता है। वह प्राइस वॉर से अमेरिकी शेल कंपनियों को कंगाल करने पर उतारु है। कुछ सप्ताह पहले ट्रंप प्रशासन ने रसियन स्टेट ऑयल कंपनी रोजनेफ्ट की सब्सिडियरी कंपनी पर सैंक्शन की घोषणा की थी। रूस इसका बदला लेना चाहता है।
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तेल के खेल में रूस और सऊदी अरब की आर्थिक स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रूस तेल से कमाई पर 37 फीसदी निर्भर है, जबकि सऊदी तेल से कमाई पर 65 फीसदी निर्भर है। अगर तेल की कीमत 42 डॉलर रहती है तो रूस अपने बजट को बैलेंस कर सकता है, जबकि सऊदी अरब के लिए यह कीमत 80 डॉलर प्रति बैरल है। इस तरह रूस इस खेल में लीड कर रहा है।
कोरोना वायरस के कारण अमेरिका समेत पूरे विश्व की हालत खराब है। इससे एनर्जी सेक्टर बुरी तरह प्रभावित है। फैक्ट्री में कामकाज घटा है और एविएशन सेक्टर में मंदी के कारण तेल की डिमांड काफी गिर गई है जिससे कीमत पर दबाव बढ़ गया है।अमेरिकी तेल कंपनियों पर कर्ज का बोझ बैंकिंग और फाइनैंशल सेक्टर के लिए भी खतरा है। अगर कोई भी कंपनी दिवालिया होती है तो इससे अमेरिका की पूरी इकॉनमी पर असर होगा। इस खेल में पुतिन मानने को तैयार नहीं है, ऐसे में अमेरिका को अभी भी और दर्ज उठाने होंगे।
पिछले कुछ हफ्तों में कच्चे तेल की कीमत में भारी गिरावट आई है। फरवरी और मार्च में कीमत में करीब 35 फीसदी की औसत गिरावट दर्ज की गई है। 3 फरवरी को कच्चे तेल की कीमत 56 डॉलर प्रति बैरल थी जो घटकर 38 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुकी है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इस प्राइस वॉर को और तेज कर दिया है। वह इस वॉर के जरिए विश्व में सबसे ज्यादा तेल उत्पादन करने वाले देश का तमगा दोबारा हासिल करना चाहते हैं जो उनसे 2018 में छिन गया था। वर्तमान में अमेरिका तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। सऊदी अरब दूसरे नंबर पर और रूस तीसरे नंबर पर है।
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अमेरिकी शेल कंपनियों पर कर्ज का भारी बोझ है। अगले कुछ हफ्तों तक अगर कीमत में गिरावट का सिलसिला जारी रहा तो कई कंपनियां दिवालिया हो सकती हैं। इससे अमेरिकी इकॉनमी पर बुरा असर होगा। इसका सबसे ज्यादा असर टैक्सस की इकॉनमी पर होगा जहां तेल का बिजनस बड़े पैमाने पर है। इसके अलावा हजारों लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है।
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