नई दिल्ली
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की रिपोर्ट के मुताबिक, कन्ज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स (CCI) में काफी गिरावट आई है। नवंबर महीने में यह गिरकर 85.7 अंक पर पहुंच गया जो सितंबर महीने में 89.4 पर था। 2014 के मुकाबले यह अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है। सीसीआई जितना मजबूत होगा अर्थव्यवस्था के लिए वह उतनी ही अनुकूल स्थिति मानी जाती है। जब कन्ज्यूमर बाजार और अर्थव्यवस्था को लेकर आशावादी होते हैं तब वह सर्विस और गुड्स की जमकर खरीदारी करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलती है। दूसरी तरफ बाजार और अर्थव्यवस्था को लेकर जब एक कन्ज्यूमर निराशावादी होता है तो इंडेक्स घटने लगता है। इस स्थिति में सर्विस और गुड्स की बिक्री घटने लगती है। अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती का प्रमुख कारण यही माना जा रहा है। आर्थिक जानकार कहते हैं कि वर्तमान में छाई सुस्ती मांग में आई कमी के कारण है। बता दें, 100 अंक को सीमा रेखा माना गया है। कन्ज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स इस स्तर से घटने का मतलब उपभोक्ताओं में निराशा का भाव होना है।
अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई उपायों पर काम कर रही सरकार
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कन्ज्यूमर इंडेक्स में गिरावट के अलावा बेरोजगारी की समस्या लगातार विकराल होती जा रही है। शैडो बैंकिंग (NBFCs) क्राइसिस के कारण लोन मिलना मुश्किल हो रहा है। इसके कारण घरेलू मांग में भारी कमी आई है। देश की अर्थव्यवस्था में घरेलू मांग का योगदान 60 फीसदी के करीब है। ये सभी फैक्टर हैं जिनकी वजह से विकास दर में गिरावट जारी है। जुलाई-सितंबर तिमाही में विकास दर गिरकर 4.5 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले 6 सालों में न्यूनतम पर है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की रिपोर्ट के मुताबिक, कन्ज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स (CCI) में काफी गिरावट आई है। नवंबर महीने में यह गिरकर 85.7 अंक पर पहुंच गया जो सितंबर महीने में 89.4 पर था। 2014 के मुकाबले यह अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है। सीसीआई जितना मजबूत होगा अर्थव्यवस्था के लिए वह उतनी ही अनुकूल स्थिति मानी जाती है। जब कन्ज्यूमर बाजार और अर्थव्यवस्था को लेकर आशावादी होते हैं तब वह सर्विस और गुड्स की जमकर खरीदारी करते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिलती है।
अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई उपायों पर काम कर रही सरकार
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कन्ज्यूमर इंडेक्स में गिरावट के अलावा बेरोजगारी की समस्या लगातार विकराल होती जा रही है। शैडो बैंकिंग (NBFCs) क्राइसिस के कारण लोन मिलना मुश्किल हो रहा है। इसके कारण घरेलू मांग में भारी कमी आई है। देश की अर्थव्यवस्था में घरेलू मांग का योगदान 60 फीसदी के करीब है। ये सभी फैक्टर हैं जिनकी वजह से विकास दर में गिरावट जारी है। जुलाई-सितंबर तिमाही में विकास दर गिरकर 4.5 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले 6 सालों में न्यूनतम पर है।