कोलकाता
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि पिछले साल बैड लोन की सख्ती से पहचान के लिए केंद्रीय बैंक ने जो सर्कुलर जारी किया था, उसमें कोई बदलाव नहीं होगा। कंपनियां और लॉबी ग्रुप इसमें ढील देने की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि बैड लोन की पहचान के ये नियम बहुत सख्त हैं, इसलिए इसमें ढील दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में भी इस सर्कुलर को चुनौती दी गई है, जहां सुनवाई चल रही है।
दास ने कहा, 'पिछले साल के 12 फरवरी के सर्कुलर में बदलाव का कोई प्रस्ताव उनके पास नहीं आया है।' इससे यह अटकल बंद हो गई कि सरकार ने कंपनियों के लिए इस नियम को आसान बनाने के सुझाव आरबीआई को दिए थे। इस सर्कुलर में कहा गया था कि 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के लोन को डिफॉल्ट के 180 दिनों के अंदर बैंक नहीं सुलझा पाते तो उसके रिजॉल्यूशन के लिए इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की मदद लेनी होगी।
इस सर्कुलर से यह तय हो गया कि देश में बैड लोन के निपटारे की बुनियाद आईबीसी यानी दिवालिया कानून है। सर्कुलर में वन डे डिफॉल्ट रूल का जिक्र है, जिसके मुताबिक कंपनी अगर तय समय पर एक किस्त का भी भुगतान नहीं कर पाती है, तो बैंक को उसे डिफॉल्टर मानना होगा।
दास ने मॉनिटरी पॉलिसी के ऐलान के बाद गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कही। रिजर्व बैंक के पिछले गवर्नर उर्जित पटेल के कार्यकाल के दौरान हुई बड़ी पहल में से एक यह सर्कुलर भी था। पटेल ने स्वायत्तता सहित कई मुद्दों पर सरकार के साथ विवाद के चलते कार्यकाल के बीच में ही इस्तीफा दे दिया था।
इस सर्कुलर को एसोसिएशन ऑफ पावर प्रड्यूसर्स सहित कई कंपनियों ने अदालत में चुनौती दी है। उनका कहना है कि इसके नियम बहुत सख्त हैं और उन्हें बकाया कर्ज के निपटारे के लिए और समय चाहिए। बैंकिंग मामलों के लीगल एक्सपर्ट एम आर उमरजी ने कहा, 'आरबीआई बैड लोन से विश्वसनीय तरीके से निपट रहा है। दबाव के बावजूद सर्कुलर से पीछे हटने से उसने मना कर दिया है। इस सर्कुलर से देश के क्रेडिट कल्चर में सुधार होगा।'
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि पिछले साल बैड लोन की सख्ती से पहचान के लिए केंद्रीय बैंक ने जो सर्कुलर जारी किया था, उसमें कोई बदलाव नहीं होगा। कंपनियां और लॉबी ग्रुप इसमें ढील देने की मांग कर रहे थे। उनका कहना था कि बैड लोन की पहचान के ये नियम बहुत सख्त हैं, इसलिए इसमें ढील दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में भी इस सर्कुलर को चुनौती दी गई है, जहां सुनवाई चल रही है।
दास ने कहा, 'पिछले साल के 12 फरवरी के सर्कुलर में बदलाव का कोई प्रस्ताव उनके पास नहीं आया है।' इससे यह अटकल बंद हो गई कि सरकार ने कंपनियों के लिए इस नियम को आसान बनाने के सुझाव आरबीआई को दिए थे। इस सर्कुलर में कहा गया था कि 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के लोन को डिफॉल्ट के 180 दिनों के अंदर बैंक नहीं सुलझा पाते तो उसके रिजॉल्यूशन के लिए इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की मदद लेनी होगी।
इस सर्कुलर से यह तय हो गया कि देश में बैड लोन के निपटारे की बुनियाद आईबीसी यानी दिवालिया कानून है। सर्कुलर में वन डे डिफॉल्ट रूल का जिक्र है, जिसके मुताबिक कंपनी अगर तय समय पर एक किस्त का भी भुगतान नहीं कर पाती है, तो बैंक को उसे डिफॉल्टर मानना होगा।
दास ने मॉनिटरी पॉलिसी के ऐलान के बाद गुरुवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह बात कही। रिजर्व बैंक के पिछले गवर्नर उर्जित पटेल के कार्यकाल के दौरान हुई बड़ी पहल में से एक यह सर्कुलर भी था। पटेल ने स्वायत्तता सहित कई मुद्दों पर सरकार के साथ विवाद के चलते कार्यकाल के बीच में ही इस्तीफा दे दिया था।
इस सर्कुलर को एसोसिएशन ऑफ पावर प्रड्यूसर्स सहित कई कंपनियों ने अदालत में चुनौती दी है। उनका कहना है कि इसके नियम बहुत सख्त हैं और उन्हें बकाया कर्ज के निपटारे के लिए और समय चाहिए। बैंकिंग मामलों के लीगल एक्सपर्ट एम आर उमरजी ने कहा, 'आरबीआई बैड लोन से विश्वसनीय तरीके से निपट रहा है। दबाव के बावजूद सर्कुलर से पीछे हटने से उसने मना कर दिया है। इस सर्कुलर से देश के क्रेडिट कल्चर में सुधार होगा।'