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बैंक लोन की डिमांड में धीमी रफ्तार से रिकवरी

बैंक लोन की डिमांड में धीमी रफ्तार से रिकवरी हो रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के डेटा से पता चल रहा है कि लोन ग्रोथ रेट लगभग 15 महीनों के बाद वर्ष-दर-वर्ष आधार पर डबल डिजिट की ओर वापस जा रही है।

इकनॉमिक टाइम्स 4 Jan 2018, 7:55 am
ईटी ब्यूरो, नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम slow loan recovery in bank loan demand
बैंक लोन की डिमांड में धीमी रफ्तार से रिकवरी

बैंक लोन की डिमांड में धीमी रफ्तार से रिकवरी हो रही है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के डेटा से पता चल रहा है कि लोन ग्रोथ रेट लगभग 15 महीनों के बाद वर्ष-दर-वर्ष आधार पर डबल डिजिट की ओर वापस जा रही है। रिजर्व बैंक के अनुसार 22 दिसंबर, 2017 को समाप्त पखवाड़े में कुल बैंक क्रेडिट 9.9 पर्सेंट बढ़कर 81 लाख करोड़ रुपये रहा। बैंक लोन में पखवाड़े के अनुसार ग्रोथ का विश्लेषण करने से अगस्त के अंत से लोन की डिमांड में धीमी रिकवरी का पता चला है। RBI के गवर्नर उर्जित पटेल ने दिसंबर की शुरुआत में कहा था, 'इकनॉमी में तेजी आने के साथ क्रेडिट की डिमांड भी बढ़नी चाहिए। अधिक ग्रोथ में मदद के लिए पर्याप्त क्रेडिट मौजूद है। क्रेडिट ग्रोथ में तेजी का दौर पहले ही शुरू हो चुका है।'

बैंकों ने लेंडिंग रेट्स में कमी भी शुरू कर दी है। देश के सबसे बड़े लेंडर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने मौजूदा बॉरोअर्स के लिए लेंडिंग रेट्स में कमी की है। पॉलिसी रेट्स में कमी का फायदा नए बॉरोअर्स को भी दिए जाने की उम्मीद है। बैंकों के लेंडिंग रेट घटाने के बावजूद लोन की डिमांड बहुत अधिक नहीं बढ़ी है। इसका कारण नए प्रोजेक्ट्स की कमी है। एसेट क्वॉलिटी को लेकर चिंता के कारण बैंक बड़ी कंपनियों को लोन देने से बच भी रहे हैं। लेकिन वे अपनी रिटेल लोन बुक को बढ़ाने की कोशिशों में जुटे हैं।

भारत उन देशों में शामिल हैं जहां हाल के वर्षों में क्रेडिट ग्रोथ में बड़ी कमी आई है। इससे लेंडर्स और बॉरोअर्स की बैलेंस शीट पर प्रेशर बढ़ने का संकेत मिल रहा है। हालांकि, HSBC ने एक रिपोर्ट में बताया है कि अब स्थिरता आने के कुछ संकेत मिल रहे हैं। HSBC के अनुसार, 'अभी भी इसका यह मतलब नहीं है कि बैंक लेंडिंग में तेजी आने वाली है। बैंक कैपिटलाइजेशन बढ़ाने को लेकर हाल की प्रगति के बावजूद बैंकों को अपनी बैलेंस शीट में पर्याप्त सुधार करने में कुछ समय लगेगा और इसके बाद ही वे लेंडिंग में तेजी ला सकेंगे।'

रेट कट करने के लिए बैंकों पर दबाव बनाने की खातिर कुछ साल पहले प्राइम लेंडिंग रेट्स का उपयोग करने वाले आरबीआई ने बेस रेट सिस्टम अपनाया था। 2016 में उसने मार्जिनल कॉस्ट बेस्ड लेंडिंग रेट का सिस्टम अपनाया।

बैंक एमसीएलआर पर शिफ्ट तो हुए, लेकिन कई कस्टमर्स, खासतौर से रिटेल कस्टमर्स अब भी बेस रेट पर हैं। लिहाजा बेस रेट में कमी से ऐसे कस्टमर्स को फायदा होगा, न कि नए कस्टमर को।

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