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वित्त वर्ष 2016 में राज्यों का वित्तीय घाटा बढ़कर 4,93,360 करोड़ पर पहुंचा

रिजर्व बैंक के जारी आंकड़े से स्पष्ट है कि मौजूदा वित्त वर्ष में कुछ राज्यों का वित्तीय घाटे में सुधार की गुंजाइश है तो कई राज्यों की हालत और खराब होने वाली है। वित्त वर्ष 2017 में जिन राज्यों का वित्तीय घाटा सुधरने का अनुमान जताया गया है, उनमें उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा ये राज्य हैं।

पीटीआई 24 Jun 2017, 4:57 pm
मुंबई
नवभारतटाइम्स.कॉम Fiscal-Deficit
सांकेतिक तस्वीर।

वित्त वर्ष 2016-17 में राज्यों का वित्तीय घाटा बढ़कर 4,93,360 करोड़ रुपये पर पहुंच गया जो वित्त वर्ष 1991-92 में 18,790 करोड़ रुपये था। रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े के मुताबिक, इसमें सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश और सबसे बड़े इलाके वाले राज्य राजस्थान का हिस्सा बहुत बड़ा है। आरबीआई ने शनिवार को हैंडबुक ऑफ स्टैटिस्टिक्स ऑन स्टेट्स 2016-17 जारी किया। इसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2017 के लिए राज्यों के बजट अनुमानों के अनुसार यह 4,49,520 करोड़ तक गिर सकता है।

वित्त वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश का वित्तीय घाटा महज 3,070 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2016 में बढ़कर 64,320 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। हालांकि, मौजूदा वित्त वर्ष में इसे घटकर 49,960 करोड़ रुपये पर आने की संभावना व्यक्ति की गई है। इसी तरह, वित्त वर्ष 1991 में राजस्थान का वित्तीय घाटा महज 540 करोड़ रुपये था, जो पिछले वित्त वर्ष में बढ़कर 67,350 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। मौजूदा वित्त वर्ष में यह घटकर 40,530 करोड़ तक गिर सकता है।

रिजर्व बैंक के जारी आंकड़े से स्पष्ट है कि मौजूदा वित्त वर्ष में कुछ राज्यों का वित्तीय घाटे में सुधार की गुंजाइश है तो कई राज्यों की हालत और खराब होने वाली है। वित्त वर्ष 2017 में जिन राज्यों का वित्तीय घाटा सुधरने का अनुमान जताया गया है, उनमें उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा ये राज्य शामिल हैं....

राज्य साल 1991- साल 2016- साल 2017
महाराष्ट्र 1020- 37,950- 35,030
बिहार 1590- 28,510- 16,010
पश्चिम बंगाल 1,630- 25,180- 19,360

रिजर्व बैंक ने इन राज्यों का वित्तीय घाटा मौजूदा वित्त वर्ष में और बढ़ने का अनुमान जाताया है...
राज्य साल 1991- साल 2016- साल 2017
गुजरात 1,800- 22,170- 24,610
आंध्र प्रदेश 970- 17,000- 20,500
तमिलनाडु 1,130 -32,320- 40,530
कर्नाटक 560- 20,560- 25,660
केरल 800- 17,720- 23,140

आंकड़ों के इस प्रकाशन में 'वन इंडिकेटर वन टेबल' की पद्धति का अनुपालन किया गया। इसमें साल 1950-51 से 2016-17 की अवधि में सभी राज्यों के सामाजिक-जनसांख्यिकी, स्टेट डोमेस्टिक प्रॉडक्ट, कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचा, बैंकिंग, वित्तीय सूचकांक पर सभी उप-राष्ट्रीय सांख्यिकी का ध्यान रखा गया। इसमें राज्य स्तर पर बिजली, प्रति व्यक्ति बिजली उपलब्धता, कुल बिजली क्षमता, बिजली की कुल जरूरत, राष्ट्रीय राजमार्ग (नैशनल हाइवेज), सड़क, स्टेट हाइवेज और रेल नेटवर्क की लंबाई भी शामिल है।

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