नई दिल्ली
swaminomics: वास्तव में पंचवर्षीय योजना को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य में जो चीजें दिखाई जाती हैं उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता और चूंकि इस पर कोई जुर्माना नहीं है, इसलिए इसे पूरा करने में किसी की प्रतिबद्धता नहीं दिखती।
ऐसा लगता है कि cop26 क्लाइमेट सम्मिट में जिन टारगेट पर बात की गई वह भी पंचवर्षीय योजना की तरह ही है। अगर पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य को पूरा करने में गंभीरता नहीं दिखाई जाती तो आज से 30 या 50 साल आगे के लक्ष्य को पूरा करने में कितनी गंभीरता दिखाई जा सकती है।
ऐसा लगता है कि पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों पर काम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए किसी सम्मेलन या ग्लोबल आइडियलिज्म की जरूरत नहीं है। ग्रीन इनोवेशन के नाम पर मुनाफा कमाने वाली कंपनियों द्वारा कई कई प्रयोग किए जा रहे हैं उन्हें सरकार सब्सिडी और समर्थन देकर उत्साहित भी कर रही है।
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गरीब देशों को मदद
पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है और उस पर सिर्फ भाषण देने से काम नहीं चल जाता चलता। मतदाता वास्तव में इस तरह के बलिदान को पसंद नहीं करते। साल 1997 में क्योटो प्रोटोकोल अपने लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहा है। इसी तरह साल 2009 का कोपनहेगन समिट भी फ्लॉप हो गया है। साल 2015 के पेरिस सम्मेलन को छोड़ दिया गया। दुनिया भर के देश वास्तव में पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से जूझने के लिए गरीब देशों को $100 अरब सालाना की मदद देने का वादा करते हैं, लेकिन इससे भी पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का कोई हल नहीं निकला है।
सोलर-विंड एनर्जी का भाव
पिछले 20-21 साल में सोलर और विंड एनर्जी के भाव 90 फ़ीसदी तक गिर चुके हैं। इसकी वजह इन पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी है। सोलर और विंड एनर्जी अब भी थोड़ी महंगी है क्योंकि 24 घंटे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्टोरेज के सस्ते विकल्प पर काम किया जा रहा है। स्टोरेज बैटरी की लागत लगातार कम हो रही है। नई बैटरी और अक्षय ऊर्जा के स्रोत से जुटाई जाने वाली बिजली दुनिया भर में अगले कुछ सालों में बड़ी भूमिका निभा सकती है। अगर कमर्शियल तौर से इससे मुनाफा हो तो इसमें दुनिया भर की कंपनियां भी कूद सकती है।
ग्रीन कंपनियों में निवेश
अडानी और अंबानी जैसे देश के रईसों ने दुनिया की टॉप ग्रीन कंपनियों में निवेश किया है। अंबानी का लक्ष्य अगले दशक तक ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत को $1 प्रति किलो तक लाने का है। उनका कहना है कि वह हाइड्रोजन फ्यूल को जीवाश्म ईंधन की तुलना में सस्ता विकल्प बनाना चाहते हैं जिससे देश में स्टील और सीमेंट का प्रोडक्शन हो सके। अंबानी सोलर पैनल, बैटरी आदि के लिए भी मेगा फैक्ट्री बना रहे हैं। इसके साथ ही मुकेश अंबानी की रिलायंस ग्लोबल लेवल पर दिग्गज ग्रीन कंपनियों को खरीदने में जुटी हुई है। अगर इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनियों, अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पर काम करने वाली रिलायंस और अडानी जैसी कंपनियों को सरकार का समर्थन मिले तो आने वाले कुछ सालों में अक्षय ऊर्जा के जरिए देश को रोशन करने का सपना साकार हो सकता है।
यह भी पढ़ें: कमाई घटी तो मिलेनियल लव मैरिज से करने लगे हैं परहेज, बढ़ सकता है अरेंज मैरिज से जुड़ा कारोबार
swaminomics: वास्तव में पंचवर्षीय योजना को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य में जो चीजें दिखाई जाती हैं उन्हें पूरा नहीं किया जा सकता और चूंकि इस पर कोई जुर्माना नहीं है, इसलिए इसे पूरा करने में किसी की प्रतिबद्धता नहीं दिखती।
ऐसा लगता है कि cop26 क्लाइमेट सम्मिट में जिन टारगेट पर बात की गई वह भी पंचवर्षीय योजना की तरह ही है। अगर पंचवर्षीय योजना के लक्ष्य को पूरा करने में गंभीरता नहीं दिखाई जाती तो आज से 30 या 50 साल आगे के लक्ष्य को पूरा करने में कितनी गंभीरता दिखाई जा सकती है।
ऐसा लगता है कि पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों पर काम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए किसी सम्मेलन या ग्लोबल आइडियलिज्म की जरूरत नहीं है। ग्रीन इनोवेशन के नाम पर मुनाफा कमाने वाली कंपनियों द्वारा कई कई प्रयोग किए जा रहे हैं उन्हें सरकार सब्सिडी और समर्थन देकर उत्साहित भी कर रही है।
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गरीब देशों को मदद
पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है और उस पर सिर्फ भाषण देने से काम नहीं चल जाता चलता। मतदाता वास्तव में इस तरह के बलिदान को पसंद नहीं करते। साल 1997 में क्योटो प्रोटोकोल अपने लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहा है। इसी तरह साल 2009 का कोपनहेगन समिट भी फ्लॉप हो गया है। साल 2015 के पेरिस सम्मेलन को छोड़ दिया गया। दुनिया भर के देश वास्तव में पर्यावरण संबंधी चुनौतियों से जूझने के लिए गरीब देशों को $100 अरब सालाना की मदद देने का वादा करते हैं, लेकिन इससे भी पर्यावरण संबंधी चुनौतियों का कोई हल नहीं निकला है।
सोलर-विंड एनर्जी का भाव
पिछले 20-21 साल में सोलर और विंड एनर्जी के भाव 90 फ़ीसदी तक गिर चुके हैं। इसकी वजह इन पर दी जाने वाली भारी सब्सिडी है। सोलर और विंड एनर्जी अब भी थोड़ी महंगी है क्योंकि 24 घंटे बिजली की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्टोरेज के सस्ते विकल्प पर काम किया जा रहा है। स्टोरेज बैटरी की लागत लगातार कम हो रही है। नई बैटरी और अक्षय ऊर्जा के स्रोत से जुटाई जाने वाली बिजली दुनिया भर में अगले कुछ सालों में बड़ी भूमिका निभा सकती है। अगर कमर्शियल तौर से इससे मुनाफा हो तो इसमें दुनिया भर की कंपनियां भी कूद सकती है।
ग्रीन कंपनियों में निवेश
अडानी और अंबानी जैसे देश के रईसों ने दुनिया की टॉप ग्रीन कंपनियों में निवेश किया है। अंबानी का लक्ष्य अगले दशक तक ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत को $1 प्रति किलो तक लाने का है। उनका कहना है कि वह हाइड्रोजन फ्यूल को जीवाश्म ईंधन की तुलना में सस्ता विकल्प बनाना चाहते हैं जिससे देश में स्टील और सीमेंट का प्रोडक्शन हो सके। अंबानी सोलर पैनल, बैटरी आदि के लिए भी मेगा फैक्ट्री बना रहे हैं। इसके साथ ही मुकेश अंबानी की रिलायंस ग्लोबल लेवल पर दिग्गज ग्रीन कंपनियों को खरीदने में जुटी हुई है। अगर इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली कंपनियों, अक्षय ऊर्जा के स्रोतों पर काम करने वाली रिलायंस और अडानी जैसी कंपनियों को सरकार का समर्थन मिले तो आने वाले कुछ सालों में अक्षय ऊर्जा के जरिए देश को रोशन करने का सपना साकार हो सकता है।
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