क्या है यह विवाद?
वोडाफोन ने 2007 में हच ( Hutchison Whampoa) को खरीद कर भारतीय बाजार में एंट्री की थी। वोडाफोन ने हच मे 67 फीसदी हिस्सेदारी उस समय 11 अरब डॉलर में खरीदी थी। इस डील में हच का इंडियन टेलिफोन बिजनस और अन्य असेट शामिल हैं। उसी साल सरकार ने वोडाफोन से कहा कि उसे कैपिटल गेन और विद होल्डिंग टैक्स के रूप में 7990 करोड़ रुपये चुकाने होंगे। ऐसे में वोडाफोन को पेमेंट से पहल यह पैसा टैक्स के रूप में काट लेना चाहिए।
बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा वोडाफोन
वोडाफोन इनकम टैक्स के इस दावे के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के हक में फैसला सुनाया। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोडाफोन पर हिस्सेदारी खरीदने के कारण टैक्स लाएबिलिटी नहीं बनती है। उसने इनकम टैक्स ऐक्ट 1961 का जो अर्थ निकाला है, वह ठीक है।
प्रणब मुखर्जी ने बदला था कानून
उस समय प्रणब मुखर्जी देश के वित्त मंत्री थे। उन्होंने फाइनैंस ऐक्ट में बदलाव कर दिया। फाइनैंस ऐक्ट में बदलाव के कारण इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स का पावर मिल गया। इस टैक्स के लागू होते ही इनकम टैक्स डिपार्टमेंट वोडाफोन से टैक्स वसूली के लिए पीछे पड़ गया।
क्या होता है रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स?
रेट्रोस्पेक्टिव टैक्सेशन टैक्स की वह प्रक्रिया है, जिसमें यह कानून के पास होने की तारीख से पहले लागू हो जाती है। मतलब, अगर 26 सितंबर 2020 को यह कानून पास किया जाता है तो इसे 20 सितंबर 2020 को भी लागू किया जा सकता है। कोई भी देश इस तरह के कानून इसलिए पास करता है ताकि वहां के टैक्स डिपार्टमेंट को टैक्स वसूली में कानूनी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े। टैक्स विवाद होने पर सरकारें रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स रूट का सहारा लेती हैं और अपने वर्तमान कानून में संशोधन करती हैं, फिर उसे पुरानी तारीख से लागू कर दिया जाता है।