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निवेश करते समय इन 6 गलतियों से बचें

ऐक्टिवली मैनेज्ड फंड्स के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन का कारण लार्ज कैप में शामिल शेयरों में काफी ज्यादा पोलराइजेशन है। पिछले कुछ महीनों में रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचडीएफसी बैंक, टीसीएस और आईटीसी सरीखे चुनिंदा शेयरों ने ही अच्छा रिटर्न दिया है।

नवभारत टाइम्स 14 Sep 2018, 11:17 am
नई दिल्ली
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सांकेतिक तस्वीर

रोहित वर्मा जब अपने म्यूचुअल फंड स्टेटमेंट को देखते हैं तो चिंता से ज्यादा उन्हें हैरानी होती है। दिल्ली में रहने वाले बैंक एग्जिक्युटिव वर्मा का कहना है, 'पिछले सालभर में मार्केट्स में करीब 20 प्रतिशत की तेजी आई है, लेकिन मेरे म्यूचुअल फंड्स नुकसान में दिख रहे हैं।' वर्मा ने जुलाई 2017 में एक लार्ज कैप और एक मिड कैप फंड में 10000-10000 रुपये के एसआईपी शुरू किए थे। लार्ज कैप फंड ने मामूली रिटर्न दिया है, जबकि मिड कैप स्कीम में नुकसान हुआ है। लिहाजा वर्मा निवेश के अपने निर्णय पर नए सिरे से विचार करने को मजबूर हुए।

कई छोटे निवेशकों ने 12-18 महीनों पहले एसआईपी शुरू किए थे। वे सभी आज लगभग ऐसी ही हालत में हैं। उनके फंड्स ने शुरू में काफी अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन पिछले छह महीनों में हाल उत्साहजनक नहीं रहा है। कई मामलों में, खासतौर से मिड कैप और स्मॉल कैप फंड्स के मामले में एसआईपी रिटर्न नेगेटिव है। लार्ज कैप फंड्स भी बमुश्किल ही पॉजिटिव रिटर्न जेनरेट कर सके हैं। इस कैटिगरी में अधिकतर टॉप परफॉर्मर्स पैसिवली मैनेज्ड फंड्स हैं।

ऐक्टिवली मैनेज्ड लार्ज कैप फंड्स बेंचमार्क इंडाइसेज से काफी पीछे हैं। बेंचमार्क निफ्टी 50 टीआरआई इंडेक्स ने पिछले सालभर में करीब 19 प्रतिशत रिटर्न जेनरेट किया है। करीब 30 ऐक्टिवली मैनेज्ड लार्ज कैप स्कीमों में से केवल दो यानी एक्सिस ब्लूचिप और इडलवाइज लार्ज कैप ही इस दौरान इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन कर सकीं।

गलती नंबर 1- डायवर्सिफाइड फंड्स से इंडेक्स फंड्स में शिफ्टिंग

ऐक्टिवली मैनेज्ड फंड्स के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन का कारण लार्ज कैप में शामिल शेयरों में काफी ज्यादा पोलराइजेशन है। पिछले कुछ महीनों में रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचडीएफसी बैंक, टीसीएस और आईटीसी सरीखे चुनिंदा शेयरों ने ही अच्छा रिटर्न दिया है। हालांकि ऐक्टिवली मैनेज्ड लार्ज कैप फंड्स का पोर्टफोलियो ज्यादा डायवर्सिफाइड होता है और वे इंडेक्स से बाहर के शेयरों में भी निवेश करते हैं, लिहाजा इंडेक्स के इन हेवीवेट्स में तेजी ने इंडेक्स फंड्स की भी मदद की है। फंड्सइंडिया की हेड (म्यूचुअल फंड रिसर्च) विद्या बाला का कहना है, 'जब इंडेक्स के रिटर्न में कुछ ही शेयरों का योगदान होता है तो अधिकतर ऐक्टिव फंड्स को इंडेक्स को आउटपरफॉर्म करने में दिक्कत होती है।'

प्रदर्शन में इस अंतर ने वर्मा जैसे निवेशकों को अपने निर्णय पर सवाल करने को मजबूर कर दिया है कि आखिर क्यों उन्होंने ऐक्टिवली मैनेज्ड फंड्स को चुना था। अगर लो-कॉस्ट इंडेक्स फंड्स आउटपरफॉर्म कर रहे हैं तो क्या इन निवेशकों को एक्टिवली मैनेज्ड फंड्स से बाहर नहीं निकल जाना चाहिए और उन्हें ज्यादा फंड मैनेजमेंट चार्ज देने से बचना नहीं चाहिए? एक्सपर्ट्स का कहना है कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। स्क्रिपबॉक्स के फाउंडर और सीओओ संजीव सिंघल ने कहा, 'इंडियन मार्केट अभी उस स्टेज पर नहीं पहुंचा है कि इंडेक्स फंड्स लगातार ऐक्टिव फंड्स से आगे निकलते रहें। म्यूचुअल फंड्स की नई बनाई गई श्रेणियों का उपयोग करते हुए फंड्स का अच्छी तरह बनाया गया पोर्टफोलियो ही अगले कुछ वर्षों में सूचकांकों से बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।'

गलती नंबर 2- फंड्स का प्रदर्शन अच्छा न होने पर SIP बंद करना
मिड और स्मॉल कैप शेयरों की पिछले कुछ महीनों में काफी पिटाई हुई है। इसके चलते उन फंड्स को नुकसान हुआ है जिन्होंने अपने पोर्टफोलियो में इन सेगमेंट्स के ज्यादा शेयरों को जगह दी थी। इन फंड्स में पिछले सालभर में एसआईपी शुरू करने वाले निवेशक अब परेशान हो गए हैं और घाटा होता देखकर वे अपने एसआईपी रोकना चाहते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ऐसा करना बुद्धिमानी नहीं होगी। यह ऐसा समय है, जब एसआईपी निवेशक वोलैटिलिटी का अधिकतम फायदा उठाते हुए उसी रकम में कम प्राइस पर ज्यादा यूनिट्स हासिल कर सकते हैं।

यूनोवेस्ट के फाउंडर विपिन खंडेलवाल ने कहा, 'किसी भी फंड को कुछ साल तो आपको देने ही होंगे। अगर आप दस साल के लिए निवेश कर रहे हों और उचित फंड्स का चयन किया हो तो जितना संभव हो सके, उनमें निवेश करें।' जब मिड कैप सेगमेंट में जान लौटेगी तो जिन निवेशकों ने एसआईपी जारी रखा होगा, उन्हें फायदा होगा। समय के साथ एसआईपी आपकी कॉस्ट की ऐवरेजिंग करते जाते हैं और इन्फ्लेशन को मात देने वाला रिटर्न जेनरेट करते हैं। यह वेल्थ बनाने का एक आसान तरीका है।

म्यूचुअल फंड इन्वेस्टर्स के लिए बेहतर रणनीति यही है कि मार्केट में एंट्री या एग्जिट के समय पर माथापच्ची करने के बजाय लगातार निवेश करते रहें। जो निवेशक मार्केट के मूवमेंट्स को दरकिनार कर अपने एसआईपी में निवेश जारी रखता है, उसके उन निवेशकों के मुकाबले बेहतर रिटर्न हासिल करने की संभावना होती है जो टाइम के चक्कर में पड़े रहते हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी म्यूचुअल फंड इनवेस्टर ने इस साल के बजट में इक्विटीज पर एलटीसीजी टैक्स लगने की घोषणा के बाद अपने एसआईपी रोक दिए होंगे या उनमें से पैसा निकाल लिया होगा, उसे पिछले छह महीनेां में मार्केट में आई तेजी का फायदा नहीं मिला होगा।

गलती नंबर 3- डेट फंड्स से फिक्स्ड डिपॉजिट में शिफ्ट होना
चार साल के अंतराल के बाद ब्याज दरों में फिर तेजी का दौर दिख रहा है। 10 साल के बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड पर यील्ड 8 प्रतिशत के करीब है। इससे डेट फंड्स, खासतौर से लॉन्ग टर्म बॉन्ड फंड्स का रिटर्न घटा है। डेट फंड्स की दूसरी श्रेणियों ने पिछले सालभर में 3-4 प्रतिशत का रिटर्न दिया है। दूसरी ओर बैंकों ने अपने डिपॉजिट रेट्स बढ़ा दिए हैं।

कई बैंक एक से तीन साल के डिपॉजिट के लिए 7-7.5 प्रतिशत ब्याज दे रहे हैं। 60 साल से ऊपर के सीनियर सिटीजन को 0.25-0.50 प्रतिशत ज्यादा ब्याज मिलेगा। इन ऊंची दरों को देखते हुए निवेशक सोच सकते हैं कि बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट और रेकरिंग डिपॉजिट ज्यादा आकर्षक हो गए हैं। वे अपने बॉन्ड फंड्स का पैसा निकालकर बैंक डिपॉजिट्स में लगाने के बारे में सोच सकते हैं।

एक्सपर्ट्स इस कदम के पक्ष में नहीं हैं। गेटिंग यू रिच के फाउंडर और सीईओ रोहित शाह ने कहा, 'डेट फंड से फिक्स्ड डिपॉजिट में शिफ्ट होना निवेशकों के लिए फायदेमंद नहीं है। बैंक डिपॉजिट पर अश्योर्ड रिटर्न मिलता है, लेकिन टैक्स के मामले में उनकी स्थिति बेहतर नहीं है।' बैंक डिपॉजिट से हासिल समूचे ब्याज को उस साल व्यक्ति की आमदनी में शामिल किया जाता है और उस पर लागू होने वाले टैक्स स्लैब की रेट से टैक्स लगता है। टैक्स के बाद हाथ आने वाला रिटर्न ऊंचे टैक्स ब्रेकेट वालों के मामले में और भी कम रहेगा।

इसके बजाय निवेशकों को अपना पैसा शॉर्ट टर्म या लो-ड्यूरेशन वाले डेट फंड्स और फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान में लगाना चाहिए। डेट फंड्स टैक्स के मामले में ज्यादा ठीक हैं। उन्हें अगर तीन साल से ज्यादा समय होल्ड किया जाए तो हासिल होने वाले गेन को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहा जाएगा और इंडेक्सेशन बेनेफिट के साथ उन पर 20 पर्सेट की दर से टैक्स लगेगा।

हालांकि सीनियर सिटीजन के लिए स्थिति अलग हो सकती है। इस साल के बजट ने सीनियर सिटीजंस को इंटरेस्ट इनकम के मामले में 50000 रुपये तक का एग्जेम्पशन दिया है। इस सेगमेंट के निवेशकों के लिए बेहतर यही होगा कि वे अपना पैसा डेट फंड्स से निकालकर फिक्स्ड डिपॉजिट में लगाएं और टैक्स फ्री इनकम हासिल करें।

इस फेवरेबल टैक्स ट्रीटमेंट के अलावा बॉन्ड फंड्स से आने वाले महीनों में बेहतर रिटर्न मिलने की भी संभावना है। ईटी ने लॉन्ग टर्म गिल्ट फंड्स से एक साल के ऐवरेज रिटर्न पर नजर डाली, जब बॉन्ड यील्ड अलग अलग स्तरों पर था। हमने पाया कि जब 10 साल के बॉन्ड पर यील्ड 7.5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत के बीच था तो गिल्ट फंड्स से एक साल का फॉरवर्ड रिटर्न 7.32 प्रतिशत रहा। दूसरे शब्दों में कहें तो बॉन्ड मार्केट का बुरा दौर बीत चुका है।

गलती नंबर 4- शॉर्ट टर्म गोल के लिए इक्विटी SIP शुरू करना
पिछले दो ती साल में कुछ म्यूचुअल फंड्स से ठोस रिटर्न मिला है। ऐसे में कुछ लोग इक्विटी फंड्स में फ्रेश एसआईपी शुरू करने के बारे में सोच सकते हैं। वोलैटिलिटी से रिटर्न कमाने के लिए कुछ लोग मिड कैप फंड का एसआईपी तक शुरू करने का प्लान कर सकते हैं। यह तभी तक सही होगा जब तक आप वह किसी शॉर्ट टर्म गोल या फटाफट कमाई के लिए नहीं कर रहे होंगे। दोनों ही सेगमेंट के कुछ फंड का वैल्यूएशन हिस्टोरिकल हाई के मुकाबले खासा ऊपर चल रहा है।

ऐनालिस्टों को लगता है कि ऐसे में उनसे मिलनेवाला रिटर्न बहुत कम रह सकता है। तीन से कम के नजरिए से पैसा लगाने की सोच रहे निवेशकों का मन खट्टा हो सकता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इनवेस्टर्स को एसआईपी का फायदा पाने के लिए कम से कम पांच साल के लिए पैसा लगाना चाहिए। खंडेलवाल कहते हैं, 'फंडामेंटल लेवल पर फंड आपके रिस्क प्रोफाइल और टाइम पीरियड के हिसाब से होना चाहिए। अगर आपको तीन साल में पैसों की जरूरत है तो इक्विटी फंड में पैसा लगाने से बचना चाहिए।'

गलती नंबर 5- डिविडेंड के लिए म्यूचुअल फंड्स में पैसा लगाना
कुछ म्यूचुअल फंड हाउस ने अपने इक्विटी ओरिएंटेड फंड्स को निवेशकों के बीच रेगुलर डिविडेंड इनकम के स्रोत के तौर पर बढ़ावा दिया। भोलेभाले निवेशकों को समझ नहीं आया कि उनको म्यूचुअल फंड से जो डिविडेंड मिलनेवाला है वह उनका ही पैसा है जो लौटाया जाएगा। खंडेलवाल कहते हैं, 'डिविडेंड इनवेस्टर्स के लिए अफीम जैसा है जिसका इस्तेमाल इन्वेस्टर्स को लुभाने के लिए चारे के रूप में होता रहा है।' लेकिन अब इस चारे पर टैक्स की छाप पड़ गई है। 10 पर्सेंट टैक्स लगने से अब MF डिविडेंड टैक्स बचत कराने वाले विकल्प नहीं रह गए हैं।

म्यूचुअल फंड्स से डिविडेंड इनकम की चाहत रखनेवालों को कुछ और सोचना होगा। डिविडेंड बरसों से फंड के पास जमा सरप्लस रकम से दिया जाता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उनसे मिल रहे डिविडेंड की मात्रा आगे जस की तस रहेगी। मार्केट के धराशायी होने पर हो सकता है कि इन फंड्स के पास पर्याप्त सरप्लस नहीं रह जाए और डिविडेंड पेमेंट फ्रिक्वेंसी बेतरतीब हो जाए। प्लानरुपी इनवेस्टमेंट सर्विसेज के फाउंडर अमोल जोशी कहते हैं, 'सिर्फ इनकम के मकसद से इक्विटी ओरिएंटेड इन्वेस्टमेंट करना खराब आइडिया है।'

गलती नंबर 6- शेयरों पर बहुत ज्यादा बुलिश होना
स्टॉक मार्केट की रैली से इन्वेस्टर्स का हौसला बुलंद है, लेकिन बाजार में ओवरकॉन्फिडेंस बड़ा खतरनाक होता है। जिन निवेशकों में आत्मविश्वास कम होता है वे दुस्साहसी और बिंदास लोगों से कम गलतियां करते हैं। अगर आपने स्टॉक मार्केट में अच्छा पैसा बनाया है तो अब पोर्टफोलियो को रिबैलेंस करने और शुरुआती एसेट अलोकेशन अपनाने का समय आ गया है। बहुत से इन्वेस्टर्स अपना दुश्मन खुद बन जाते हैं और खरीदारी की अफरातफरी मचा देते हैं।

मानव व्यवहार का अध्ययन करनेवालों के मुताबिक यहां ह्यूमन बायॉलजी बड़ी चालें चलती है। जब ट्रेड सही पड़ता है और आप पैसा बनाते हैं तो दिमाग शरीर में डोपामाइन रिलीज करता है जो लोगों को पॉजिटिव फील कराता है और अच्छा करने का भरोसा जगाता है। डोपामाइन लत लगाने वाला भी होता है जो लोगों को हमेशा पॉजिटिव, कॉन्फिडेंट और जोश से भरपूर रखता है। जितना ज्यादा रिवॉर्ड होता है, दिमाग उतनी ज्यादा डोपामाइन रिलीज करता है जो इन्वेस्टर्स को एक तरह के दुश्चक्र में फंसा देता है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक वेल्थ क्रिएशन की चाबी एसेट अलोकेशन में छुपी होती है। वैल्यू रिसर्च के सीईओ धीरेंद्र कुमार कहते हैं, 'पोर्टफोलियो को सेफ रखने का सबसे अच्छा तरीका इक्विटी और डेट पर्सेंटेज में बैलेंस बनाना और उसमें उतार-चढ़ाव के साथ बदलाव करते रहना चाहिए।' एक समझदार निवेशक मनोभावों पर काबू रखता है और रिस्क घटाने के लिए पोर्टफोलियो को रीबैलेंस करता रहता है।

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