प्रशांत महेश, मुंबई
डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीम्स अपने पोर्टफोलियो में कई कंपनियों के शेयर रखती हैं। आमतौर पर ऐसे फंड्स अपने पोर्टफोलियो में 40-75 शेयर रखते हैं। हालांकि ऐसी स्कीम्स भी हैं, जो अपने पोर्टफोलियो में 20-25 शेयर ही रखती हैं। ऐसी स्कीमों के पोर्टफोलियो को कॉन्संट्रेटेड पोर्टफोलियो कहा जाता है। ऐसी स्कीमों में पोर्टफोलियो की टॉप 5 से 10 होल्डिंग्स में 50 पर्सेंट से ज्यादा निवेश लगा होता है। दूसरी ओर अगर ऐसी होल्डिंग्स में पोर्टफोलियो की 40 पर्सेंट से कम रकम लगी होती है तो उसे डिफ्यूज्ड पोर्टफोलियो कहा जाता है।
कॉन्संट्रेटेड फंड्स अपेक्षाकृत कम शेयरों में निवेश करते हैं। ये इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीम्स फंड मैनेजरों के अनुभव का लाभ लेकर इन शेयरों में ज्यादा निवेश करती हैं ताकि बेंचमार्क इंडेक्स से बेहतर रिटर्न हासिल किया जा सके। इस तरह टॉप 10-20 शेयरों में टोटल पोर्टफोलियो का 50-65 पर्सेंट तक हिस्सा निवेश किया जाता है। जहां अधिकतर म्यूचुअल फंड्स अपने पोर्टफोलियो में 40-70 शेयर रखते हैं और हर शेयर में पोर्टफोलियो की कुल रकम के औसतन 5 पर्सेंट से ज्यादा निवेश नहीं करते, वहीं कॉन्संट्रेटेड फंड्स छोटी होल्डिंग्स को हटा देते हैं, लेकिन डायवर्सिफिकेशन का फायदा लेने से परहेज नहीं करते। कॉन्संट्रेटेड फंड्स भी किसी एक शेयर में अपने पोर्टफोलियो का 10 पर्सेंट से ज्यादा हिस्सा निवेश नहीं कर सकते हैं और ट्रस्टी के अप्रूवल के बाद 12 पर्सेंट तक ही निवेश कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि चुनिंदा शेयरों में ही पोर्टफोलियो को केंद्रित किया जा सकता है। किसी खास सेक्टर में ज्यादा वेटेज रखने वाले फंड्स भी कॉन्संट्रेटेड होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ फंड्स बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज स्पेस में 40-50 पर्सेंट तक वेटेज रखते हैं। ऐसे फंड्स आमतौर पर किसी कॉन्संट्रेटेड सेक्टर में चुनिंदा शेयर होल्ड करते हैं।
कई फाइनेंशियल प्लानर्स का मानना है कि कॉन्संट्रेटेड स्ट्रैटेजी से फायदा होता है। अगर कोई फंड मैनेजर ऐसे शेयर चुने, जो अच्छा प्रदर्शन कर सकते हों तो ऐसे शेयरों में ज्यादा निवेश करने से अपनी कैटेगरी और बेंचमार्क के मुकाबले बेहतर रिटर्न हासिल किया जा सकता है। इसके मुकाबले ऐसे शेयरों में कम होल्डिंग्स वाले पोर्टफोलियो को इनसे मिलने वाले ज्यादा रिटर्न का असर दूसरे शेयरों में कम फायदे या नुकसान से खत्म हो जाएगा। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कॉन्संट्रेटेड स्ट्रैटेजी एक दायरे में चल रहे मार्केट्स में भी काम कर सकती है, जिसमें चुनिंदा शेयर ही चढ़ते हैं और बाकी शेयर सीमित दायरे में ट्रेड करते हैं।
कॉन्संट्रेटेड होल्डिंग्स वाले इक्विटी फंड्स वोलैटाइल हो सकते हैं या अंडरपरफॉर्मेंस के दौर से गुजर सकते हैं। अगर कोई फंड मैनेजर किसी शेयर में ज्यादा निवेश करे और दांव उल्टा पड़ जाए तो उस पोजिशन से एग्जिट करने में लंबा वक्त लग सकता है। इसके मुकाबले छोटी होल्डिंग्स रखने वाले फंड्स ऐसी सूरत में जल्दी उबर सकते हैं।
डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीम्स अपने पोर्टफोलियो में कई कंपनियों के शेयर रखती हैं। आमतौर पर ऐसे फंड्स अपने पोर्टफोलियो में 40-75 शेयर रखते हैं। हालांकि ऐसी स्कीम्स भी हैं, जो अपने पोर्टफोलियो में 20-25 शेयर ही रखती हैं। ऐसी स्कीमों के पोर्टफोलियो को कॉन्संट्रेटेड पोर्टफोलियो कहा जाता है। ऐसी स्कीमों में पोर्टफोलियो की टॉप 5 से 10 होल्डिंग्स में 50 पर्सेंट से ज्यादा निवेश लगा होता है। दूसरी ओर अगर ऐसी होल्डिंग्स में पोर्टफोलियो की 40 पर्सेंट से कम रकम लगी होती है तो उसे डिफ्यूज्ड पोर्टफोलियो कहा जाता है।
कॉन्संट्रेटेड फंड्स अपेक्षाकृत कम शेयरों में निवेश करते हैं। ये इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीम्स फंड मैनेजरों के अनुभव का लाभ लेकर इन शेयरों में ज्यादा निवेश करती हैं ताकि बेंचमार्क इंडेक्स से बेहतर रिटर्न हासिल किया जा सके। इस तरह टॉप 10-20 शेयरों में टोटल पोर्टफोलियो का 50-65 पर्सेंट तक हिस्सा निवेश किया जाता है। जहां अधिकतर म्यूचुअल फंड्स अपने पोर्टफोलियो में 40-70 शेयर रखते हैं और हर शेयर में पोर्टफोलियो की कुल रकम के औसतन 5 पर्सेंट से ज्यादा निवेश नहीं करते, वहीं कॉन्संट्रेटेड फंड्स छोटी होल्डिंग्स को हटा देते हैं, लेकिन डायवर्सिफिकेशन का फायदा लेने से परहेज नहीं करते। कॉन्संट्रेटेड फंड्स भी किसी एक शेयर में अपने पोर्टफोलियो का 10 पर्सेंट से ज्यादा हिस्सा निवेश नहीं कर सकते हैं और ट्रस्टी के अप्रूवल के बाद 12 पर्सेंट तक ही निवेश कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि चुनिंदा शेयरों में ही पोर्टफोलियो को केंद्रित किया जा सकता है। किसी खास सेक्टर में ज्यादा वेटेज रखने वाले फंड्स भी कॉन्संट्रेटेड होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ फंड्स बैंकिंग और फाइनेंशियल सर्विसेज स्पेस में 40-50 पर्सेंट तक वेटेज रखते हैं। ऐसे फंड्स आमतौर पर किसी कॉन्संट्रेटेड सेक्टर में चुनिंदा शेयर होल्ड करते हैं।
कई फाइनेंशियल प्लानर्स का मानना है कि कॉन्संट्रेटेड स्ट्रैटेजी से फायदा होता है। अगर कोई फंड मैनेजर ऐसे शेयर चुने, जो अच्छा प्रदर्शन कर सकते हों तो ऐसे शेयरों में ज्यादा निवेश करने से अपनी कैटेगरी और बेंचमार्क के मुकाबले बेहतर रिटर्न हासिल किया जा सकता है। इसके मुकाबले ऐसे शेयरों में कम होल्डिंग्स वाले पोर्टफोलियो को इनसे मिलने वाले ज्यादा रिटर्न का असर दूसरे शेयरों में कम फायदे या नुकसान से खत्म हो जाएगा। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कॉन्संट्रेटेड स्ट्रैटेजी एक दायरे में चल रहे मार्केट्स में भी काम कर सकती है, जिसमें चुनिंदा शेयर ही चढ़ते हैं और बाकी शेयर सीमित दायरे में ट्रेड करते हैं।
कॉन्संट्रेटेड होल्डिंग्स वाले इक्विटी फंड्स वोलैटाइल हो सकते हैं या अंडरपरफॉर्मेंस के दौर से गुजर सकते हैं। अगर कोई फंड मैनेजर किसी शेयर में ज्यादा निवेश करे और दांव उल्टा पड़ जाए तो उस पोजिशन से एग्जिट करने में लंबा वक्त लग सकता है। इसके मुकाबले छोटी होल्डिंग्स रखने वाले फंड्स ऐसी सूरत में जल्दी उबर सकते हैं।