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आम्रपाली के फ्लैट खरीदारों में जगी आस, पर कई तरह की टेंशन भी

आम्रपाली बिल्डर के सभी प्रॉजेक्ट को पूरा करने के एनबीसीसी के प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट की ओर से उसे मान लिए जाने के बाद बायर्स के मन में जहां एक तरफ घर मिलने की आस जगी है, वहीं दूसरी ओर कई शंकाएं और सवाल

नवभारत टाइम्स 3 Aug 2018, 10:40 am
नोएडा
नवभारतटाइम्स.कॉम FLATS
प्रतीकात्मक तस्वीर

आम्रपाली बिल्डर के सभी प्रॉजेक्ट को पूरा करने के एनबीसीसी के प्रस्ताव और सुप्रीम कोर्ट की ओर से उसे मान लिए जाने के बाद बायर्स के मन में जहां एक तरफ घर मिलने की आस जगी है, वहीं दूसरी ओर कई शंकाएं और सवाल भी खड़े हो गए हैं। जो लोग इनकी सोसायटियों में रह रहे हैं वे रखरखाव और इसके लिए जमा होनेवाली रकम को लेकर असमंजस में हैं। अभी तक रखरखाव का पैसा बिल्डर के अकाउंट में जमा किया जा रहा था। अगस्त से कहां जमा करेंगे और अगर नहीं करेंगे तो कहीं बिजली न कट जाए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर के अकाउंट सीज करने का आदेश दिया है।

भ्रम में हैं रेजिडेंट्स
नोएडा में आम्रपाली के करीब 10-12 प्रॉजेक्ट्स हैं। अधिकांश प्रॉजेक्ट में रजिस्टर्ड एओए (अपार्टमेंट ओनर असोसिएशन) न होने के बाद भी मेंटिनेंस चार्ज के लिए अलग अकाउंट खुले हुए हैं। आम्रपाली जोडिएक और ईडन पार्क प्रॉजेक्ट के लोग ज्यादा दुविधा में हैं। जोडिएक में आरडब्ल्यूए अध्यक्ष आर. पी. सिंह का कहना है कि दो-चार दिन बाद ही सही स्थिति सामने आएगी।

पढ़ें: आम्रपाली ग्रुप के प्रॉजेक्ट्स को पूरा करने के लिए तैयार NBCC

वहीं, आम्रपाली प्लैटिनम में रजिस्टर्ड एओए होने से ऐसी कोई दिक्कत नहीं होगी। प्रिंसले के रेजिडेंट संजय पांडे का कहना है कि हमारे यहां चार महीने पहले एक अकाउंट ऐसा ही खुला है, जिसमें रेजिडेंट और बिल्डर दोनों शामिल हैं फिर भी लोग परेशान हैं। सफायर में रहने वाले संजय नागपाल का कहना है कि हमारे यहां अलग अकाउंट बना हुआ है इसलिए दिक्कत नहीं आएगी। इसी तरह सिलिकॉन सिटी में भी ऐसा अलग से अकाउंट बना हुआ है।

आखिर कहां से आएगा पैसा?
ग्रेटर नोएडा में आम्रपाली के 6 रेजिडेंशल प्रॉजेक्ट्स से लगभग 32 हजार बायर्स जुड़े हैं। ग्रेनो प्राधिकरण ने आम्रपाली के प्रॉजेक्ट को डी कैटिगरी में रखा था, जिसे सबसे क्रिटिकल स्थिति में माना गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ड्रीम वैली प्रॉजेक्ट के बायर एवं पटिशनर इंद्रीश गुप्ता से बात की गई तो उन्होंने कहा कि हम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हैं।

उन्होंने कहा कि अब उन्हें घर मिलने की आस जगी है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि प्रॉजेक्ट्स को पूरा करने में लगने वाले 3 हजार करोड़ कहां से आएंगे। हम मांग करेंगे कि ये भार बायर्स पर नहीं पड़ना चाहिए। सरकार को भी आगे आना चाहिए। वहीं, सेंचुरियन पार्क प्रॉजेक्ट के बायर जयप्रकाश ने कहा कि वैसे तो हम एक बार फिर से छह माह पीछे आकर खड़े हो गए हैं, लेकिन इस सब के बीच खुशी की बात यह है कि कोर्ट ने एनबीसीसी को प्रॉजेक्ट पूरा करने के लिए कहा है। एनबीसीसी के स्वीकार करने के बाद अब हर हाल में घर मिल सकेगा। इसी तरह नेफोवा की महासचिव श्वेता भारती से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभी तक हम सोच रहे थे कि सरकार अड़ंगा क्यों लगा रही है, लेकिन इस फैसले से एक बार फिर से आस जाग गई है।

नोएडा अथॉरिटी के ओएसडी संतोष सिंह का कहना है कि कोर्ट की कॉपी पढ़ने के बाद ही इस बारे में कुछ कहा जा सकता है, लेकिन रेजिडेंट्स को परेशान होने की जरूरत नहीं है। अगर किसी प्रॉजेक्ट में ऐसी कोई दिक्कत आएगी भी तो उसका स्थानीय स्तर पर समाधान निकाल लिया जाएगा, जिससे मेंटिनेंस प्रभावित न हो।

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