नई दिल्ली
Unfinished Real Estate Projects: अपने घर का सपना हर कोई देखता है। लेकिन देश में 5 लाख से ज्यादा घर खरीदार ऐसे हैं, जिनका यह सपना सालों से तैयार ही हो रहा है और वे इस इंतजार में हैं कि कब उन्हें उनके सपनों का घर मिले। लाखों घर खरीदारों के घर देश में अटके पड़े रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स में फंसे हैं। कंस्ट्रक्शन रुके होने की वजह या तो रियल एस्टेट कंपनियों पर चल रहे मुकदमे हैं या फिर उनका दिवालिया होना। वहीं कोविड के आने के बाद आई मंदी ने भी इसमें योगदान दिया है। अब जेपी-सुरक्षा डील (Jaypee-Suraksha Deal) की वजह से एक बार फिर अटके पड़े लाखों फ्लैट्स की समस्या ने फिर से ध्यान आकर्षित किया है। 23 जून को, नोएडा स्थित जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड के वित्तीय लेनदारों ने जेपी इंफ्राटेक के टेक ओवर और अधूरे 20,000 ऑड-अपार्टमेंट्स को पूरा करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एनबीसीसी के बजाय मुंबई के सुरक्षा समूह का चयन किया।
कितनी बड़ी है समस्या?
2020 के आखिर तक भारत के 7 मेट्रो शहरों में अनफिनिश्ड रेजिडेंशियल रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स की संख्या 1,132 थी। 2013 से पहले लॉन्च हुए और विभिन्न कारणों से अटके इन प्रॉजेक्ट्स में 5 लाख से ज्यादा आवासीय यूनिट हैं। इन प्रॉजेक्ट्स की वैल्यू की बात करें तो रियल एस्टेट कंसल्टिंग फर्म एनारॉक के मुताबिक, यह वैल्यू 4.1 लाख करोड़ रुपये से थोड़ी ही कम है।
इन अनफिनिश्ड प्रॉजेक्ट्स का लगभग तीन चौथाई हिस्सा NCR और मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन में स्थित है। बेंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद तीनों में इन प्रॉजेक्ट्स का कुल मिलाकर 10 फीसदी हिस्सा है, वहीं पुणे में 16 फीसदी हिस्सा है। कई घर खरीदार 10 साल से भी अधिक वक्त से अपने घर के तैयार होने का इंतजार कर रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जो घर का मालिक बने बिना ही होम लोन की ईएमआई भर रहे हैं।
प्रॉजेक्ट्स पूरे होने में देरी क्यों?
अभी तक रियल एस्टेट काफी हद तक अनियंत्रित था, जिससे बिल्डरों को बिना किसी जांच के प्रॉजेक्ट शुरू करने की अनुमति मिलती थी। जमीन की खरीद बैंकों द्वारा फाइनेंस नहीं होती थी। इसलिए डेवलपर्स पैसा एक प्रॉजेक्ट से दूसरे में डायवर्ट करते रहते थे। ऐसा तब तक चला, जब तक सिस्टम में धन की कमी नहीं हो गई और इसे बड़ी मात्रा में नकद लेनदेन से मदद मिली।
फिर अर्थव्यवस्था के धीमे पड़ने से समस्याएं सामने आईं। इसके अलावा, रियल एस्टेट के लिए आए रेगुलेशंस ने शुरुआत में स्थिति को और खराब कर दिया। रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) अधिनियम और दिवाला और दिवालियापन संहिता से लेकर उच्च मूल्य के लेन-देन पर अधिक नजर रखे जाने तक, अधिक जांचों ने रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए कठिनाइयां पैदा कीं। और फाइनेंसिंग के एक विश्वसनीय स्रोत एनबीएफसी के सामने खड़ी हुई परेशानी ने रियल एस्टेट कंपनियों के लिए स्थिति को और खराब कर दिया।
इसमें कुछ हद तक स्थानीय कारकों को भी योगदान रहा जैसे कि एक पक्षी अभयारण्य से प्रॉजेक्टस की निकटता के चलते नोएडा में कंस्ट्रक्शन पर रोक और उच्च प्रदूषण अवधि के दौरान निर्माण पर प्रतिबंध की वजह से समय-समय पर काम रुकना आदि।
यह भी पढ़ें: अगस्त से अक्टूबर तक हवाई सफर पर बंपर ऑफर, 50% तक घटीं एडवांस टिकट की कीमतें
क्या सरकार ने संकट पर प्रतिक्रिया नहीं की?
सरकार ने रियल एस्टेट के इस संकट पर प्रतिक्रिया की। रेरा को इस क्षेत्र को अनुशासित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। रेरा के तहत प्रावधान किया गया कि एक प्रॉजेक्ट से हासिल किए गए फंड को बड़े पैमाने पर एस्क्रो खाते में रखा जाएगा। साथ ही इस कानून में प्रॉजेक्ट पूरे होने में देरी के मामले में कठोर दंड का प्रावधान है। राज्यों में अब रियल एस्टेट नियामक एजेंसियां हैं और प्रत्येक प्रॉजेक्ट को निगरानी के लिए रजिस्टर किया जाता है। IBC को भी संशोधित किया गया ताकि होमबायर्स को कंपनी के भाग्य का फैसला करने में अपनी बात कहने की अनुमति मिल सके। इसके अलावा, भारत सरकार ने 1.1 लाख से अधिक यूनिट को पूरा करने के लिए लास्ट माइल फाइनेंस प्रदान करने के लिए 'स्वामीह' नामक 25,000 करोड़ रुपये का फंड स्थापित किया।
क्यों काम नहीं कर रहीं ये सब चीजें?
सबसे बड़ी समस्या महामारी की वजह से रियल एस्टेट सेक्टर में मांग में आई गिरावट और घरों की कीमत में कमी है। फंड्स का फ्लो स्लो हो चुका है। जो लोग घरों को निवेश विकल्प के तौर पर देखते थे, उनके लिए अब इक्विटी और म्यूचुअल फंड्स जैसे दूसरे विकल्प ज्यादा आकर्षक बन गए हैं। नियामकीय बदलावों के बावजूद बैंक इस क्षेत्र को कर्ज देने में सावधानी बरत रहे हैं, जिसकी वजह मार्केट में कई बिल्डरों का बेहद खराब हो चुका नाम है।
IBC समाधान भी स्लो है। इसकी वजह है कि इसमें होम बायर्स और डेवलपर्स को मिलकर कंपनी के नए मालिक का फैसला करना होता है लेकिन उनके बीच हितों का टकराव रहता है। होमबायर्स अपने फ्लैट का जितनी जल्द हो सके पजेशन चाहते हैं। बैंक और वित्तीय संस्थान घाटे को सीमित करना चाहते हैं और उन समाधान आवेदकों को प्राथमिकता देते हैं जो उन्हें सबसे अच्छे सौदे की पेशकश करते हैं। धीमी गति से काम करने वाले नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल, बैंकरप्सी कोर्ट, अपीलेट ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट भी मदद नहीं कर सके। जहां तक सरकार के 'स्वामीह' की बात है तो इसकी कई शर्तें बहुत कठिन दिखाई देती हैं, जिससे कई बिल्डर अपात्र हो जाते हैं।
तो पॉलिसी विकल्प क्या हैं?एक नए हाइब्रिड मॉडल की आवश्यकता हो सकती है। यदि मौजूदा डेवलपर्स घर को डिलीवर करने में विफल हो जाते हैं, तो कुछ हस्तक्षेप की जरूरत है ताकि एक नया प्रबंधन आ सके और प्रॉजेक्ट को पूरा कर सके। सरकारों और बैंकों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि बातचीत के साथ ऋण निपटान सहित फंड का पर्याप्त फ्लो हो। स्थानीय अधिकारियों को भी अपने कुछ दावों को कम करने की जरूरत है क्योंकि स्थानीय करों पर मूलधन और जुर्माना अक्सर मूल डिफॉल्ट राशि से कई गुना बढ़ जाता है।
Unfinished Real Estate Projects: अपने घर का सपना हर कोई देखता है। लेकिन देश में 5 लाख से ज्यादा घर खरीदार ऐसे हैं, जिनका यह सपना सालों से तैयार ही हो रहा है और वे इस इंतजार में हैं कि कब उन्हें उनके सपनों का घर मिले। लाखों घर खरीदारों के घर देश में अटके पड़े रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स में फंसे हैं। कंस्ट्रक्शन रुके होने की वजह या तो रियल एस्टेट कंपनियों पर चल रहे मुकदमे हैं या फिर उनका दिवालिया होना। वहीं कोविड के आने के बाद आई मंदी ने भी इसमें योगदान दिया है। अब जेपी-सुरक्षा डील (Jaypee-Suraksha Deal) की वजह से एक बार फिर अटके पड़े लाखों फ्लैट्स की समस्या ने फिर से ध्यान आकर्षित किया है।
कितनी बड़ी है समस्या?
2020 के आखिर तक भारत के 7 मेट्रो शहरों में अनफिनिश्ड रेजिडेंशियल रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट्स की संख्या 1,132 थी। 2013 से पहले लॉन्च हुए और विभिन्न कारणों से अटके इन प्रॉजेक्ट्स में 5 लाख से ज्यादा आवासीय यूनिट हैं। इन प्रॉजेक्ट्स की वैल्यू की बात करें तो रियल एस्टेट कंसल्टिंग फर्म एनारॉक के मुताबिक, यह वैल्यू 4.1 लाख करोड़ रुपये से थोड़ी ही कम है।
इन अनफिनिश्ड प्रॉजेक्ट्स का लगभग तीन चौथाई हिस्सा NCR और मुंबई मेट्रोपोलिटन रीजन में स्थित है। बेंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद तीनों में इन प्रॉजेक्ट्स का कुल मिलाकर 10 फीसदी हिस्सा है, वहीं पुणे में 16 फीसदी हिस्सा है। कई घर खरीदार 10 साल से भी अधिक वक्त से अपने घर के तैयार होने का इंतजार कर रहे हैं। कई लोग ऐसे भी हैं, जो घर का मालिक बने बिना ही होम लोन की ईएमआई भर रहे हैं।
प्रॉजेक्ट्स पूरे होने में देरी क्यों?
अभी तक रियल एस्टेट काफी हद तक अनियंत्रित था, जिससे बिल्डरों को बिना किसी जांच के प्रॉजेक्ट शुरू करने की अनुमति मिलती थी। जमीन की खरीद बैंकों द्वारा फाइनेंस नहीं होती थी। इसलिए डेवलपर्स पैसा एक प्रॉजेक्ट से दूसरे में डायवर्ट करते रहते थे। ऐसा तब तक चला, जब तक सिस्टम में धन की कमी नहीं हो गई और इसे बड़ी मात्रा में नकद लेनदेन से मदद मिली।
फिर अर्थव्यवस्था के धीमे पड़ने से समस्याएं सामने आईं। इसके अलावा, रियल एस्टेट के लिए आए रेगुलेशंस ने शुरुआत में स्थिति को और खराब कर दिया। रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) अधिनियम और दिवाला और दिवालियापन संहिता से लेकर उच्च मूल्य के लेन-देन पर अधिक नजर रखे जाने तक, अधिक जांचों ने रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए कठिनाइयां पैदा कीं। और फाइनेंसिंग के एक विश्वसनीय स्रोत एनबीएफसी के सामने खड़ी हुई परेशानी ने रियल एस्टेट कंपनियों के लिए स्थिति को और खराब कर दिया।
इसमें कुछ हद तक स्थानीय कारकों को भी योगदान रहा जैसे कि एक पक्षी अभयारण्य से प्रॉजेक्टस की निकटता के चलते नोएडा में कंस्ट्रक्शन पर रोक और उच्च प्रदूषण अवधि के दौरान निर्माण पर प्रतिबंध की वजह से समय-समय पर काम रुकना आदि।
यह भी पढ़ें: अगस्त से अक्टूबर तक हवाई सफर पर बंपर ऑफर, 50% तक घटीं एडवांस टिकट की कीमतें
क्या सरकार ने संकट पर प्रतिक्रिया नहीं की?
सरकार ने रियल एस्टेट के इस संकट पर प्रतिक्रिया की। रेरा को इस क्षेत्र को अनुशासित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। रेरा के तहत प्रावधान किया गया कि एक प्रॉजेक्ट से हासिल किए गए फंड को बड़े पैमाने पर एस्क्रो खाते में रखा जाएगा। साथ ही इस कानून में प्रॉजेक्ट पूरे होने में देरी के मामले में कठोर दंड का प्रावधान है। राज्यों में अब रियल एस्टेट नियामक एजेंसियां हैं और प्रत्येक प्रॉजेक्ट को निगरानी के लिए रजिस्टर किया जाता है। IBC को भी संशोधित किया गया ताकि होमबायर्स को कंपनी के भाग्य का फैसला करने में अपनी बात कहने की अनुमति मिल सके। इसके अलावा, भारत सरकार ने 1.1 लाख से अधिक यूनिट को पूरा करने के लिए लास्ट माइल फाइनेंस प्रदान करने के लिए 'स्वामीह' नामक 25,000 करोड़ रुपये का फंड स्थापित किया।
क्यों काम नहीं कर रहीं ये सब चीजें?
सबसे बड़ी समस्या महामारी की वजह से रियल एस्टेट सेक्टर में मांग में आई गिरावट और घरों की कीमत में कमी है। फंड्स का फ्लो स्लो हो चुका है। जो लोग घरों को निवेश विकल्प के तौर पर देखते थे, उनके लिए अब इक्विटी और म्यूचुअल फंड्स जैसे दूसरे विकल्प ज्यादा आकर्षक बन गए हैं। नियामकीय बदलावों के बावजूद बैंक इस क्षेत्र को कर्ज देने में सावधानी बरत रहे हैं, जिसकी वजह मार्केट में कई बिल्डरों का बेहद खराब हो चुका नाम है।
IBC समाधान भी स्लो है। इसकी वजह है कि इसमें होम बायर्स और डेवलपर्स को मिलकर कंपनी के नए मालिक का फैसला करना होता है लेकिन उनके बीच हितों का टकराव रहता है। होमबायर्स अपने फ्लैट का जितनी जल्द हो सके पजेशन चाहते हैं। बैंक और वित्तीय संस्थान घाटे को सीमित करना चाहते हैं और उन समाधान आवेदकों को प्राथमिकता देते हैं जो उन्हें सबसे अच्छे सौदे की पेशकश करते हैं। धीमी गति से काम करने वाले नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल, बैंकरप्सी कोर्ट, अपीलेट ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट भी मदद नहीं कर सके। जहां तक सरकार के 'स्वामीह' की बात है तो इसकी कई शर्तें बहुत कठिन दिखाई देती हैं, जिससे कई बिल्डर अपात्र हो जाते हैं।
तो पॉलिसी विकल्प क्या हैं?एक नए हाइब्रिड मॉडल की आवश्यकता हो सकती है। यदि मौजूदा डेवलपर्स घर को डिलीवर करने में विफल हो जाते हैं, तो कुछ हस्तक्षेप की जरूरत है ताकि एक नया प्रबंधन आ सके और प्रॉजेक्ट को पूरा कर सके। सरकारों और बैंकों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि बातचीत के साथ ऋण निपटान सहित फंड का पर्याप्त फ्लो हो। स्थानीय अधिकारियों को भी अपने कुछ दावों को कम करने की जरूरत है क्योंकि स्थानीय करों पर मूलधन और जुर्माना अक्सर मूल डिफॉल्ट राशि से कई गुना बढ़ जाता है।