[ किरण काब्ता | ईटीआईजी ]
हेल्थकेयर और फार्मा कंपनियों के आईपीओ इनवेस्टर्स के बीच खासे कामयाब रहे हैं। लॉरस लैब्स अपवाद नहीं होगी, क्योंकि उसका बिजनेस मॉडल बड़ा दमदार है और इसकी बागडोर अनुभवी मैनेजमेंट के हाथ है। कंपनी प्राइमरी मार्केट से 1330 करोड़ रुपये जुटा रही है जिसके लिए 78 पर्सेंट शेयर ऑफर फॉर सेल और 22 पर्सेंट फ्रेश शेयर बेचे जा रहे हैं। फ्रेश शेयरों की बिक्री से हासिल होने वाले 225 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल कंपनी अपने खाते से कर्ज का बोझ घटाने में करेगी।
कारोबार: हैदराबाद की कंपनी लॉरस लैब्स चुनिंदा जेनेरिक कंपनियों के लिए एंटी-एड्स, हेपेटाइटिस सी और कैंसर की दवाओं के लिए एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स (API) बनाती है। कंपनी कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग और न्यूट्रास्युटिकल्स के लिए स्पेशियलिटी इंग्रेडिएंट्स भी बनाती है। कंपनी फॉर्म्यूलेशन बाजार में भारी निवेश करके फुली इंटीग्रेटेड फार्मा प्लेयर बनना चाहती है।
लेकिन इस एपीआई मेकर को दूसरे बिजनेस सेगमेंट से ठीकठाक रेवेन्यू कमाने में तीन से पांच साल लगेंगे। लॉरस के अहम कस्टमर्स में एस्पेन फार्मा, अरबिंदो फार्मा, सिप्ला, मायलन लैब्स, नैटको फार्मा और स्ट्राइड्स शासुन शामिल हैं। आरएंडडी पर फोकस होने के चलते कंपनी रेवेन्यू का 5.6 पर्सेंट हिस्सा रिसर्च पर खर्च करती है। कंपनी इस लेवल को बनाए रख सकती है।
फाइनेंशियल: कंपनी की स्टैंडअलोन नेट सेल्स 41 पर्सेंट सीएजीआर से बढ़कर 1780 करोड़ रुपये हो चुकी है और इसका नेट प्रॉफिट 61 पर्सेंट सीएजीआर से बढ़कर 143.5 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। कंपनी का ऑपरेटिंग मार्जिन फिस्कल ईयर 2012 के 17.3 पर्सेंट से बढ़कर फिस्कल ईयर में 21.4 पर्सेंट हो गया था।
कंपनी ग्रोथ फेज में है और यह अपनी मैन्युफैक्चरिंग और आरएंडडी क्षमताएं बढ़ा रही है। कंपनी का नेट डेट सितंबर 2016 के अंत तक 1100 करोड़ रुपये था। इश्यू के बाद कंपनी का नेट डेट घटकर 750 करोड़ रुपये तक आ सकता है।
वैल्यूएशन: कंपनी आईपीओ से 4500 करोड़ रुपये जुटा रही है। यह उसके सालाना रेवेन्यू का ढाई गुना है। फिस्कल ईयर 2017 के एनुअलाइज्ड प्रॉफिट के हिसाब से इसका पी/ई 27 गुना हो रहा है। यह वैल्यूएशन डिवीज लैब जैसी इसके बराबर की कंपनी के मुकाबले थोड़ा ज्यादा है, लेकिन इसके लिए वैल्यूएशन कोई बड़ी चिंता वाली बात नहीं होनी चाहिए। हालांकि लिमिटेड प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो और चुनिंदा क्लाइंट्स पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता जैसे फैक्टर्स फिक्र वाली बात हो सकती है। ऐसा इसलिए कि इन मोर्चों पर तो तुरंत सुधार की उम्मीद भी नहीं की जा सकती।