[ आशुतोष श्याम | मुंबई ]
गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) के लागू होने से उन मिडकैप कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा होगा, जिनके पास उस सेक्टर के ऑर्गनाइज्ड मार्केट का बड़ा हिस्सा है, लेकिन उन्हें अन-ऑर्गनाइज्ड प्लेयर्स से कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ता है। इनमें एक्साइड इंडस्ट्री (देश की सबसे बड़ी बैटरी कंपनी), क्रॉम्पटन ग्रीव्ज (पंखे बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी), बाटा इंडिया (सबसे बड़ी फुटवियर फर्म), पीवीआर (सबसे बड़ी मल्टीप्लेक्स ऑपरेटर), सुप्रीम इंडस्ट्रीज (सबसे बड़ी पाइप कंपनी), ग्रीनप्लाई इंडस्ट्रीज (सबसे बड़ी प्योर प्ले पैनल प्रॉडक्ट मेकर), सिम्फनी (सबसे बड़ी एयर कूलर कंपनी), सेरा सेनेटरीवेयर (सबसे बड़ी सेनेटरीवेयर मैन्युफैक्चरर) शामिल हैं।
डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स के बड़े हिस्से से बचने की वजह से अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर सामान और सर्विस ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की कंपनी की तुलना में काफी कम कीमत पर ऑफर करता है। जीएसटी के लागू होने के बाद अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर के लिए कीमतों के मामले में बढ़त खत्म होने के आसार हैं। सरकारी डिपार्टमेंट के इंटीग्रेशन के चलते इन कंपनियों के लिए टैक्स से बचना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में जानी-मानी मिडकैप कंपनियों के प्रॉडक्ट्स की मांग बढ़ सकती है। आखिर वैसी ही कीमत पर ग्राहक असंगठित क्षेत्र की कंपनी का सामान क्यों खरीदेंगे?
ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की कंपनियां 23-24 पर्सेंट टैक्स चुकाती हैं। अगर मान लिया जाए कि जीएसटी का रेट 18 पर्सेंट रहता है तो ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की कंपनियों के टैक्स के बोझ में 4-5 पर्सेंट की कमी आएगी। कंपनियां इसका फायदा ग्राहकों को दे सकती हैं, जिससे उनके प्रॉडक्ट्स की मांग बढ़ेगी। हमने ऊपर जिन कंपनियों का जिक्र किया है, उनमें से ज्यादातर ऐसे सेक्टर में काम करती हैं जिनमें अन-ऑर्गनाइज्ड सेक्टर की कंपनियों की मार्केट हिस्सेदारी 40 से 70 पर्सेंट के बीच है।