मुंबई
अब बिल्डर द्वारा दिया गया लेटर ऑफ अलॉटमेंट नए मकान में निवेश का पर्याप्त सबूत माना जाएगा। इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल(ITAT) की मुंबई बेंच ने एक आदेश के जरिए यह बात कही है। कई बार ऐसा होता है कि कुछ वजहों से बिल्डर 'अग्रीमेंट टू सेल' में देरी होती है, जिसकी वजह से टैक्सपेयर्स को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे टैक्सपेयरों के लिए ITAT का यह फैसला राहत की खबर है।
कैसे मदद करेगा लेटर ऑफ अलॉटमेंट?
ITAT का यह फैसला काफी अहम है। हाउसिंग प्रॉपर्टी या किसी अन्य पूंजीगत संपत्ति(जमीन, कमर्शल प्रॉपर्टी आदि) की बिक्री के वक्त टैक्सपेयर उसपर LTCG(लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स) डिडक्शन्स का हकदार होता है, बशर्ते कि वह उस रकम का नए मकान में निवेश कर रहा हो। आईटी ऐक्ट के सेक्शन 54 और 54-F के तहत नए मकान की खरीद के टाइम फ्रेम जैसी शर्तों के साथ इन बेनिफिट्स का प्रावधान है। इस डिडक्शन के जरिए कैपिटल गेन्स का टैक्सेबल हिस्सा कम हो जाता है और टैक्सपेयर को कम टैक्स देना होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर पूरा LTCG नए मकान पर खर्च कर दिया जाता है तो टैक्सपेयर को कैपिटल गेन्स पर बिल्कुल टैक्स नहीं देना होगा।
चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की कंपनी सीएनके ऐंड असोसिएट्स में टैक्स पार्टनर गौतम नायक कहते हैं, 'इस मामले में ITAT ने पाया कि लेटर ऑफ अलॉटमेंट के आधार पर हाउसिंग प्रॉपर्टी के लिए मोटी रकम अदा कर दी गई थी, लिहाजा टैक्सपेयर को आवासीय प्रॉपर्टी में दोबारा निवेश करने पर एक्जेंप्शन का फायदा मिलना चाहिए।'
असेसमेंट के दौरान आईटी अधिकारी टैक्स रिटर्न के जरिए डिडक्शन्स के दावों से जुड़े सबूत मांगते हैं। इस मामले में आईटी विभाग ने LTCG पर डिडक्शन का क्लेम देने से इनकार कर दिया था। ऐसा माना जा रहा था कि लेटर ऑफ अलॉटमेंट के तहत टैक्सपेयर बिल्डर को जो भुगतान कर रहा था, वे अडवांस पेमेंट के रूप में थे।
अब बिल्डर द्वारा दिया गया लेटर ऑफ अलॉटमेंट नए मकान में निवेश का पर्याप्त सबूत माना जाएगा। इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल(ITAT) की मुंबई बेंच ने एक आदेश के जरिए यह बात कही है। कई बार ऐसा होता है कि कुछ वजहों से बिल्डर 'अग्रीमेंट टू सेल' में देरी होती है, जिसकी वजह से टैक्सपेयर्स को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसे टैक्सपेयरों के लिए ITAT का यह फैसला राहत की खबर है।
कैसे मदद करेगा लेटर ऑफ अलॉटमेंट?
ITAT का यह फैसला काफी अहम है। हाउसिंग प्रॉपर्टी या किसी अन्य पूंजीगत संपत्ति(जमीन, कमर्शल प्रॉपर्टी आदि) की बिक्री के वक्त टैक्सपेयर उसपर LTCG(लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स) डिडक्शन्स का हकदार होता है, बशर्ते कि वह उस रकम का नए मकान में निवेश कर रहा हो। आईटी ऐक्ट के सेक्शन 54 और 54-F के तहत नए मकान की खरीद के टाइम फ्रेम जैसी शर्तों के साथ इन बेनिफिट्स का प्रावधान है। इस डिडक्शन के जरिए कैपिटल गेन्स का टैक्सेबल हिस्सा कम हो जाता है और टैक्सपेयर को कम टैक्स देना होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर पूरा LTCG नए मकान पर खर्च कर दिया जाता है तो टैक्सपेयर को कैपिटल गेन्स पर बिल्कुल टैक्स नहीं देना होगा।
चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की कंपनी सीएनके ऐंड असोसिएट्स में टैक्स पार्टनर गौतम नायक कहते हैं, 'इस मामले में ITAT ने पाया कि लेटर ऑफ अलॉटमेंट के आधार पर हाउसिंग प्रॉपर्टी के लिए मोटी रकम अदा कर दी गई थी, लिहाजा टैक्सपेयर को आवासीय प्रॉपर्टी में दोबारा निवेश करने पर एक्जेंप्शन का फायदा मिलना चाहिए।'
असेसमेंट के दौरान आईटी अधिकारी टैक्स रिटर्न के जरिए डिडक्शन्स के दावों से जुड़े सबूत मांगते हैं। इस मामले में आईटी विभाग ने LTCG पर डिडक्शन का क्लेम देने से इनकार कर दिया था। ऐसा माना जा रहा था कि लेटर ऑफ अलॉटमेंट के तहत टैक्सपेयर बिल्डर को जो भुगतान कर रहा था, वे अडवांस पेमेंट के रूप में थे।