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बल्ब और एडिसन: गलत है यह बात, जानें सच

आमतौर पर यह माना जाता है कि लाइट बल्ब का आविष्कार एडिसन ने किया जबकि यह सही नहीं है। असल में पहले से मौजूद बल्ब के मॉडल में उन्होंने कुछ बदलाव किया था और उसका पेटेंट अपने नाम कराया था। आइए आज जानते हैं कि आखिर यह बल्ब किस का आविष्कार है।

नवभारतटाइम्स.कॉम 11 Feb 2020, 9:00 am
यह पता लगा पाना मुश्किल है कि पहले लाइट बल्ब का आविष्कार कब हुआ। दरअसल एडिसन से काफी पहले शोधकर्ता और वैज्ञानिक परंपरागत लैंप की जगह बिजली से प्रकाशमान होने वाले लैंप की खोज में लगे रहे हैं। 19वीं सदी में आविष्कारकों ने रोशनी के लिए सुरक्षित और अधिक सुविधाजनक माध्यम की तलाश के लिए काफी काम किया। उन सबके कामों के आधार पर ही एडिसन ने लाइट बल्ब का संशोधित रूप विकसित किया और उसका पेटेंट कराया।
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बल्ब और एडिसन: गलत है यह बात, जानें सच


​वोल्टाइक पाइल (voltaic pile)

इटली के एक आविष्कारक थे आलसांद्रो वोल्टा (Alessandro Volta)। उन्हीं के नाम पर वोल्ट पड़ा है जिसका बिजली के संदर्भ में इस्तेमाल होता है। उन्होंने 'वोल्टाइक पाइल' का आविष्कार किया था जिसे पहली रासायनिक बैटरी कहा जा सकता है। उसमें कॉपर, जिंक, कार्डबोर्ड और सॉल्टवॉटर का इस्तेमाल किया गया था। जब उसके दोनों किनारे पर कॉपर की तार अटैच की जाती तो बिजली पैदा होने लगती थी।

(फोटो: साभार विकिमीडिया कॉमंस)

​हंफ्री डेवी (Humphry Davy)

हंफ्री डेवी ने कोयला की खानों में सुरक्षा के लिए दीप का आविष्कार किया था। लेकिन उन लैंपों का घर में इस्तेमाल और जलाना काफी मुश्किल था।

(फोटो: साभार विकिमीडिया कॉमंस)

​बल्ब की खोज की ओर

वैज्ञानिकों को पता था कि जब बिजली कुछ चीजों से होकर गुजरती है तो वे गर्म होने लगती हैं और अगर वे काफी गर्म हो जाएं तो वे रोशन हो जाती हैं। इसी कॉन्सेप्ट पर पहले बल्ब का आविष्कार किया गया लेकिन उनमें इस्तेमाल होने वाली चीज इतनी गर्म हो जाती थी कि वह जलने या पिघलने लगती थी। जो चीज रोशनी के लिए बल्ब में इस्तेमाल की जाती है उसको फिलामेंट कहा जाता है। आगे सभी शोधकर्ताओं ने फिलामेंट के लिए उपयुक्त सामग्री को खोजने पर अपने रिसर्च को केंद्रित किया। 1835 में स्कॉटलैंड के जेम्स बोमैन लिंडसे नाम के वैज्ञानिक ने बताया कि अगर लैंप के अंदर कॉपर का फिलामेंट हो तो वह लगातार रोशनी देता रहेगा।

(सांकेतिक तस्वीर)

​प्लैटिनम का फिलामेंट

1840 में ब्रिटेन के आविष्कारक वॉरन डे लारू ने बताया कि कॉपर की बजाय प्लैटिनम का इस्तेमाल काफी सुविधाजनक होगा। दरअसल प्लैटिनम का गलनांक काफी ज्यादा होता है, इसी वजह से वॉरन ने प्लैटिनम को फिलामेंट के लिए चुना। लेकिन प्लैटिनम के महंगे होने की वजह से उसका इस्तेमाल संभव नहीं हो सका। एडिसन ने उन मॉडलों पर काम किया और उनके अंदर सुधारकर उनको काफी उपयुक्त बनाया।

(सांकेतिक तस्वीर)

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