20 मार्च को इंटरनैशनल डे ऑफ हैपिनेस है यानी खुशियों का दिन। इस मौके पर आपको बताते हैं दुनिया के कुछ छोटे मगर सबसे खुश देशों के बारे में। कई बरसों से डेनमार्क, फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश हैपिनेस इंडेक्स में टॉप पर बने हुए हैं। आखिर ऐसा क्यों है कि अमेरिका, रूस जैसे शक्तिशाली देश हैपिनेस इंडेक्स के टॉप 10 में भी नहीं हैं, जबकि ये छोटे और कम जनसंख्या वाले देश लगातार कई बरसों से अव्वल बने हुए हैं। जब दुनिया के कई साइकॉलजिस्टों ने इस बात की बारीकी से पड़ताल की तो जो वजहें सामने आईं, वे हैं तो सामान्य, पर हर देश, समाज और शख्स के लिए बेहद जरूरी हैं।
ये छोटे देश भले ही सैन्य क्षमता में संपन्न नहीं हैं, लेकिन कमाई, सामाजिक सहयोग, शिक्षा और सेहत के मामले में दुनिया में अव्वल स्थान रखते हैं। इनके अलावा, इन देशों के लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में भी पीछे नहीं रहते, चाहे वह भावना पॉजिटिव हो या नेगेटिव। देखते हैं इन लोगों की खुशी कैसे हर हाल में कायम रहती है:
-डेनमार्क और ऐसे दूसरे देश जिनका हैपिनेस इंडेक्स शानदार है, वहां सरकारें स्थाई हैं। लोगों को इस बात की कोई फिक्र नहीं होती कि देश का भविष्य क्या होगा।
-भ्रष्टाचार जैसी चीजें इन देशों में बहुत ही कम हैं और लोगों को जॉब में मोटी सैलरी भी मिलती है।
-यहां लोगों को सेहत व शिक्षा की चिंता नहीं करनी पड़ती।
-सबसे बड़ी बात यह कि टैक्स ज्यादा देने पर भी इन्हें परेशानी नहीं है। इन देशों के नागरिक टैक्स चोरी में यकीन नहीं करते। ये मानते हैं कि ज्यादा टैक्स देने से सुविधाएं बढ़ेंगी और समाज बेहतर बनेगा।
-इन समाजों में मजहब और जात-पात जैसे भेदभाव नहीं हैं इसलिए किसी के मन में किसी के लिए कटुता नहीं है।
सब होते हैं बॉस, छुट्टि की कोई टेंशन नहीं
इन देशों में काम का बेहतर माहौल है। डेनमार्क जैसे देशों के हैपिनेस इंडेक्स में टॉपर बने रहने की एक बड़ी वजह एंप्लाई और एंप्लायर का शानदार रिश्ता भी है। दोनों ही एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। ऑफिस में बॉस वाली बात अमूमन होती नहीं। यानी सबका मान बराबर है। हां, थोड़ा-सा फर्क कंपनी के टॉप लेवल को लेकर हो सकता है, पर अमूमन मालिक के नीचे सभी समान होते हैं। सैलरी में भी बड़ा अंतर नहीं होता। एंप्लाई ही कंपनी के लिए नियम तैयार करते हैं। हर दिन 4 घंटे का काम होता है। छुट्टियों के लिए कोई टेंशन नहीं है।
भूटान मॉडल
एशिया का छोटा-सा यह देश भौतिकवाद से दूर नैतिक मूल्यों के आधार पर जीवन जीता है और खुश रहता है। लगभग 47 साल पहले अखबार के एक रिपोर्टर ने मुंबई एयरपोर्ट पर भूटान के सम्राट जिग्मे सिग्मे वांग्चुक से जब पूछा था कि आपके देश की GDP इतनी कम क्यों है, इस पर उनका जवाब था, 'हम GDP नहीं GNH (ग्रॉस नैशनल हैपिनेस) से देश चलाते हैं।'
1. भूटान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक, लेकिन खुशी के मामले में अव्वल है यह।
2. यहां भौतिकवादी विकास की बात नहीं की जाती, कुछ समय पहले तक भूटान में डिश या केवल टीवी की मौजूदगी तक नहीं थी।
3. भूटान में नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान को अहम माना जाता है।
4. यहां हैपिनेस इंडेक्स को 4 आधार पर मापा जाता है:
•सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण
•पर्यावरण का संरक्षण
•सतत विकास
•बेहतर प्रशासन
5. आर्थिक विकास बेहतर प्रशासन का ही हिस्सा माना जाता है, लेकिन यह इसका अहम हिस्सा नहीं है।
ये छोटे देश भले ही सैन्य क्षमता में संपन्न नहीं हैं, लेकिन कमाई, सामाजिक सहयोग, शिक्षा और सेहत के मामले में दुनिया में अव्वल स्थान रखते हैं। इनके अलावा, इन देशों के लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में भी पीछे नहीं रहते, चाहे वह भावना पॉजिटिव हो या नेगेटिव। देखते हैं इन लोगों की खुशी कैसे हर हाल में कायम रहती है:
-डेनमार्क और ऐसे दूसरे देश जिनका हैपिनेस इंडेक्स शानदार है, वहां सरकारें स्थाई हैं। लोगों को इस बात की कोई फिक्र नहीं होती कि देश का भविष्य क्या होगा।
-भ्रष्टाचार जैसी चीजें इन देशों में बहुत ही कम हैं और लोगों को जॉब में मोटी सैलरी भी मिलती है।
-यहां लोगों को सेहत व शिक्षा की चिंता नहीं करनी पड़ती।
-सबसे बड़ी बात यह कि टैक्स ज्यादा देने पर भी इन्हें परेशानी नहीं है। इन देशों के नागरिक टैक्स चोरी में यकीन नहीं करते। ये मानते हैं कि ज्यादा टैक्स देने से सुविधाएं बढ़ेंगी और समाज बेहतर बनेगा।
-इन समाजों में मजहब और जात-पात जैसे भेदभाव नहीं हैं इसलिए किसी के मन में किसी के लिए कटुता नहीं है।
सब होते हैं बॉस, छुट्टि की कोई टेंशन नहीं
इन देशों में काम का बेहतर माहौल है। डेनमार्क जैसे देशों के हैपिनेस इंडेक्स में टॉपर बने रहने की एक बड़ी वजह एंप्लाई और एंप्लायर का शानदार रिश्ता भी है। दोनों ही एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। ऑफिस में बॉस वाली बात अमूमन होती नहीं। यानी सबका मान बराबर है। हां, थोड़ा-सा फर्क कंपनी के टॉप लेवल को लेकर हो सकता है, पर अमूमन मालिक के नीचे सभी समान होते हैं। सैलरी में भी बड़ा अंतर नहीं होता। एंप्लाई ही कंपनी के लिए नियम तैयार करते हैं। हर दिन 4 घंटे का काम होता है। छुट्टियों के लिए कोई टेंशन नहीं है।
भूटान मॉडल
एशिया का छोटा-सा यह देश भौतिकवाद से दूर नैतिक मूल्यों के आधार पर जीवन जीता है और खुश रहता है। लगभग 47 साल पहले अखबार के एक रिपोर्टर ने मुंबई एयरपोर्ट पर भूटान के सम्राट जिग्मे सिग्मे वांग्चुक से जब पूछा था कि आपके देश की GDP इतनी कम क्यों है, इस पर उनका जवाब था, 'हम GDP नहीं GNH (ग्रॉस नैशनल हैपिनेस) से देश चलाते हैं।'
1. भूटान दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक, लेकिन खुशी के मामले में अव्वल है यह।
2. यहां भौतिकवादी विकास की बात नहीं की जाती, कुछ समय पहले तक भूटान में डिश या केवल टीवी की मौजूदगी तक नहीं थी।
3. भूटान में नैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्थान को अहम माना जाता है।
4. यहां हैपिनेस इंडेक्स को 4 आधार पर मापा जाता है:
•सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण
•पर्यावरण का संरक्षण
•सतत विकास
•बेहतर प्रशासन
5. आर्थिक विकास बेहतर प्रशासन का ही हिस्सा माना जाता है, लेकिन यह इसका अहम हिस्सा नहीं है।