Usha Sundaram: ब्रिटिश हवाई कंपनी डी हैविलैंड डव को ब्रिटेन के सबसे सफल पोस्ट वॉर सिविल डिजाइनों में से एक माना जाता है जिसका मॉडल खरीदने के लिए मद्रास सरकार ने उषा सुंदरम (Usha Sundaram) और वी सुंदरम (V Sundaram) को संपर्क किया। कपल ने इस अप्रोच को स्वीकार किया और एक शिप से इंग्लैंड गए और वहां से एक नया डी हैविलैंड डव खरीदा। इसके बाद अगले साल वे 27 घंटे की यात्रा पूरी कर इस विमान के को- पायलट बनकर लंदन से बॉम्बे पहुंच गए। इस सफर ने पिस्टन-इंजन डव पर इंग्लैंड से भारत की उड़ान के लिए वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना। विश्वसनीय को-पायलट
उषा सुंदरम और उनके पति वी सुंदरम काफी प्रतिष्ठित लोगों के विश्वसनीय को-पायलट के रूप में बने रहे। जिस वक्त इस कपल ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया उस समय उषा केवल 22 वर्ष की थी। उषा के बड़े बेटे सुरेश सुंदरम ने बताया था उनके पिता एक कुशल पायलट थे और वे मद्रास फ्लाइंग क्लब में ट्रेनर थे। उन्होंने यह भी बताया कि पिता से शादी होने के बाद बेहद कम उम्र में ही उनकी मां ने आसमान छू लिया था।
पहली महिला पायलट
इस तरह उषा ने देश के आजाद होने के बाद, भारतीय आसमान में उड़ान भरने वाली पहली महिला पायलट (First Indian Woman Pilot) होने का खिताब अपने नाम किया। आज देश के विमानन उद्योग में, भारतीय महिला पायलटों की संख्या 15 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक औसत केवल 5 प्रतिशत ही है। लेकिन उस समय, कॉकपिट में एक महिला का होना एक असाधारण बात थी।
1946 में उषा और उनके पति बैंगलोर आ गए। फिर 1948 में जक्कुर में गवर्नमेंट फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल (GFTS) की स्थापना के बाद वी सुंदरम को वहां का प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। उषा उस ट्रेनिंग स्कूल से पास होने वाली 1949 में पहली महिला बनी और भारत की पहली महिला पायलट (First Indian Woman Pilot) बनी। उषा और उनके पति को मैसूर के महाराजा के विमान डकोटा डीसी-3 के निजी पायलट के रूप में चुना गया था। उषा और वी सुंदरम कई प्रतिष्ठित लोगों के पायलट रहे जिसमें पंडित नेहरू का नाम भी शामिल है।
विभाजन के दौरान सेवा और रिटायरमेंट
उषा ने विभाजन के बाद पाकिस्तान में फंसे लोगों को निकालने का साहसी और बेहद सराहनीय कार्य किया। उन्होंने कई मौकों पर ये यात्राएं की और भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रूप से उनके घरों पर वापस पहुंचाया। 1952 में अपने परिवार और बच्चों के लिए रिटायरमेंट ले ली लेकिन उनके पति पायलट के रूप में कार्य करते रहे।
उषा सुंदरम और उनके पति वी सुंदरम काफी प्रतिष्ठित लोगों के विश्वसनीय को-पायलट के रूप में बने रहे। जिस वक्त इस कपल ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया उस समय उषा केवल 22 वर्ष की थी। उषा के बड़े बेटे सुरेश सुंदरम ने बताया था उनके पिता एक कुशल पायलट थे और वे मद्रास फ्लाइंग क्लब में ट्रेनर थे। उन्होंने यह भी बताया कि पिता से शादी होने के बाद बेहद कम उम्र में ही उनकी मां ने आसमान छू लिया था।
पहली महिला पायलट
इस तरह उषा ने देश के आजाद होने के बाद, भारतीय आसमान में उड़ान भरने वाली पहली महिला पायलट (First Indian Woman Pilot) होने का खिताब अपने नाम किया। आज देश के विमानन उद्योग में, भारतीय महिला पायलटों की संख्या 15 प्रतिशत है, जबकि वैश्विक औसत केवल 5 प्रतिशत ही है। लेकिन उस समय, कॉकपिट में एक महिला का होना एक असाधारण बात थी।
1946 में उषा और उनके पति बैंगलोर आ गए। फिर 1948 में जक्कुर में गवर्नमेंट फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल (GFTS) की स्थापना के बाद वी सुंदरम को वहां का प्रिंसिपल नियुक्त किया गया। उषा उस ट्रेनिंग स्कूल से पास होने वाली 1949 में पहली महिला बनी और भारत की पहली महिला पायलट (First Indian Woman Pilot) बनी। उषा और उनके पति को मैसूर के महाराजा के विमान डकोटा डीसी-3 के निजी पायलट के रूप में चुना गया था। उषा और वी सुंदरम कई प्रतिष्ठित लोगों के पायलट रहे जिसमें पंडित नेहरू का नाम भी शामिल है।
विभाजन के दौरान सेवा और रिटायरमेंट
उषा ने विभाजन के बाद पाकिस्तान में फंसे लोगों को निकालने का साहसी और बेहद सराहनीय कार्य किया। उन्होंने कई मौकों पर ये यात्राएं की और भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रूप से उनके घरों पर वापस पहुंचाया। 1952 में अपने परिवार और बच्चों के लिए रिटायरमेंट ले ली लेकिन उनके पति पायलट के रूप में कार्य करते रहे।