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Munger Firing Inside Story: 'मुंगेर में 26 अक्टूबर के लिए लिपि सिंह को पहले ही समझाया गया था'... फिर कैसे हो गया बवाल? जानिए उस रात का सच

मुंगेर की 26 अक्टूबर की स्याह रात में जो कुछ हुआ उसने एक घर के चिराग को बुझा दिया। वो नौजवान जिसके ऊपर एक भी पुलिस केस तो छोड़िए, आज तक पड़ोसियों ने भी मारपीट जैसी छोटी तोहमत नहीं लगाई थी। सवाल ये है कि आखिर उस काली रात मुंगेर में कैसे और क्या-क्या हुआ। पढ़िए हमारी इनसाइड स्टोरी में

Reported byऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम 30 Oct 2020, 2:18 pm
मुंगेर:
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मुंगेर में 26 अक्टूबर की रात पुलिस फायरिंग में एक नौजवान अनुराग की मौत हो गई। पुलिस फायरिंग (Violence in Munger) में मौत हुई, इस बात पर CISF की रिपोर्ट के बाद अब कोई शक और सुबहा नहीं रह गया है। लेकिन मुंगेर एकाएक कैसे बारुद के मुहाने पर जा बैठा। क्यों शहर तीसरे दिन धधक कर जल उठा। इसकी इनसाइड स्टोरी आज आपको नवभारतटाइम्स.कॉम बताने जा रहा है।

मुंगेर गोलीकांड की इनसाइड स्टोरी
26 अक्टूबर की रात 10 बजे मुंगेर के लोहापट्टी बेकापुर का रहनेवाला 19 साल का अनुराग कुमार पोद्दार रात 10 बजे अपने घरवालों को कहकर विसर्जन देखने के लिए निकला था। अनुराग न तो मूर्ति ले जा रहे श्रद्धालुओं की भीड़ का हिस्सा था और न ही कोई असामाजिक तत्व। उस पर कोई क्रिमिनल केस नहीं था। वो सीधा-साधा नौजवान तो ग्रेजुएशन का छात्र था। गोलीकांड में अनुराग के सिर पर सीधी गोली लगी और मौके पर ही उसकी मौत हो गई। लेकिन सवाल ये कि सबकुछ हुआ कैसे?

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सदियों से मुंगेर जिले में एक परंपरा है कि जब तक यहां बड़ी देवी का विसर्जन नहीं होता तब तक किसी और मूर्ति को विसर्जित नहीं किया जा सकता। साथ ही बड़ी माता को श्रद्धालुओं और पुजारियों के अलावा कोई स्पर्ष भी नहीं कर सकता। 26 अक्टूबर की रात 10 बजे के करीब दीनदयाल चौक देवी मां की मूर्ति रुकी हुई थी। पुलिस यहां पर इस जिद पर अड़ गई कि लोग मूर्ति छोड़कर चले जाएं और पुलिस जवान इसका विसर्जन कर देंगे। लेकिन श्रद्धालुओं ने सदियों पुरानी आस्था का हवाला देते हुए इससे इनकार कर दिया। इसके बाद पुलिस से श्रद्धालु भिड़ गए। पहले भीड़ से पथराव शुरू हुआ और इसके बाद । उसके बाद पुलिस ने मामले को और बिगाड़ दिया। पहले लाठी और फिर फायरिंग तक कर दी गई।


SP लिपि सिंह को प्रबुद्ध लोगों ने पहले ही समझाया था- सूत्र
सूत्र बताते हैं कि SP लिपि सिंह को इलाके के प्रबुद्ध लोगों ने घटना की सुबह ही समझाने की कोशिश की थी कि विसर्जन के लिए ज्यादा जोर-जबरदस्ती नहीं की जाए। इससे पहले कई दौर की पुलिस-पब्लिक की बैठक तक हुई थी। सूत्रों के मुताबिक लिपि सिंह इस मामले पर अपने अलावा किसी की सुनने को तैयार नहीं थीं। वो चुनाव में विधि व्यवस्था का हवाला देकर मूर्ति को जल्द से जल्द विसर्जित कराने की जिद पर अड़ गई थीं। नतीजा क्या हुआ ये किसी से छिपा नहीं है, हालांकि लिपि सिंह से चुनाव आयोग के आदेश के बाद जिले की कमान छीन ली गई।
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लिपि सिंह को पहले भी हटा चुका है चुनाव आयोगलिपि सिंह इससे पहले 2019 लोकसभा चुनाव में भी विवादों में घिरी थीं। तब निर्दलीय विधायक अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी जो मुंगेर से लोकसभा का चुनाव लड़ रही थीं, उन्होंने लिपि सिंह पर जानबूझकर उनके समर्थकों को कानूनी पचड़े में फंसाने का आरोप लगाया था। उस वक्त भी नीलम देवी की याचिका को देखने के बाद चुनाव आयोग के निर्देश पर ही लिपि सिंह का बाढ़ से ट्रांसफर कर दिया गया था। लेकिन चुनाव खत्म होते ही फिर से उन्हें बाढ़ में ही पोस्टिंग दे दी गई थी जो कि अमूमन नहीं होता। लेकिन इस बार मुंगेर में जो हुआ वो मामला सियासी नहीं बल्कि पब्लिक मूवमेंट का है। लिहाजा मसला काफी गंभीर हो गया है।
लेखक के बारे में
ऋषिकेश नारायण सिंह
नवभारत टाइम्स डिजिटल के बिहार-झारखंड प्रभारी। पत्रकारिता में जनमत टीवी, आईबीएन 7, ईटीवी बिहार-झारखंड, न्यूज18 बिहार-झारखंड से होते हुए टाइम्स इंटरनेट तक 17 साल का सफर। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से शुरुआत के बाद अब बिहार कर्मस्थल। देश, विदेश, अपराध और राजनीति की खबरों में गहरी रुचि। डिजिटल पत्रकारिता की हर विधा को सीखने की लगन।... और पढ़ें

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