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रैलियों की भीड़ से वोट नहीं होता है... तेजस्वी यादव के साथ तो ऐसा ही हुआ

बिहार में जो नतीजे आए हैं, उससे एक बार फिर से साबित हो गया है कि भीड़ वोट नहीं होता है। तेजस्वी की सभाओं में जबरदस्त भीड़ होती थी, उन जगहों पर भी उनके उम्मीदवार हार गए हैं।

नवभारतटाइम्स.कॉम 12 Nov 2020, 8:15 am
पटना
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बिहार चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव की रैलियों में खूब भीड़ उमड़ रही थी। रैलियों की भीड़ को देख सियासी पंडित यह आकलन कर रहे थे कि तेजस्वी यादव सत्ता में आएंगे। लेकिन भीड़ के जरिए तेजस्वी सिर्फ माहौल बनाने में ही कामयाब रहे हैं। रैलियों में उमड़ी भीड़ को तेजस्वी यादव वोट में तब्दील नहीं कर पाएं। उनकी जिन रैलियों में बंपर भीड़ उमड़ी थी, वहां से उनके उम्मीदवार हार गए हैं।

आपको कुछ उदाहरण के जरिए समझाते हैं कि कैसे भीड़ वोट का पैमाना नहीं होता है। पहले चरण की वोटिंग से पहले तेजस्वी यादव मुंगेर के तारापुर सीट से उम्मीदवार दिव्या प्रकाश के लिए चुनावी सभा करने आए थे। तारापुर बाजार के पास बड़े मैदान में तेजस्वी की रैली थी। रैली की भीड़ को देख कोई नहीं कह सकता था कि तेजस्वी के उम्मीदवार की जीत नहीं होगी। स्थानीय लोग बता रहे थे कि तेजस्वी से पहले तारापुर में नीतीश कुमार की रैली भी हुई थी।

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नीतीश की रैली में तेजस्वी से आधी भीड़ थी। तेजस्वी की रैली में भीड़ देख लोग आकलन कर रहे थे कि दिव्या प्रकाश की जीत होगी। लेकिन जब नतीजे आए तो चौंकाने वाले थे। तारापुर से जेडीयू उम्मीदवार मेवा लाल चौधरी की जीत हो गई। वहीं, आरजेडी उम्मीदवार दिव्या प्रकाश की 20 हजार वोटों से हार हो गई है। इससे साफ है कि भीड़ वोट का पैमाना नहीं है।

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शरद यादव की बेटी भी हार गई
आखिरी चरण के चुनाव से पहले ऐसा ही कुछ आलम मधेपुरा के बिहारीगंज विधानसभा सीट पर था। बिहारीगंज में शरद यादव की बेटी और कांग्रेस उम्मीदवार सुभाषिणी यादव के लिए तेजस्वी यादव 3 नवंबर को रैली करने आए थे। बिहारीगंज शहर और रैली स्थल में भीड़ जबरदस्त थी। तेजस्वी की सभा स्थल पर पैर रखने की जगह नहीं थी। आरजेडी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह था। लेकिन नतीजे भीड़ से विपरीत आए हैं। सुभाषिणी यादव 20 हजार वोटों से चुनाव हार गई हैं।

भीड़ में कैसे लोग होते थे
दरअसल, तेजस्वी और उनकी पार्टी रैलियों में उमड़ रही भीड़ को देख कर गदगद थी। लेकिन रैलियों की भीड़ से लोग अंदाजा नहीं लगा पा रहे थे कि उसमें वोटर भी हैं कि सिर्फ देखने सुनने वाले लोग आए हैं। दरअसल, रैलियों में 20 फीसदी से ज्यादा ऐसे लोगों की भीड़ होती थी जो अभी वोटर ही नहीं हैं। वह सिर्फ तेजस्वी यादव को देखने और सुनने आते थे। यहां तक की बच्चों की भी अच्छी खासी भीड़ होती थी।

लालू की रैलियों में भी उमड़ती थी खूब भीड़

2010 के विधानसभा चुनावों में लालू यादव की रैलियों में खूब भीड़ उमड़ती थी। लालू की रैलियों में उमड़ी भीड़ को देख लोग उस समय भी आकलन करने लगे थे कि नीतीश कुमार सत्ता से जाने वाले हैं। लेकिन नतीजे आए तो लालू यादव की पार्टी उस समय 22 सीटों पर सिमट गई थी।

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2015 में बीजेपी के साथ भी ऐसा ही हुआ
बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में नीतीश को किनारे कर बीजेपी अकेले चुनाव लड़ रही थी। बीजेपी के लिए पीएम मोदी और तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह मोर्चा संभाले हुए थे। पीएम मोदी की रैलियों में जबरदस्त भीड़ उमड़ती थी। रैलियों की भीड़ को देख लोग आश्वस्त थे कि बिहार में बीजेपी ही सत्ता में आएगी। तमाम एग्जिट पोल भी कह रहे थे कि बिहार में बीजेपी की वापसी हो रही है। लेकिन नतीजे बिलकुल उलट आए थे।

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2019 में भी यहीं हुआ
2019 के लोकसभा चुनाव में भी यूपीए नेताओं की रैलियों में भीड़ खूब होती थी। तेजस्वी यादव से लेकर राहुल गांधी तक की रैलियों में भीड़ देख लोग जबरदस्त उत्साहित होते थे। लेकिन नतीजे जब आए तो बिहार में आरजेडी एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई। जबकि उस वक्त भी कांग्रेस की तरफ से न्याय योजना का वादा था। एनडीए को प्रचंड जीत मिली थी।

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