पटना:
महागठबंधन की हार के बाद राहुल गांधी पर सवाल उठने लगे हैं। बिहार के सियासी गलियारों में ये चर्चा आम हो गई है कि बिहार चुनाव में राहुल गांधी फ्लॉप हो गए हैं। हालांकि टक्कर कांटे की थी, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। फिर भी राहुल गांधी पर फ्लॉप के ठप्पे की चर्चा क्यों हो रही है... जानिए यहां
बिहार में राहुल गांधी की रैलियों का स्ट्राइक रेट
बिहार चुनाव में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी... बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 8 क्षेत्रों में रैलियां, जिनमें 52 विधानसभा सीटें शामिल। यही नहीं बिहार में कांग्रेस ने सीट बंटवारे में 70 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा लेकिन स्ट्राइक रेट 2015 के मुकाबले भी खराब। कांग्रेस ने जिन 70 सीटों पर चुनाव लड़ा उसमें सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई। यही नहीं सीमांचल में ओवैसी ने भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के वोट बैंक माने जाने वाले अल्पसंख्यकों का रुख ही बदल दिया।
कहा जा रहा है कि जिन 8 जगहों पर राहुल गांधी ने रैली की उनमें करीब 52 विधानसभा सीटें थीं और इनमें से 40 पर महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। वहीं NDA के नेता कहते नजर आ रहे हैं कि जहां-जहां राहुल गांधी के पांव पड़े वहां महागठबंधन का मंगलवार की काउंटिंग में अमंगल ही हो गया। हालांकि ऐसा नहीं है कि राहुल की रैलियों वाली सीटों पर प्रदर्शन बिल्कुल ही खराब था। कुल क्षेत्रों से इतर जिन खास विधानसभा सीटों के लिए ये रैलियां हुई उनमें 5 पर एनडीए और तीन पर महागठबंधन (कांग्रेस) को जीत मिली है। देखिए वो सीटें
हिसुआ - कांग्रेस
वाल्मीकि नगर - जेडीयू
कुशेश्वर अस्थान - जेडीयू
कहलगांव - बीजेपी
कोढ़ा - बीजेपी
किशनगंज - कांग्रेस
बिहारीगंज - जेडीयू
अररिया - कांग्रेस
भूपेंद्र यादव बने बिहार में बीजेपी की बंपर जीत के चाणक्य
बात अगर NDA और खासकर BJP की करें तो राजस्थानी पृष्ठभूमि के भूपेंद्र यादव को 5 साल पहले जब बिहार बीजेपी का प्रभारी बनाया गया था तो लोगों के मन में कई सवाल थे। क्या राजस्थान की रेत से बिहार की मिट्टी में कमाल हो सकता है। क्या भूपेंद्र यादव खांटी बिहारी बन कर पार्टी को शिखर पर पहुंचा पाएंगे। इन सारे सवालों का जवाब भूपेंद्र यादव ने बिहार के दो चुनावों में दे दिया। मेहनत का असर दिखा लोकसभा 2019 के चुनाव में जब मोदी रथ पर सवार NDA 40 में से 39 सीटें बटोर ले गया। लेकिन भूपेंद्र यादव की नजर लोकसभा से ज्यादा बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर थी। आखिर में 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में भूपेंद्र यादव ने BJP का झंडा बुलंद कर दी दिया। राजस्थान की रेत से लाई गई कमल ने बिहार की मिट्टी में भी 74 सीटों के साथ पहली बार बड़ी पैठ जमा ली।
बड़ी बात ये है कि इससे पहले गुजरात में BJP की लगातार छठी बड़ी जीत के भी सबसे अहम रणनीतिकार भूपेंद्र ही थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में भी BJP की धमाकेदार वापसी में भूपेंद्र की बड़ी भूमिका रही थी। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट भूपेंद्र यादव ने 5 साल में बिहार में सभी समीकरणों और एग्जिट पोल तक को नेस्तनाबूद कर दिया।
बिहार चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष का दांव भी भूपेंद्र का ही
2016 में ही भूपेंद्र यादव ने यादव समाज के नित्यानंद राय को बिहार बीजेपी की कमान सौंपवा दी। इससे उन्होंने RJD को ये संदेश दिया कि Y यानि यादव समीकरण सिर्फ लालू के भरोसे ही नहीं रहनेवाला। अपने मिशन बिहार की शुरुआत भूपेंद्र यादव ने यहीं से की थी। इसी ब्लूप्रिंट के चलते लोकसभा चुनाव में एनडीए का डंका बज गया। लेकिन अभी चाल बाकी थी।
भूपेंद्र यादव के इन आखिरी दो दांव ने तय कर दी बीजेपी की जीत2020 चुनाव से पहले उन्होंने वैश्य समाज के संजय जायसवाल को आगे किया और ये संदेश दिया कि सुशील मोदी के आगे जहां और भी है। ये भूपेंद्र के हुकुम का इक्का था। इससे भूपेंद्र ने धोनी की तरह विराट कोहली का विकल्प दे दिया, यानि पार्टी की दूसरी और नई लाइन ही तैयार कर दी। आखिरी दांव टिकट बंटवारे का था, इसमें भी भूपेंद्र ने माहिर खेल दिखाया और पार्टी के कमजोर विधायकों की पहचान की, साथ-साथ वो जीत दिलाने वाले तगड़े उम्मीदवारों की लिस्ट भी तैयार करते गए। इस दांव ने तो भूपेंद्र की रणनीति को खेल में काफी आगे ला दिया। नतीजा सबके सामने है।
महागठबंधन की हार के बाद राहुल गांधी पर सवाल उठने लगे हैं। बिहार के सियासी गलियारों में ये चर्चा आम हो गई है कि बिहार चुनाव में राहुल गांधी फ्लॉप हो गए हैं। हालांकि टक्कर कांटे की थी, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। फिर भी राहुल गांधी पर फ्लॉप के ठप्पे की चर्चा क्यों हो रही है... जानिए यहां
बिहार में राहुल गांधी की रैलियों का स्ट्राइक रेट
बिहार चुनाव में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी... बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 8 क्षेत्रों में रैलियां, जिनमें 52 विधानसभा सीटें शामिल। यही नहीं बिहार में कांग्रेस ने सीट बंटवारे में 70 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा लेकिन स्ट्राइक रेट 2015 के मुकाबले भी खराब। कांग्रेस ने जिन 70 सीटों पर चुनाव लड़ा उसमें सिर्फ 19 सीटें ही जीत पाई। यही नहीं सीमांचल में ओवैसी ने भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के वोट बैंक माने जाने वाले अल्पसंख्यकों का रुख ही बदल दिया।
कहा जा रहा है कि जिन 8 जगहों पर राहुल गांधी ने रैली की उनमें करीब 52 विधानसभा सीटें थीं और इनमें से 40 पर महागठबंधन को हार का सामना करना पड़ा। वहीं NDA के नेता कहते नजर आ रहे हैं कि जहां-जहां राहुल गांधी के पांव पड़े वहां महागठबंधन का मंगलवार की काउंटिंग में अमंगल ही हो गया। हालांकि ऐसा नहीं है कि राहुल की रैलियों वाली सीटों पर प्रदर्शन बिल्कुल ही खराब था। कुल क्षेत्रों से इतर जिन खास विधानसभा सीटों के लिए ये रैलियां हुई उनमें 5 पर एनडीए और तीन पर महागठबंधन (कांग्रेस) को जीत मिली है। देखिए वो सीटें
हिसुआ - कांग्रेस
वाल्मीकि नगर - जेडीयू
कुशेश्वर अस्थान - जेडीयू
कहलगांव - बीजेपी
कोढ़ा - बीजेपी
किशनगंज - कांग्रेस
बिहारीगंज - जेडीयू
अररिया - कांग्रेस
भूपेंद्र यादव बने बिहार में बीजेपी की बंपर जीत के चाणक्य
बात अगर NDA और खासकर BJP की करें तो राजस्थानी पृष्ठभूमि के भूपेंद्र यादव को 5 साल पहले जब बिहार बीजेपी का प्रभारी बनाया गया था तो लोगों के मन में कई सवाल थे। क्या राजस्थान की रेत से बिहार की मिट्टी में कमाल हो सकता है। क्या भूपेंद्र यादव खांटी बिहारी बन कर पार्टी को शिखर पर पहुंचा पाएंगे। इन सारे सवालों का जवाब भूपेंद्र यादव ने बिहार के दो चुनावों में दे दिया। मेहनत का असर दिखा लोकसभा 2019 के चुनाव में जब मोदी रथ पर सवार NDA 40 में से 39 सीटें बटोर ले गया। लेकिन भूपेंद्र यादव की नजर लोकसभा से ज्यादा बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर थी। आखिर में 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में भूपेंद्र यादव ने BJP का झंडा बुलंद कर दी दिया। राजस्थान की रेत से लाई गई कमल ने बिहार की मिट्टी में भी 74 सीटों के साथ पहली बार बड़ी पैठ जमा ली।
बड़ी बात ये है कि इससे पहले गुजरात में BJP की लगातार छठी बड़ी जीत के भी सबसे अहम रणनीतिकार भूपेंद्र ही थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में भी BJP की धमाकेदार वापसी में भूपेंद्र की बड़ी भूमिका रही थी। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट भूपेंद्र यादव ने 5 साल में बिहार में सभी समीकरणों और एग्जिट पोल तक को नेस्तनाबूद कर दिया।
बिहार चुनाव से पहले प्रदेश अध्यक्ष का दांव भी भूपेंद्र का ही
2016 में ही भूपेंद्र यादव ने यादव समाज के नित्यानंद राय को बिहार बीजेपी की कमान सौंपवा दी। इससे उन्होंने RJD को ये संदेश दिया कि Y यानि यादव समीकरण सिर्फ लालू के भरोसे ही नहीं रहनेवाला। अपने मिशन बिहार की शुरुआत भूपेंद्र यादव ने यहीं से की थी। इसी ब्लूप्रिंट के चलते लोकसभा चुनाव में एनडीए का डंका बज गया। लेकिन अभी चाल बाकी थी।
भूपेंद्र यादव के इन आखिरी दो दांव ने तय कर दी बीजेपी की जीत2020 चुनाव से पहले उन्होंने वैश्य समाज के संजय जायसवाल को आगे किया और ये संदेश दिया कि सुशील मोदी के आगे जहां और भी है। ये भूपेंद्र के हुकुम का इक्का था। इससे भूपेंद्र ने धोनी की तरह विराट कोहली का विकल्प दे दिया, यानि पार्टी की दूसरी और नई लाइन ही तैयार कर दी। आखिरी दांव टिकट बंटवारे का था, इसमें भी भूपेंद्र ने माहिर खेल दिखाया और पार्टी के कमजोर विधायकों की पहचान की, साथ-साथ वो जीत दिलाने वाले तगड़े उम्मीदवारों की लिस्ट भी तैयार करते गए। इस दांव ने तो भूपेंद्र की रणनीति को खेल में काफी आगे ला दिया। नतीजा सबके सामने है।